फिल्म 'छोटी-सी बात' के गाने: तीसरा भाग-जानेमन जानेमन तेरे दो नयन
संगीतकार सलिल चौधरी का संगीत-संसार बेहद प्रयोगधर्मी और साहसिक कम्पोज़ीशन्स से भरा पड़ा है । और हम सलिल चौधरी के 'विकट प्रशंसकों' में से एक हैं । सलिल दा को कोई हमारे रहते 'कुछ' कह दे तो पहले हम शास्त्रार्थ करेंगे और फिर 'मल्लयुद्ध' पर भी उतर जायेंगे । दीवाने तो भई ऐसे ही होते हैं ना । रेडियोवाणी पर इन दिनों सलिल चौधरी के संगीत से सजी फिल्म 'छोटी सी बात' के गानों का उत्सव चल रहा है । और इसकी वजह ये है कि ये गाने हमेशा से मेरे दिल के क़रीब रहे हैं । इस फिल्म में केवल तीन ही गीत हैं । पहली कड़ी में हमने सुना--'ना जाने क्यों होता है ये जिंदगी के साथ' और दूसरी कड़ी में सुना--'ये दिन क्या आये' । इंटरनेट पर ये फिल्म यहां देखी जा सकती है ।
आज ज़रा येसुदास की बात हो जाए । रेडियोवाणी पर के.जे.येसुदास के गानों की श्रृंखला बहुत दिनों से ऐजेन्डे में है । येसुदास हिंदी सिनेमा के विरले गायकों में से एक रहे हैं । येसुदास वैसे तो मलयालम, तमिल और कन्नड़ के प्रख्यात गायकों में से रहे हैं और दक्षिण भारत में पूजे भी जाते हैं । पर हिंदी में येसुदास को लाने का श्रेय सलिल दा को ही प्राप्त है । हालांकि ये भ्रांति है कि रवीन्द्र जैन उन्हें हिंदी में लेकर आए । सलिल दा ने सबसे पहले उनसे सन 1975 में फिल्म 'छोटी सी बात' का यही गीत गवाया था जिसके बोल थे--'जानेमन जानेमन' । इसमें आशा भोसले उनके साथ थीं । इसके बाद सन 1977 में आया 'आनंद महल' का गीत 'नी सा गा मा पा' । इस दौरान रवीन्द्र जैन ने सन 1976 में उन्हें 'चितचोर' में मौक़ा दिया । इसके बाद तो येसुदास हिंदी सिने-संगीत में एक सेन्सेशन बन गए । खु़द कई लोग मुझे ई-मेल पर कहते हैं कि येसुदास के गानों पर एक श्रृंखला की जाए । HMV की येसुदास के हिट्स की सी.डी. कई बरसों से 'बेस्टसेलर' की
लिस्ट में है । अब ये तो आप बताएं कि येसुदास इतने 'अच्छे' क्यों लगते हैं ।
फिलहाल तो आईये इस गीत में डूब जायें । पहले ये जान लीजिये कि सन 1976 की बिनाका गीत माला की वार्षिक हिट परेड में ये गाना इक्कीसवें नंबर पर रहा था । उस साल का सरताज गाना क्या था, आप यही सोच रहे हैं ना । जवाब है--'कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है' । दूसरे नंबर पर था-'इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल ( धरम करम ) और तीसरे नंबर पर--'मैं तो आरती उतारूं रे' ( जय संतोषी मां ) पूरी फेहरिस्त यहां
देखिए ।
'छोटी सी बात' के गीत योगेश जी ने लिखे थे । इस गाने की ट्यून बड़ी महत्त्वपूर्ण है । सलिल दा ने ऐसे तेज़ रफ्तार वाले गीत बहुत कम बनाए हैं । मेटल फ्लूट सिगनेचर म्यूजिक में ही आप पर ऐसा जादू तारी कर देती है कि अपने आप ही पैर थिरकने लगते हैं । सलिल दा अपने गानों के सिगनेचर म्यूजिक और इंटरल्यूड्स पर कितनी मेहनत करते थे इसकी मिसाल उनके पूरे म्यूजिक में देखी जा सकती है । इस गाने में एक रवानी, एक प्रवाह, एक रफ्तार है जो आपको अपने साथ एक दूसरी ही दुनिया में ले जाती है । ये छेड़छाड़ भरा गाना है । जिसमें नायक-नायिका एक दूसरे पर बातों के 'तीर' चला रहे हैं । हिंदी में इतने बड़े मुखड़े वाले गाने कम ही बने हैं । संगीतकारों के लिए ऐसी लंबी लंबी पंक्तियों को धुन में उतारना बेहद मुश्किल होता है और जब धुन पर गाना रचा जाये तो ये सारी मुसीबत गीतकार के सिर पर आ जाती है ।
