मास्टर इब्राहीम की क्लेरियोनेट पर बजाई एक फिल्मी धुन- संगीत में ढाई मि0 की डुबकी ।
लंबे समय से तमन्ना थी कि रेडियोवाणी पर आपको फिल्म-इंस्ट्रूमेन्टल सुनवाये जाएं । मुझे स्कूल कॉलेज के ज़माने से ही फिल्मी गानों की अलग अलग साज़ों पर बजाई धुनें काफी पसंद रही हैं । एक ज़माने में केवल सुनील गांगुली और इनॉक डैनियल्स जैसे वादक ही मशहूर रहे थे जिन्होंने गिटार और पियानो अकॉर्डियन जैसे साज़ों पर फिल्मी गीत बजाए और अपने स्वतंत्र एलबम जारी किये । ये एल पी रिकॉर्ड आज भी निजी कलेक्शनों में मौजूद हैं और आकाशवाणी केंद्रों पर तो लगातार इस्तेमाल भी किये जाते रहे हैं ।
पर अफ़सोस यही है कि हमारे यहां इन वादकों और इनकी कला को उतना सम्मान, उतना नाम और दाम नहीं मिलता जिसके वो हक़दार हैं । पश्चिम में साजिंदों को भी खूब नाम मिलता है और वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित करते हैं ।
.... चूंकि ये धुनें हैं शब्द नहीं हैं--इसलिए आप अपने काम में मगन रह सकते हैं । हां जब वक्त हो तो आंखें बंद करके इनमें डूब जाईये और इनके नये आयाम खोजते रहिए ।
मुझे याद है कि जब मैं आज से तकरीबन सात आठ साल पहले विख्यात सैक्सॉफोन और मेटल फ्लूट वादक मनोहारी सिंह से मिला और उनके चरण-स्पर्श करके उनसे कहा कि मैं आपका शैदाई हूं । सौभाग्य है कि आपसे मिलने का मौक़ा मिला । मैंने उनसे ये भी कहा कि मेरे पास आपके दोनों कैसेट हैं जिनमें आपने फिल्मी धुनें बजाई हैं तो उनको आश्चर्य सा हुआ क्योंकि किसी गुमनाम सी कैसेट कंपनी ने इन अलबमों को जारी किया था । फिर तीन साल पहले मनोहारी दादा मैंने लंबा इंटरव्यू किया और उन्होंने इतने दिल से मेटल फ्लूट और सैक्सोफोन पर कई कई धुनें बजाकर सुनाईं ।मन कर रहा है कि अब instrumentals पर ही एक सीरीज़ की जाए । बहरहाल आपको ये बता दूं कि मनोहारी सिंह बंगाल के रहने वाले हैं और बासु-मनोहारी की जोड़ी आर डी बर्मन के सहायक संगीतकारों के रूप में विख्यात रही है । इन्होंने कुछ फिल्मों में स्वतंत्र रूप से संगीत भी दिया है । मनोहारी दादा के अलावा इनॉक डैनियल्स, सुनील गांगुली, ब्रायन सिलास, मिलन गुप्ता, सुरेश यादव जैसे अनेक कलाकार हैं जिन्होंने फिल्मी गीतों में अलग अलग साज़ भी बजाए और एक वादक के रूप में अपने साज़ पर फिल्मी धुनों के अलबम भी जारी किये ।
आज हम मास्टर इब्राहीम की प्रतिभा को सलाम कर रहे हैं जो क्लेरियोनेट बजाते रहे हैं । इंटरनेट पर मास्टर इब्राहीम के बारे में यहां ज़रा सी जानकारी मिली । और उनकी तस्वीर भी । जो यहां दी जा रही है । मास्टर इब्राहीम जीरे ख़ान पानीपत वाले, रफ़ीक़ गज़नवी और पंडित दिनकर राव से तालीम ली थी और वे शास्त्रीय क्लोरियोनेट वादन भी करते रहे थे । शास्त्रीय महफिलों में उनके क्लेरियोनेट वादन को अपार प्रशंसा मिलती रही । मास्टर इब्राहीम ने फिल्म संसार में बतौर क्लौरियोनेट वादक काफी नाम कमाया । यही नहीं उनके कई एलबम बाजा़र में उपलब्ध हैं, जिनमें उन्होंने क्लेरियोनेट पर मशहूर फिल्मी गानों की धुनें बजाई हैं । इन धुनों को सुनने का अपना ही मज़ा है । ये आपको असली गाने का भी आनंद देती हैं और चूंकि ये धुनें हैं शब्द नहीं हैं--इसलिए आप अपने काम में मगन रह सकते हैं । हां जब वक्त हो तो आंखें बंद करके इनमें डूब जाईये और इनके नये आयाम खोजते रहिए ।
9 comments:
हम्म्म्म् बढ़िया.!
बहुत अच्छी
सर जी
इंस्ट्रूमेंटल म्युज़िक पर सिरीज़ का आइडिया बहुत अच्छा है, मुझे पूरा विश्वास है कि आपके पास ख़जाना होगा बहुत बड़ा.
भाई मस्त कर दिया,हल्का हल्का रस ले रहा हूँ मज़ा आ रहा है... इसी तरह का कुछ और भी सुनाते रहेंगे यही विश्वास है..
