फिल्म कालका का रूला देने वाला गीत बिदेसिया रे । संगीत जगजीत सिंह ।
इस गाने को मैं एक लंबे अरसे से खोज रहा था ।
आश्चर्य की बात ये थी कि कभी विविध-भारती के संग्रहालय में हुआ करता था । लेकिन उसके बाद यह टेप बहुत ख़राब हो गया और किसी वजह से हमने ये गाना खो दिया । तब से मन में विकलता थी कि आखि़र कहां से ये गाना मिलेगा । कुछ महीनों पहले मीत ने इसी फिल्म के एक गाने की उपलब्धता के बारे में पूछा तो जैसे वो विकलता पुन: हरी हो गयी । शत्रुघ्न सिन्हा इस फिल्म के मुख्य कलाकार और संभवत: निर्माता भी थे । हालांकि नाम उनके बड़े भाई डॉ. लखन सिन्हा का दिया गया है । सोचा कि चलिए इस गाने को शत्रुघ्न सिन्हा के दफ्तर से ही प्राप्त किया जाए । फोन किया और अपनी बात कह दी । वहां से कहा गया कि जैसे ही उपलब्ध होता है सूचना दी जायेगी । हमारे नंबर लिख लिए गये ।
प्रतीक्षा की घडि़यां पसरने लगीं । कोई उत्तर नहीं आया तो हम समझ गये कि संभवत: प्रोड्यूसर महोदय के पास भी गाना नहीं है । इंटरनेटी खोजबीन में दो-एक जगह पर गाना अपलोडेड तो दिखा लेकिन वहां भी दिक्कतें थीं । ख़ैर....किसी तरह से हमारे सहयोगी स्त्रोतों ने मदद की और इस फिल्म का बाक़ायदा रिकॉर्ड उपलब्ध करवाया । अब हमारे पास कालका फिल्म के सभी गाने हैं । और एक एक करके इन्हें प्रस्तुत किया जायेगा रेडियोवाणी पर । बाज़ार में ये गाने उपलब्ध नहीं हैं । सुपर म्यूजिक ( सुपर कैसेट्स नहीं ) पर ये रिकॉर्ड निकला है । 'कालका' की डी.वी.डी. अगर किसी को उपलब्ध हुई तो कृपया सूचना दें । मैं बहुत विकलता से इसे खोज रहा हूं ।
बहरहाल...ये एक बिदेसिया है । ( यहां पटना डेली से संजय उपाध्याय के निर्देशन में हुए 'बिदेसिया' नाटक के मंचन की एक तस्वीर दी जा रही है, जिसके बारे में डॉ. अजीत ने बताया)
'बिदेसिया' ...लोकगीतों की वो शैली है जिसमें परदेस में पैसा कमाने गए मज़दूर अपने गांव और अपने आत्मीयों को विकलता से याद करते हैं ।
ये बिदेसिया भी आपकी आंखें नम कर देगा । इसे आप जल्दीबाज़ी में ना सुनें । दस मिनिट चौंतीस सेकेन्ड का समय हो तभी तसल्ली से आंखें बंद करके इस गाने को अपने भीतर उतरने दें ।
बिदेसिया आमतौर पर आपको रूला देने में सक्षम होता है । ये बिदेसिया भी आपकी आंखें नम कर देगा । इसे आप जल्दीबाज़ी में ना सुनें । दस मिनिट चौंतीस सेकेन्ड का समय हो तभी तसल्ली से आंखें बंद करके इस गाने को अपने भीतर उतरने दें । और फिर इसका असर देखें । अगर आप पर इस गाने का असर बचा हुआ है तो समझिये कि आपके भीतर इंसानियत के अंश बचे हुए हैं । और अगर ये गाना आपके भीतर विकलता और नमी पैदा नहीं करता तो आपको चिंता करनी चाहिए कि कहीं आप एक मशीन में तो नहीं बदल रहे हैं ।जगजीत सिंह ने बहुत कम फिल्मों में संगीत दिया है । जगजीत संगीतकार के तौर पर कई बार बड़े ज़हीन नज़र आए हैं । ख़ासकर इस फिल्म के सभी गाने अनमोल हैं । इस गाने की बात चल रही है तो आपको बता दूं कि जगजीत ने अपने पसंदीदा युवा गायकों की पूरी फौज जमा की है इस गाने के लिए । इसे जगजीत सिंह के अलावा आनंद कुमार सी., विनोद सहगल, घनश्याम वासवानी, अशोक खोसला, मुरली वग़ैरह ने गाया है ।