आईये गीत सुना जाये ।
जानेमन जानेमन तेरे दो नयन चोरी चोरी लेके गए देखो मेरा मन ।
मेरे दो नयन चोर नहीं सजन, तुमसे ही खोया होगा कहीं तुम्हारा मन ।
तोड़ दे दिलों की दूरी, ऐसी क्या है मजबूरी दिल से दिल मिलने दे
हां, अभी तो हुई है यारी, अभी से ये बेक़रारी, दिन तो ज़रा ढलने दे ।
यही सुनते, समझते, गुज़र गाए जाने कितने ही सावन ।
जानेमन जानेमन ।।
संग-संग चले मेरे, मारे आगे पीछे फेरे, समझूं मैं तेरे इशारे, जा,
दोष तेरा है ये तो, हर दिन जब देखो, करती हो झूठे वादे
तू ना जाने, दीवाने, दिखाऊं तुझे कैसे मैं ये दिल की लगन
जानेमन जानेमन ।।
छेड़ेंगे कभी ना तुम्हें, ज़रा बतला दो हमें, कब तक हम तरसेंगे
ऐसे घबराओ नहीं, कभी तो कहीं ना कहीं, बदल ये बरसेंगे
क्या करेंगे, बरस के कि जब ये मुरझायेगा ये सारा चमन ।
जानेमन जानेमन ।।
ये रहा इस गाने का वीडियो--
9 comments:
ऐसे घबराओ नहीं, कभी तो कहीं ना कहीं, बदल ये बरसेंगे
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आज तो बरसे और जम के बरसे!!!
बहुत मजा आया। :)
क्या करेंगे, बरस के कि जब ये मुरझायेगा ये सारा चमन ।
मधुर गीत में यथार्थ भी है। सुंदरता के साथ।
सुंदर !
येसुदास जी को मैं क्यों पसंद करता हूँ...... ये प्रश्न एक प्लॉट है मेरी एक आने वाली पोस्ट का. इस सुमधुर गीत के लिए आपका शुक्रिया यूनुस भाई.
आप तो रस वर्षा कर रहे हैं । 'नास्टेल्जिया' वही होता होगा जो इस गीत को सुनने के बाद लगा ।
यह फिल्म एक और विशेषता लिए हुए थी । इसमें 'जूम लेंस' के प्रयोग से 'ट़ाली शाट' का प्रभाव बडी सुन्दरता से प्रस्तुत किया गया था ।
युनूस भाई,
येशुदास को बहुत सालों पहले लता अलंकरण से नवाज़ा जा चुका था. मैने उन्हें गाते हुए मंच पर पास से देखा था. उनकी डायरी पर नज़र गई.सारी कविता मळयालम में लिखी हुई और उसके नीचे पाश्चात्य पध्दति से लिखे हुए नोटेशन्स . मजाल है कि कोई शब्द ग़लत हो जाए या तलफ़्फ़ुज़ बिगड़ जाए. मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि येशुदास मन्ना डे का एक बेहतरीन विकल्प हो सकते थे लेकिन रवीन्द्र जैन,राजकमल,हेमलता, और सलिल दा तक ही महदूद रह गया इस महान गुलूकार का कारनामा.येशुदास की आवाज़ में दक्षिण की कस्तूरी महकती है.
येसुदास के महत्वपूर्ण गीत की आपने चर्चा नहीं की। फ़िल्म स्वामी का गीत - का करूँ सजनी आए न बालम। दरअसल छोटी सी बात के इस गीत से येसुदास ने कदम तो रखा पर यह फ़िल्म और गीत देर से जन-जन तक पहुँचे। येसुदास को पहचान स्वामी के गीत से ही मिली। बंगला उपन्यास पर बनी यह फ़िल्म और गीत दोनों मशहूर हुए जिसके बाद चितचोर से येसुदास ने बहुत ख़्याती पाई। येसुदास का एक और सुरीला गीत है हेमलता के साथ राजश्री प्रोडक्शन्स की फ़िल्म गोपालकृष्णा से -
नीर भरन का करके बहाना
मेरे लिए ज़रा बोझ उठाना
राधा रे राधा जनमा किनारे आना रे
हो सके तो यह दोनों गीत (स्वामी और गोपालकृष्ण) प्रस्तुत कीजिए।
shukriya jaankaari bhari is post ke liye. Jaisa keh chuka hoon is srinkhla ka pehla geet mera sabse priya raha hai.
सलिल चौधरी, येशुदास, और जानेमन-जानेमन. वाकई खो गया मन. शुक्रिया.
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