'राह देखा करेगा सदियों तक छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’ : मीना कुमारी की याद में
मीना आपा के भीतर कोई चंचल-शोख़ और मन की उड़ान भरती कोई बेफिक्र लड़की रही होगी...शायद कभी...क्या पता।
पर उनके जीवन पर उदासी का ग्रहण इतना गहरा था कि वो लड़की कहीं बिला गयी। हिरा गयी।
और देखिए तो...ऐसे किरदारों में वो ख़ूब खिलीं—जहां कुछ छूट रहा है, जहां हथेली में से रेत
की तरह ख़त्म हो रहा है कुछ। वीरान और उजाड़ दुनिया के किरदार, जिनके हिस्से में उनके मन का आकाश नहीं आया। उस पर शाम के सूरज ने गुलाल नहीं
बिखराया। उदास शामों, गुमसुम सुबहों और मनहूस रातों वाले किरदार।
‘ये
बिखरी ज़ुल्फ़ें ये खिलता कजरा/ ये महकी चुनरी ये मन की मदिरा/ ये सब तुम्हारे लिए
है प्रीतम/ मैं आज तुमको जाने ना दूंगी’।
....और सामने वाला हाथ झटककर चल देता है। एक स्त्री के वजूद, उसके अरमानों और उसकी तमन्नाओं को धता बताकर। ख़्वाब देखना कोई कुसूर नहीं।
क्या रहे होंगे उनके ख़्वाब। और कैसे किरच-किरच बिखरे होंगे, क्या पता--
‘पंछी से छुड़ाकर उसका
घर
तुम अपने घर पर ले आये
ये प्यार का पिंजरा मन भाया
हम जी भर-भर कर मुस्काये
जब प्यार हुआ इस पिंजरे से
तुम कहने लगे आज़ाद रहो’
38 बरस की उम्र क्या होती है। सिर्फ़ 38 बरस। इन अडतीस बरसों में कितने दिन बोझिल
और उदास बीते होंगे मीना आपा के। तभी तो उनके लिखे में दर्द छलक-छलक पड़ता है।
आबला-पा कोई इस दश्त में आया होगा
वर्ना आँधी में दिया किस ने जलाया होगा।।
मीना ये कहते हुए चली गयीं--
‘राह देखा करेगा सदियों तक
छोड़ जाएँगे ये जहाँ तन्हा’
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