वास्तव में जो ठेठ बिदेसिया होता है उसमें साज़ इस तरह के इस्तेमाल नहीं होते । वो तो शहरों में दिन भर पसीना बहाकर रात को अपनी यादों की महफिल जमाने वाले मज़दूरों का बेचैन गीत होता है, जिसमें ढोलक, मंजीरे इत्यादि का इस्तेमाल किया जाता है । लेकिन रबाब और गिटार जैसे साज़ों से सजाकर भी जगजीत ने इस गीत की आत्मा से न्याय किया है । इस गाने में बिदेसिया वाली वो विकलता है । वो नमी है । पैसों की ख़ातिर शहर में आए मज़दूरों के भीतर पलने वाले अपराध बोध का बयान है ।
देखा जाये तो हम सब गांव छोड़कर शहरों में काम करने वाले एलीट मज़दूर ही तो हैं । या और ठीक से कहें तो अपने शहर को छोड़कर और बड़े शहर में काम खोजने आए एलीट मज़दूर । इस लिहाज से ये हमारा भी गीत है । आईये अपने मन का ये गीत सुनें ।
बिदेसिया रे ।। हो बिदेसिया रे ।। घरवा के सुध-बुध सब बिसराइये, कंहवा करे है रोजगार रे बिदेसिया गांव-गली सब बिछड़े रामा, छूटी खेती-बारी दो रोटी की आस में कैसी दुरगत भईल हमारी रे । बिदेसिया ।। याद बहुत आवै है अपने, घर का छोटा-सा अंगना । सूखी रोटी-चटनी परसके पिरिया का पंखा झलना । किसको बतावैं, कैसे बतावैं, आफतिया में जान रे । बिदेसिया ।। पुरखन की बीघा-भर खेती, धर आए थे रहन कभी । ऊह को छुड़वाने की खातिर, पैसा जोड़ ना पाए अभी । का हुईहै जो आती बिरिया भाई को दीन्ही जुबान रे । बिदेसिया ।। घर मां अबके बार हुई है, खबसूरत-सी इक बेटी । हमरे कहिन पे नाम रखिन है ऊ गुडि़या का भागमती। दिन भर खेल-खिलावत हुईहै, हमारी गुडिया माई रे । बिदेसिया ।। आज ही गांव से दादू की इक लंबी चिठिया आई है । खबर दिये हैं भादों में छोटी बहना की सगाई है । सुबहो से लईये साम तलक सब राह तकिन हैं हमारी रे ।। बिदेसिया ।। सूरतिया को देखेंगे कब इह तो राम ही जानै रे । मनवा को समझैके हारे, मनवा कछु ना मानै रे । सीने पे धर लीन्हे पत्थर, खुल ना पईहैं जुबान रे । बिदेसिया ।। खेलत हुईहै घाट पे जईके, हमरा नन्हा-सा बिटवा । खुसी-खुसी घर लावत हुईहै टुकना में भरके कछुआ । हंसत बढ़त जो देखते उह को अईसा भाग कहां रे । बिदेसिया ।।
24 comments:
आह ! क्या कहूँ यूनुस भाई. शुक्रिया ?? अभी नहीं .. अभी तो "कैसे कैसे रंग ....." बाक़ी है. न जाने कितने सालों बाद सुना ये गीत. बता नहीं सकता क्या कहना चाहता हूँ ..... नहीं बता सकता यूनुस भाई ...
यूनुस भाई, आपके गाने ने रुला दिया। सुबकी ले ले के रो पडा। पता नही क्यों?
