संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
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Wednesday, May 7, 2008

उस्‍ताद अली अकबर ख़ां साहब के सत्‍यजीत राय से जुड़े अनुभव

रेडियोवाणी पर हमने महत्‍त्‍वपूर्ण अखबारों से संगीत से जुड़ी महत्‍त्‍वपूर्ण जानकारी साभार प्रस्‍तुत करने की परंपरा शुरू की है । इस परंपरा को आगे भी निभाया जायेगा । टाइम्‍स ऑफ इंडिया के दिनांक दो मई 2008 के अंक में उस्‍ताद विलायत खां साहब से रंजन दास गुप्‍ता ने सत्‍यजीत राय के बारे में छोटी सी बातचीत की है । टाइम्‍स में छपे इसी साक्षात्‍कार का हिंदी अनुवाद यहां प्रस्‍तुत किया जा रहा है । इस आलेख की ख़बर जयपुर से राजेंद्र जी ने भेजी । दो मई को सत्‍यजीत राय का 87 वां जन्‍मदिवस था । तब इस बातचीत को नहीं दे सका । देर से ही सही हम सत्‍यजीत राय को याद तो कर रहे हैं ।

सत्‍यजीत राय ऐसे अकेले फिल्‍म निर्देशक हैं जिन्‍होंने पंडित रविशंकर, उस्‍ताद अली अकबर खां और उस्‍ताद विलायत खां साहब तीनों के साथ काम किया । उस्‍तार अली अकबर खां ने 1960 में फिल्‍म 'देवी' के संगीत पर काम किया था, अमरीका से दिये गये इस दुर्लभ इंटरव्‍यू में ख़ां साहब सत्‍यजीत रे के साथ काम करते हुए मिले अनुभवों का ब्‍यौरा दे रहे हैं ।

                                ali_akbar_khan

आपको फिल्‍म देवी में पार्श्‍वसंगीत देने का मौक़ा कैसे मिला था

सत्‍यजीत राय ने सीधे मुझसे संपर्क किया था और वो मेरे साथ काम करने को व्‍यग्र थे । उन्‍हें लगता था कि 'देवी' के साथ केवल मैं ही न्‍याय कर सकता हूं । उन्‍होंने मुझे कई संगीत-समारोहों में सरोद बजाते सुना था और 1952 में आई फिल्‍म 'आंधियां' में मेरे संगीत को भी सुना था । चूंकि सत्‍यजीत एक संवेदनशील और प्रतिभाशाली निर्देशक थे इसलिए मैं उन्‍हें मना नहीं कर सका ।

फिल्‍म  'देवी' पर काम करते हुए सत्‍यजीत राय की कार्यशैली कैसी थी

उन्‍हें साफ तौर पर पता था कि उन्‍हें मुझसे क्‍या चाहिए । उन्‍होंने मेरे साथ अनगिनत रिहर्सलें कीं । और कुछेक धुनों को चुना । ये वो धुनें थीं जो फिल्‍म 'देवी' के मूड के एकदम अनुकूल बैठती थीं । लेकिन कुछ ऐसे मौक़े भी आए जब वो एकदम अड़ गये थे । उन्‍होंने मुझे पूरी रचनात्‍मक आजा़दी नहीं दी थी । इससे मुझे धक्‍का लगा था । क्‍योंकि मेरी रचनात्‍मकता पर एक तरह से अंकुश जैसा लग गया था ।

क्‍या 'देवी' के संगीत निर्देशन के दौरान कभी आप दोनों के बीच कोई झगड़ा हुआ

मैं दूसरे रचनात्‍मक लोगों के साथ झगड़ा नहीं करता । दरअसल मेरी कार्यशैली उनके साथ जमी नहीं । मुझे लगा कि सत्‍यजीत राय शास्‍त्रीय संगीत के क़द्रदान नहीं थे हालांकि उनमें संगीत की गहरी समझ थी । शायद उन्‍होंने मुझे इसलिए रोका क्‍योंकि उन्‍हें लगा होगा कि जरूरत से ज्‍यादा संगीत उनकी फिल्‍म के प्रवाह को खत्‍म कर देगा । मैंने इस बात को समझा लेकिन देवी के संगीत को लेकर मैं बहुत खुश नहीं था ।

आपको क्‍या लगता है कि पंडित रविशंकर और उस्‍ताद विलायत खां साहब के साथ कैसे काम किया होगा सत्‍यजीत राय ने

सबसे ज्‍यादा उनकी पंडित रविशंकर से ही जमी । अपू त्रयी और परश पाथर में उन्‍होंने शानदार संगीत दिया है । रविशंकर सत्‍यजीत राय की जरूरतों और उनके मूड को अच्‍छी तरह से समझते थे । बाकी किसी भी फिल्‍म में रविशंकर ने इतना अच्‍छा संगीत नहीं दिया । विलायत खां साहब ने फिल्‍म जलसाघर में संगीत दिया था । जो बहुत ही उत्‍कृष्‍ट था । लेकिन मुझे लगता है कि सत्‍यजीत राय ने उन्‍हें भी अपना सर्वश्रेष्‍ठ संगीत देने से रोक दिया था

सत्‍यजीत राय, चेतन आनंद और तपन सिन्‍हा की कार्यशैली में फर्क बताईये

सत्‍यजीत राय इन तीनों में सबसे ज्‍यादा विविधरंगी थे । बाद में उन्‍होंने अपनी फिल्‍मों का संगीत स्‍वयं भी दिया । और कुछ अविस्‍मरणीय धुनें बनाईं, चेतन आनंद दिल से एक कवि थे । और अपने संगीतकार को पूरी आजादी देते थे । तपन सिन्‍हा का सौंदर्यबोध बड़ा अच्‍छा है । वे रवींद्रनाथ ठाकुर के संगीत विद्यालय से आते हैं । और अपनी फिल्‍म खुदीतो पशन में उन्‍होंने मुझसे उसी शैली का काम करवाया ।

बातचीत टाइम्‍स ऑफ इ‍ंडिया के दो मई के संस्‍करण में छपे इंटरव्‍यू का अनुवाद है ।

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