वो जो हममें तुममें क़रार था-बारिश के दिन, मोमिन की ग़ज़ल, गुलाम अली की तान
बंबई में बारिश का मतलब होता है pot-holes, ट्रैफिक-जाम, लोकल-ट्रेनों और बेस्ट की बसों में देरी और परेशानियां । लगभग सारे देश में यही हाल होता है बारिश के बाद । रेन-कोट और छातों से रिसता....आत्मा तक धंसता पानी । गीले कपड़ों को छूती ठंडी हवा ठिठुरते बदन को जैसी चीर डालती है । किचकिचाते कीचड़ में कपड़ों का सत्यानाश हो चुका होता है । लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद बारिश रूमानी मौसम है । बारिश की सारी समस्याओं को भुलाया जा सकता है और इसकी तरंग से सराबोर हुआ जा सकता है ।
बारिश के इस मौसम में रेडियोवाणी पर आपको मोमिन ख़ां मोमिन का कलाम सुनवाने का मन कर रहा है । मोमीन उन्नीसवीं सदी की दिल्ली के नामी शायर और हकीम थे । ग़ज़लों की अपनी ख़ास फारसी शैली और अपने 'तख़ल्लुस' 'मोमीन' के बेहद ख़ूबसूरत इस्तेमाल के लिये जाने जाते हैं । ज़रा इन 'मख़्तों' पर ग़ौर कीजिए ।
उम्र तो सारी कटी इश्के-बुतां में मोमिन |
'मोमिन' और भारतेंदु की समानता पर कबाड़ख़ाना में सिद्धेश्वर ने एक बेहतरीन पोस्ट लिखी थी । रेडियोवाणी पर 'मोमिन' की जो ग़ज़ल आपको सुनवाई जा रही है, उसे ग़ुलाम अली ने एक ठुमरी से शुरू किया है । 'का करूं सजनी आए ना बालम' । आपमें से बहुत लोगों ने इसे बड़े गुलाम अली ख़ां साहब की आवाज़ में सुना होगा । वैसे जानकारी के लिए आपको उन लोगों की फेहरिस्त बता दें, जिन्होंने 'मोमिन' की इस ग़ज़ल को गाया है । लिंक पर click करके आप यूट्यूब पर इन आवाज़ों तक पहुंच सकते हैं ।
1. बेगम अख़्तर
2. नैयरा नूर
3. फ़रीदा ख़ानम
4. पंकज उधास
इसके अलावा इस ग़ज़ल को मेहदी हसन, चित्रा सिंग और कई अन्य गायकों ने भी गाया है । तो चलिए ग़ुलाम अली की आवाज़ में सुनें ये ग़ज़ल--
singer-ghulam ali
shayar-momin
duration-9-55 minutes.
वो जो हम में तुम में करार था, तुम्हें याद हो के न याद हो |
ग़ज़ल की इबारत डॉ.शैलेश ज़ैदी के ब्लॉग 'युग-विमर्श' की इस पोस्ट से साभार । आपको बता दें कि ये मोमिन की पूरी ग़ज़ल है, जिसके चंद शेर ही गायकों ने गाए हैं । बंबई की बारिश की तस्वीर 'ट्रिब्यून' से साभार ।