युनुसजी,
अभी जरा हाई हैं, १० किमी एक सांस में दौडने और कुछ बीयर चांपने के कारण :-)
लेकिन इसके बाद भी ३ बार सुन चुके हैं और अभी मन नहीं भरा ।
बाकी कमेंट सोबर होने के बाद देंगे जिससे ज्यादा सेंटी न लिख पायें :-)
भाई आपने बिदेसिया का ज़िक्र किया तो दौडा हुआ पहुँचा और सुन आया. सच है कि औद्योगीकरण और विपन्नता से जन्मा यह बिदेसिया लोकरूप क्षेत्र विशेष का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज़ है. पेट पालने की मजबूरी में परदेस कमाने गये व्यक्तियों के दर्द भरे जीवन और उनके संबंधियों के सपनों और व्यथाओं को स्वर देता यह लोकनाट्य-गायन फ़ॉर्म भिखारी ठाकुर की देन है जिनकी लोकप्रियता के डंके बजा करते थे-http://dilli-darbhanga.blogspot.com/2007/11/blog-post_25.htmlथे- लेकिन माफ़ करें यहाँ जगजीत सिंह जो रायता फैला रहे हैं उसका संबंध उस बिदेसिया से नहीं है जिसकी बात हम कर रहे हैं. यह बंबइया बिदेसिया है. आपकी भावनाओं(पढें भावुकता)का सम्मान करते हुए सुन लिया.
आपने कहा और हमने तुरंत १० मिनट ३६ सेकंड का समय निकाला, खुद भाव विह्वल हुए और तुरंत भईया को फोन किया कि शाम को यूनुस जी के ब्लॉग पर जाकर अम्मा को गान सुना देना, क्योंकि जो भाव हैं वो जब हमें तब रुला देते हैं जब हमने उनकी जुबानी सुना है तो फिर उनके तो अपने दर्द हैं। हम जैसे लोग तो शहर से निकले और शहर में आ गए, लेकिन ये संवेदनाएं जिन्होने आँख नम कर दीं वो तो माँ बाबूजी की ज़ुबानी ही सुन है...जो आज से ५० साल पहले शहर के कुछ बीघा ज़मीन को रेहन रख कर चले आए होंगे, उसे दुगुना तिगुना करने की उम्मीद से...और हर बार मन में ये क़सक रह गई होगी कि अबकी बड़े भईया को क्या जवाब देंगे....?
बाबूजी जब भी गाँव जाते वो कहते घर जा रहा हूँ...जब तक वो रहे हमारा स्थाई निवास अगर उनको लिखना होता तो गाँव का ही पता लिखा जाता...गाने उनकी सारी बातें याद दिला दीं। धन्यवाद...!
इरफान जी के बाताये पते पर जा कर भिखारी ठाकुर को भी सुनने की कोशिश की मगर सफल नही हुए, इच्छा है उस वर्ज़न को भी सुनने की...!
यूनुस भाई,
क्या कमाल की रचना निकाल कर लाये हैं आप.
मेरे पास कालका का कैसेट तो न जाने कब से है, लेकिन इस गीत का असली रसास्वादन आपकी टिप्पणी पढ कर ही कर पाया. बधाई. बल्कि आभार!
यह बिदेसिया गीत सुना और इरफान जी के लिंक पर भिखारी ठाकुर को भी। दोनो ही मर्म को छू गये।
बहुत सुन्दर पोस्ट।
बहुत दिनों बाद शायद फ़िल्म देखने के बाद शायद पहली बार इस तरह सुना है कोरस खूब बढ़िया है..तान भी जो ली गई है उसके लिये वाकई जगजीत सिंह बधाई के पात्र है..और आप हमारे लिये चुनकर लाए हैं इसके लिये आपका भी बहुत बहुत शुक्रिया
युनुस जी इस गीत ने घर की याद कर दी।अपने गाँव -घर से दूर है ना।
जगजीत सिंह ने ऐसा भी कुछ गाया है पता नही था।
युनूस भाई,
क्या गाना सुनवाया आपने ..मन भर आया :-((
जीते रहीये ..
हाँ , 'बिदेसिया ' तो दूसरे देस पर अपने ही देस मेँ रहनेवाले होते हैँ
हमारी तरह दूसरी माँ का आम्चल थामे तो ' "परदेसिया " ही कहलाते हैँ
-- लावण्या
यूनुस भाई,
पारंपरिक बिदेसिया के संगीत के इतर जगजीत सिंह जी के संगीत से सजा ये बिदेसिया गान सुना. शुरू में सुनना कुछ अजीब सा लगा पर जब वही अनुभूति होनी शुरु हुई तो फ़िर लगा कि प्राण तो वही है ना.. सिर्फ़ शक्ल बदल गयी है.