शुक्रिया यूनुस मोहम्मद इब्राहिम के हुनर से परिचय कराने का !
किसी ज़माने में हवा-महल रात सवा नौ बजे प्रसारित होता था. उसके पहले नौ बजे हिन्दी समाचार बुलेटिन समाप्त होता था और बीच में होता था मेरा पसंदीदा कार्यक्रम साज़-आवाज़. इस कार्यक्रम में मास्टर इब्राहिम की बहुतेरी धुनों को सुनने का मौक़ा मिलता था यूनुस भाई. इसी में वान शी प्ले, एनॉकडेनियल्स ,वी . बलसारा और चिरंजीत सिंह से हवाइन गिटार,एकॉर्डियन,यूनीबॉक्स प्यानो और मेंडोलियन पर कई धुनें सुनने के बाद मैं पिताजी से ज़िद कर के बेंजो ख़रीद लाया था और स्कूल से कॉलेज तक आते आते कई ट्रॉफ़िया जीतने का मज़ा ले चुका था. साज़ और आवाज़ ने मुझ जैसे कई मध्यमवर्गीय परिवारों के किशोरों और युवकों को विभिन्न वाद्यों की ओर खींचा.आपकी पोस्ट और माडसाब के ज़िक्र से किशोर और युवा मन की यादों के गलियारों की सैर कर आया हूँ आज.(बस चैक कर लीजियेगा कि हमराज़ की ये धुन क्लेरोनियेट की जगह पर ट्रंपेट पर तो नहीं बजी है)
आदरणिय श्री युनूसजी,
यह पोस्ट मैंने कल पढी थी, तबसे ही मेरे दिमागमें थोडा सा शंशय पेदा हुआ था । पर उस वक्त मेरे नेट पर थोडा प्रोब्लेम होने के कारण सुन नहीं पाया था । पर आज अभी दि. १२ मार्च, २००८ के दिन दो पहर के बाद ०४.३० पर यह सुन कर लिख रहा हूँ ।
आपने जो भी वेब पन्ने से यह जान कारी के साथ इस धून को पाया वह वेब वालोने श्री एनोक डेनियेल्स साहब की एल.पी. डान्स टाईम से यह धून गलती से उठाई है । इस्में कहीं भी क्लेरीनेट है ही नहीं । यह एल. पी. की कूल ११ में से करीब ९ धूनें श्री एनोक डेनियेल्स साहब इस के पहेले अलग अलग ७८ आरपीएम तथा ई पी और एल. पी. में पियानो-एकोर्डियन पर प्रस्तूत कर चूके थे । इसमें यह धून भी शामिल थी । और विविध भारती के पास यह दोनों धूनें है और यह डान्स टाईम की तो आप लोगो के पास सीडी भी आ गयी है । आपको याद होगा कि जब अभी तो नहीं पर दो साल पहेले मैं आया था तब यह नीले गगन के तल्रे बाली पियानो एकोर्डियन वाली धून इन दिनों विविध भारती से व्यापारी अंतराल के दौरान बजती थी, वह मैं ने आपसे, कमम शर्माजी से और श्री महेन्द्र मोदी साहब से अलग अलग किया था, जिसमेम तीन अंतरे पूरे थे । पर यह डान्स ताईम वाली इस गीत की धून में सिर्फ़ दूसरा और तीसरा ही प्रस्तूत किया गया है । इस धून में मेलडी पार्ट कुछ: ब्रास वाद्यो पर बजाया गया है । और तीसरे अंतरेमें पियानो का भाग जो मेलडी भाग से पहेले बजता है, वह श्री एनोक डेनियेल्स साहबने शायद खुद ही बजाया है ।
मास्टर इब्राहिम साहबने यह धून जहाँ तक मेरा खयाल है, बजाई ही नहीं है । आज उनको सभी जगह से श्रद्धांजलियाँ मिल रही है, पर उनके बनाये खजाने पर व्यापार करने वालोने उनको आर्थिक परेशानीयाँ कैसे दी थी, वह मैंने एक ख्यात्नाम वादक कलाकारसे जबानी सुनी है । आप उनके तीन वायब्रोफोन बादक बेटों ( एक का नाम शायद इक़बाल है) से इस बारेमें शायद सही बात जान सकते है । जब फिर हमारा आप से मिलना होगा, मैं आपको बताऊँगा ।
इनकी कोई भी धून स्टिरीयोमें नहीं ध्वनिआंकित नहीं हुई थी । असल धूने सब शायद ७८ आरपीएम पर ही थी, जो उनके इन्तेकाल के बाद श्रद्धांजलि के रूपमें सहबे पहेले एक एल पी और बाद कई सीडी के रूपमें बझारमें आयी । (विविध भारती के पास इस धून कन्हैयालालजी की शहनाई पर भी है ।)
आशा है आप और अन्य वाचक इस पर टिपणी प्रस्तूत करेंगे ।
पियुष महेता ।
सुरत-३९५००१.
instumental music series ka idea bahut achcha hai. intezar rahega.
पीयूष भाई ने बड़ी मेहनत की, उनके इस ज्ञान पर आश्चर्य होता है। खैर धुन किसी भी कलाकार ने बजाई हो हमें तो बहुत ही मधुर और कर्णप्रिय लगी।
धन्यवाद
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