आईये आज फिर नीरज को सुना जाए । ये उनका एक प्रसिद्ध गीत है । बाद
*ऑडियो--अनूप जी के संग्रह से ।
चांदनी में घोला जाये फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलाई जाए थोड़ी-सी शराब
होगा जो नशा यूं तैयार वो प्यार है प्यार ।।
आधी रात जुहू पर उतर, कर रहा हो चांद जब मुकाम
और वहीं टहल रहे हों फूल, तितलियों की गोरी बाहें थाम
ऐसे वक्त आता है जो ज्वार वो प्यार है प्यार ।।
लेके हाथ दर्द की क़लम, आंसुओं में स्वप्न घोल-घोल
लिख रही हो पाती पी के नाम, जब कोई कली लटों को खोल
तब जो छेड़ता है दिल के तार, वो प्यार है प्यार ।।
आईने को सामने बिठा, अबरूओं की तेज़ करके धार
अपने से ही करके आंखें चार, अपने हुस्न पे खुद हो निसार
मुस्कुराता है जो बार बार, वो प्यार है प्यार ।।
लड़खड़ाते हों उमर के पांव, जब ना कोई दे सफर में साथ
बुझ गए हों राह के चिराग़, और सब तरफ़ हो काली रात
तब जो चुनता है डगर के ख़ार, वो प्यार है प्यार ।।
चुप हो जब ज़मीनो-आसमान, गुनगुनाती हो ना जब कोई बीन
सर किसी मज़ार पर टिका, रो रही हो जिंदगी हसीन
तब जो बनके आता है क़रार, वो प्यार है प्यार ।।
आप ने तो नए साल के तोहफे में मेरी फरमाइश पूरी कर दी।
ReplyDeletesir jee yah chandani nahi shokhiyon me ghola jaye fulo ka sabab.... narayan narayan
ReplyDeleteआईने को सामने बिठा, अबरूओं की तेज़ करके धार
ReplyDeleteअपने से ही करके आंखें चार, अपने हुस्न पे खुद हो निसार
मुस्कुराता है जो बार बार, वो प्यार है प्यार ।।
लड़खड़ाते हों उमर के पांव, जब ना कोई दे सफर में साथ
बुझ गए हों राह के चिराग़, और सब तरफ़ हो काली रात
तब जो चुनता है डगर के ख़ार, वो प्यार है प्यार ।।
वाह युनुस भाई अपने यह आज का ही दिन नहीं ये मेरा पूरा साल ही धन्य कर दिया इसे सूना कर -आख़िरी लाईनें पढ़ सुनकर तो आँखें नम हो आयीं ! बहुत बहुत शुक्रिया !
कारवाँ गुजर गया मेरे पसंदीदा गीतों में से एक है, शोखियों में घोला जाये वाले प्रेम पुजारी के अन्य गीत भी काफी मधुर हैं। लेकिन ओरिजिनल को सुनकर कुछ अलग ही मजा आया जो बिल्कुल ही अलग है। युनूस भाई शुक्रिया।
ReplyDeleteक्या इत्तेफाक है कि हम भी आज एक दूसरे कवि की रचना सुना रहे हैं - कवि प्रदीप की।
नारद जी
ReplyDeleteये उसी गीत का मूल रूप है । चांदनी में घोला जाये फूलों का शबाब ।
जिसे देव आनंद ने अपनी फिल्म के लिए बदलवाकर 'शोखियों में घोला जाए' करवा दिया था ।
आप इस मूल गीत को सुनें जिसकी इबारत फिल्मी गाने से एकदमै अलग है ।
युनुसभाई,
ReplyDeleteआपकी जय हो और साथ में अनूप जी की भी जय हो ।
नये साल का इससे बेहतर तोहफ़ा क्या हो सकता है । आगे भी इन्तजार रहेगा । वैसे १-२ दिन में हम एक स्पेशल कव्वाली सुनवाने का सोच रहे हैं फ़िल्म "तुम्हारा कल्लू" से ।
waah to ye hai us geet ka adhaar jo hamare ptiya geeto me ek hai... vaise Yunus ji kya ye batayenge ki is geet me jo sansodhan hua vo bhi Neeraj ji dwara kiya gaya ya kisi aur dwara...?? kyo ki uske bhi bol bahut sundar hai.n
ReplyDeleteमज़ा आ गया सुनकर...नीरज़ जी का अपना अलग अंदाज़ है गाने का कही से ए भाई ज़रा देख के चलो (मेरा नाम जोकर)मिले तो ज़रूर सुनवाईयेगा....नया साल मंगलमय हो...जै हो
ReplyDeleteवाह वाह ओरिजिनल का मजा ही कुछ और है
ReplyDeleteयूनुस भाई, आपकी तारीफ करने योग्य शब्द नहीं हैं मेरे पास. हैं. आप तो जादूगर हैं. अपनी किशोरावस्था में नीरज जी से न जाने कितनी बार यह गीत सुना था. आपने फिर से उन दिनों की यादें ताज़ा कर. पिछले दिनों यहां जयपुर में नीरज जी से कोई डेढेक घण्टे बतियाने का सौभाग्य मिला था. उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग मेरे पास है. लिप्यंतरण करना है.है. अगर किसी तरह नीरज जी की आवाज़ में छुपा रुस्तम वाली कव्वाली भी सुनवा सकें तो मज़ा आ जाए.
ReplyDeleteनव वर्ष शुभ हो !
ReplyDeleteआपको ममता जी व अनूप भाई को शुभ कमनाएँ - नीरज जी के स्वर मेँ गीत सुनना बडा अच्छा लगा
- लावण्या
युनुस भाई:
ReplyDeleteइस गीत को अपने ब्लौग पर जगह देने और इतने लोगों तक पहुँचाने का शुक्रिया ।
मेरे पास नीरज जी का मंच से सुनाया गया लगभग हर गीत है । नहीं ये तो कुछ ज़्यादा हो गया ... :-) हर गीत तो नहीं हां काफ़ी सारे गीत है । कुछ DVD और VCD भी हैं । विमल जी की फ़रमाइश ’ए भाई ज़रा देख कर चलो..’ मेरे पास है । आप को भेजता हूँ ।
युनूस भाई, इसे 'देर आयद-दुरुस्त आयद कहूं' या कुछ और कि इतनी दिनों बाद आपका यह लेख पढ पाया और नीरजजी की आवाज में गीत सुन पाया।
ReplyDeleteआप सचमुच में वक्त को लौटाने का अद्भुत और अविश्वसनीय काम, अत्यन्त सफलतापूर्वक कर रहे हैं। हम सब आपके ऋणी हैं।
यदि सम्भव हो तो अनूपजी से, नीरज की ही आवाज में उनके कुछ और गीत सुनवाने का उपकार कीजिएग। पहला गीत है - 'अपनी बानी, प्रेम की बानी, हर कोई इसको ना समझे। यो तो इसे नन्दलला समझे या इसे बृज की लली समझे।' दूसरा गीत - 'हम पत्ते तूफान के', तीसरा गीत-'मां जल भरन न जाऊं, मोहे छेडे एक पडौसी छोरा।'
ईश्वर आपको और अनूपजी को लम्बी उम्र दे।
आज ही ये बात पता चली की ये नीरज जी की रचना है. ये गीत तो बहुत पसंद है... अच्छी प्रस्तुति रही ये भी.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति है! आनन्द प्राप्त हुआ! धन्यवाद!
ReplyDeleteआनंदम् आनंदम्।
ReplyDeleteयूनुस भाई की जैजैकार
ये प्यार है, ये प्यार है , ये प्यार