सचमुच, बहुत अच्छा लगा.
यूनुस जी मै बिदेसिया पहली बार सुन रही हूँ, एक साथ में तीन बार सुन चुकी हूँ। और टिप्पणी लिख कर फ़िर सुनने जा रही हूँ।
वाकई बड्डे गजब का गीत लाये हो.
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
शुभकामनाऐं.
आपने बहुत ही बढिया गीत सुनवाया, आपसे कुछ बुंदेली लोकगीत, आल्हा सुनवाने का अनुरोध है।
गीत के भाव वही हैं पर जो लोक गीत के रूप में बिहार में सुना है वो दिल को और छूता है। इस अलग सी पेशकश के लिए धन्यवाद !
बिदेसिया.....
शक्ल तो बदल गयी है, पर क्या प्राण वही है?
मैं खु़द अपने आप से पूछ रहा हूँ, वो भी तब जब मैंने अपनी एक टिप्पणी रख दी है.
शायद नहीं!
ये एक प्रवासी मजदूर की विकल विरह वेदना तो हो सकती है, पर बिदेसिया.. कतई नहीं.
आपने जैसा लिखा - वैसा ही शत प्रतिशत असर हुआ - सबेरे से शाम घूमता रहा - बड़े समय पहले "चिट्ठी आई है" भी, चाहे तकनीकी तौर पर जैसा भी रहा हो, झकझोर का असर जमा गया था - छूटे घर समय का अपना तराना अंतरों में सर उठाने लगा - थोड़ी देर बाद बड़ा अजीब सा सवाल आया ज़हन में कि - "तकनीकी" तौर पर हम सब "घर" से एक-दो पुश्त परे ही हैं पर धीमे समय और छोटी जगह की बड़ी यादें भरें हैं - अगली पुश्त के पास इतना समय होगा ? - साभार मनीष [ दो हफ्ते से थोड़ा नियम अस्त व्यस्त है - तीन चार दिन में मौसम सुधरने के आसार हैं ]
शुक्रिया रोशनी प्रचार दिस वाला विजेट लगाना लगातार टल रहा था । :) आपके इसरार पर फौरन लगा दिया है ।
यूनुस जी,
बिदेसिया पर आपकी ये भेंट आज देखी...आपको याद होगा कुछ दिनों/महीने पहले मैंने भी आपसे बिदेसिया पर आपसे मदद मांगी थी...मेरा काम तो हो गया मगर ये नया गीत भी अच्छा लगा....दरअसल, जगजीत जी का ये बिदेसिया ओरिजनल नहीं है....भिखारी ठाकुर कृत बिदेसिया नाटक में भिखारी ने उस वक्त प्रचलित तमाम लोकधुनों का प्रयोग कर अनमोल गीत रचे हैं...सिर्फ़ ढोलक और झाल के साथ गाए जा सकते हैं ये गीत....जामिया में हमने भी बिदेसिया पर आधे घंटे का टी.वी. मैगजीन बनाया है जो अच्छा बना है....जल्दी ही इसे नेट पर डालने की कोशिश करूंगा...दिल्ली की एक संस्था है "रंगश्री"..जो भोजपुरी नाटकों के लिए जानी जाती है....हमने उन्ही की मदद ली थी...स्टेज पर किए जाने वाले नाटक को लाइव स्टूडियो में करवाना अनूठा अनुभव था...
बहरहाल, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया..
निखिल आनंद गिरि
www.hindyugm.com
mujhe yah gaana bhejen...
sksaagartheocean@gmail.com
I could not find the player in the post so could not listen the song. Can you help?
bhikhari thakur ke baare me yaha padhe
http://bhojpuriallsongdownload.blogspot.com/2010/06/bhojpuri-poets-i-bhikhari-thakur.html
youtube pe ek link mil gaya. http://www.youtube.com/watch?v=OZ-JHCqEjG4&feature=related
http://www.youtube.com/watch?v=UtOHYD6Tj18
film ka ye link hain.
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