संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।
Showing posts with label मोमिन. Show all posts
Showing posts with label मोमिन. Show all posts

Sunday, June 28, 2009

वो जो हममें तुममें क़रार था-बारिश के दिन, मोमिन की ग़ज़ल, गुलाम अली की तान

बंबई में बारिश का मतलब होता है pot-holes, ट्रैफिक-जाम, लोकल-ट्रेनों nat3 और बेस्‍ट की बसों में देरी और परेशानियां । लगभग सारे देश में यही हाल होता है बारिश के बाद । रेन-कोट और छातों से रिसता....आत्‍मा तक धंसता पानी । गीले कपड़ों को छूती ठंडी हवा ठिठुरते बदन को जैसी चीर डालती है । किचकिचाते कीचड़ में कपड़ों का सत्‍यानाश हो चुका होता है । लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद बारिश रूमानी मौसम है । बारिश की सारी समस्‍याओं को भुलाया जा सकता है और इसकी तरंग से सराबोर हुआ जा सकता है ।

बारिश के इस मौसम में रेडियोवाणी पर आपको मोमिन ख़ां मोमिन का कलाम सुनवाने का मन कर रहा है । मोमीन उन्‍नीसवीं सदी की दिल्‍ली के नामी शायर और हकीम थे । ग़ज़लों की अपनी ख़ास फारसी शैली और अपने 'तख़ल्‍लुस' 'मोमीन' के बेहद ख़ूबसूरत इस्‍तेमाल के लिये जाने जाते हैं । ज़रा इन 'मख्‍़तों' पर ग़ौर कीजिए ।


उम्र तो सारी कटी इश्के-बुतां में मोमिन
आख़िरी वक्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे ।।
हाथ पहुंचे भी न थे जुल्फे-दोता तक मोमिन
हथकडी डाल दी जालिम ने खता से पहले ।।
जिसे आप गिनते थे आशना जिसे आप कहते थे बावफा
मैं वही हूं मोमिन-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो कि न याद हो ।
हूँ जां-बलब बुताने-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ में जीते हैं मोमिन इसी तरह ।।


'मोमिन' और भारतेंदु की समानता पर कबाड़ख़ाना में सिद्धेश्‍वर ने एक बेहतरीन पोस्‍ट लिखी थी । रेडियोवाणी पर 'मोमिन' की जो ग़ज़ल आपको सुनवाई जा रही है, उसे ग़ुलाम अली ने एक ठुमरी से शुरू किया है । 'का करूं सजनी आए ना बालम' । आपमें से बहुत लोगों ने इसे बड़े गुलाम अली ख़ां साहब की आवाज़ में सुना होगा । वैसे जानकारी के लिए आपको उन लोगों की फेहरिस्‍त बता दें, जिन्‍होंने 'मोमिन' की इस ग़ज़ल को गाया है । लिंक पर click करके आप यूट्यूब पर इन आवाज़ों तक पहुंच सकते हैं ।

1.
बेगम अख्‍़तर
2.
नैयरा नूर
3.
फ़रीदा ख़ानम
4.
पंकज उधास

इसके अलावा इस ग़ज़ल को मेहदी हसन, चित्रा सिंग और कई अन्‍य गायकों ने भी गाया है । तो चलिए ग़ुलाम अली की आवाज़ में सुनें ये ग़ज़ल--
singer-ghulam ali
shayar-momin
duration-9-55 minutes.



वो जो हम में तुम में करार था, तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का, तुम्हें याद हो के न याद हो.
वो नये गिले, वो शिकायतें, वो मज़े-मज़े की हिकायतें
वो हरेक बात पे रूठना, तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई, जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयां से पहले ही भूलना, तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझसे था आपका
वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो के न याद हो
हुए इत्तेफाक से गर बहम , वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिल- ए- मलामते-अक़रबा, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू, तो इशारतों ही से गुफ्तुगू
वो बयान शौक़ का बरमाला, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो बिगाड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हरेक अदा, तुम्हें याद हो के न याद हो
जिसे आप गिनते थे आशना, जिसे आप कहते थे बावफा
मैं वही हूँ मोमिने-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो


ग़ज़ल की इबारत डॉ.शैलेश ज़ैदी के ब्‍लॉग 'युग-विमर्श' की
इस पोस्‍ट से साभार । आपको बता दें कि ये मोमिन की पूरी ग़ज़ल है, जिसके चंद शेर ही गायकों ने गाए हैं । बंबई की बारिश की तस्‍वीर 'ट्रिब्‍यून' से साभार ।

READ MORE...
Blog Widget by LinkWithin
.

  © Blogger templates Psi by Ourblogtemplates.com 2008 यूनुस ख़ान द्वारा संशोधित और परिवर्तित

Back to TOP