'चित्त जेथार भयशून्य' और 'एकला चलो रे' रवींद्रनाथ ठाकुर की याद में
कल गुरूदेव रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्मदिन था ।
रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना 'चित्त जेथार भयशून्य' बड़ी ही अच्छी लगती रही है । शायद बहुत बचपन में किसी पुस्तक में इसका हिंदी और अंग्रेज़ी संस्करण पढ़े थे और अपनी डायरी में उतार लिये थे । आज इंटरनेट पर यूं ही भटकते हुए ये मिला । इसके बांगला संस्रकरण की इबारत ।

'चित्त जेथार भयशून्य' का अंग्रेज़ी अनुवाद ये रहा--
Where the mind is without fear..........
Where the mind is without fear and the head is held high
Where knowledge is free
Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls
Where words come out from the depth of truth
Where tireless striving stretches its arms towards perfection
Where the clear stream of reason has not lost its way
Into the dreary desert sand of dead habit
Where the mind is led forward by thee
Into ever-widening thought and action
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.
और ये है 'चित्त जेथार भयशून्य' का वो अनुवाद जिसे बचपन वाली डायरी में उतार लिया गया था । अनुवादक का नाम नहीं पता ।
जहां चित्त भय से शून्य हो जहां हम गर्व से माथा ऊंचा करके चल सकें
जहां ज्ञान मुक्त हो
जहां दिन-रात विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर
छोटे-और छोटे आंगन ना बनाए जाते हों
जहां हर वाक्य दिल की गहराई से निकलता हो
जहां हर दिशा में कर्म के अजस्त्र सोते फूटते हों
निरंतर बिना बाधा के बहते हों
जहां मौलिक विचारों की सरिता
तुच्छ आचारों की मरू-रेती में ना खोती हो
जहां पुरूषार्थ सौ-सौ टुकड़ों में बंटा हुआ ना हो
जहां पर कर्म, भावनाएं, आनंदानुभूतियां
सभी तुम्हारे अनुगत हों
हे प्रभु, हे पिता । अपने हाथों से कड़ी थपकी देकर
उसी स्वातंत्र्य जगत में इस सोते हुए भारत को जगाओ ।
'चित्त जेथार भयशून्य' तो याद आ ही रहा है, पर आज रेडियोवाणी पर मैं आपको सुनवाने जा रहा हूं किशोर कुमार की आवाज़ में 'एकला चलो रे' । बहुत समय से ये रचना मेरे संग्रह में थी । इस मौक़े के लिए इसे दोबारा खोजा और अपलोड किया जा रहा है ।
डाउनलोड कड़ी ये रही ।
यूट्यूब पर सैमुअल गॉडफ्री जॉर्ज की आवाज़ में 'चित्त जेथार भयशून्य' का अंग्रेज़ी संस्करण
यदि तोर डाक शुने केऊ न आसे
तबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!
यदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!
यदि सबाई फिरे जाय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न जाय-
तबे पथेर काँटा
ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दलो रे!
यदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा-
यदि झड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले
आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला जलो रे!
चिट्ठाजगत Tags: चित्त जेथार भयशून्य , एकला चलो रे , Where the mind is without fear , akla chalo re , kishore kumar sings akla chalo re
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रवींद्रनाथ ठाकुर की एक रचना 'चित्त जेथार भयशून्य' बड़ी ही अच्छी लगती रही है । शायद बहुत बचपन में किसी पुस्तक में इसका हिंदी और अंग्रेज़ी संस्करण पढ़े थे और अपनी डायरी में उतार लिये थे । आज इंटरनेट पर यूं ही भटकते हुए ये मिला । इसके बांगला संस्रकरण की इबारत ।
'चित्त जेथार भयशून्य' का अंग्रेज़ी अनुवाद ये रहा--
Where the mind is without fear..........
Where the mind is without fear and the head is held high
Where knowledge is free
Where the world has not been broken up into fragments by narrow domestic walls
Where words come out from the depth of truth
Where tireless striving stretches its arms towards perfection
Where the clear stream of reason has not lost its way
Into the dreary desert sand of dead habit
Where the mind is led forward by thee
Into ever-widening thought and action
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.
और ये है 'चित्त जेथार भयशून्य' का वो अनुवाद जिसे बचपन वाली डायरी में उतार लिया गया था । अनुवादक का नाम नहीं पता ।
जहां चित्त भय से शून्य हो जहां हम गर्व से माथा ऊंचा करके चल सकें
जहां ज्ञान मुक्त हो
जहां दिन-रात विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर
छोटे-और छोटे आंगन ना बनाए जाते हों
जहां हर वाक्य दिल की गहराई से निकलता हो
जहां हर दिशा में कर्म के अजस्त्र सोते फूटते हों
निरंतर बिना बाधा के बहते हों
जहां मौलिक विचारों की सरिता
तुच्छ आचारों की मरू-रेती में ना खोती हो
जहां पुरूषार्थ सौ-सौ टुकड़ों में बंटा हुआ ना हो
जहां पर कर्म, भावनाएं, आनंदानुभूतियां
सभी तुम्हारे अनुगत हों
हे प्रभु, हे पिता । अपने हाथों से कड़ी थपकी देकर
उसी स्वातंत्र्य जगत में इस सोते हुए भारत को जगाओ ।
'चित्त जेथार भयशून्य' तो याद आ ही रहा है, पर आज रेडियोवाणी पर मैं आपको सुनवाने जा रहा हूं किशोर कुमार की आवाज़ में 'एकला चलो रे' । बहुत समय से ये रचना मेरे संग्रह में थी । इस मौक़े के लिए इसे दोबारा खोजा और अपलोड किया जा रहा है ।
डाउनलोड कड़ी ये रही ।
यूट्यूब पर सैमुअल गॉडफ्री जॉर्ज की आवाज़ में 'चित्त जेथार भयशून्य' का अंग्रेज़ी संस्करण
तबे एकला चलो रे।
एकला चलो, एकला चलो, एकला चलो रे!
यदि केऊ कथा ना कोय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि सबाई थाके मुख फिराय, सबाई करे भय-
तबे परान खुले
ओ, तुई मुख फूटे तोर मनेर कथा एकला बोलो रे!
यदि सबाई फिरे जाय, ओरे, ओरे, ओ अभागा,
यदि गहन पथे जाबार काले केऊ फिरे न जाय-
तबे पथेर काँटा
ओ, तुई रक्तमाला चरन तले एकला दलो रे!
यदि आलो ना घरे, ओरे, ओरे, ओ अभागा-
यदि झड़ बादले आधार राते दुयार देय धरे-
तबे वज्रानले
आपुन बुकेर पांजर जालियेनिये एकला जलो रे!
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