रेडियोवाणी पर वसंतोत्सव--वसंत की कुछ कविताएं और फिल्म आलाप का गीत-माता सरस्वती शारदे
लगभग आठ दिन की यात्रा के बाद मैं फिर से हाजि़र हूं । शायद आपमें से कुछ को पता ना हो, दरअसल विविध भारती अपने इस स्वर्ण जयंती वर्ष में कई बड़े आयोजन कर रही है । इस महीने हमने भारत पाकिस्तान की सीमा पर तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवानों के बीच जाकर एक संगीत संध्या का आयोजन किया और साथ में कई दिन उनके बीच रहकर उनसे बातें की । उनकी रिकॉर्डिंग्स कीं । जैसलमेर से आगे रामगढ़ में रहना और फिर बी.एस.एफ. के कारवां के साथ एकदम भारत-पाक सीमा के कंटीले तारों तक जाना और बबलियांवालां की उस बॉर्डर पोस्ट को देखना बेहद रोमांच, गर्व, देशभक्ति और चिंता का अहसास करा गया । ये अहसास बार बार होता रहा कि क्या दो सगे मुल्कों के बीच ऐसे कंटीले तार अच्छे लगते हैं । दोनों तरफ़ से तनी हुई बंदूकें । चलिए छोडि़ए । इस यात्रा का सचित्र-ब्यौरा जल्दी ही तरंग पर शुरू किया जायेगा ।
आज वसंत पंचमी है । रेडियोवाणी पर ये पहली वसंत-पंचमी है । जब मैं सरस्वती शिशु मंदिर भोपाल में पढ़ता था तो वसंतोत्सव मनाया जाता था । और हम सब 'वर दे वीणावादिनी वर दे' गाते थे । फिर बालसभा होती और सब बच्चे अपनी अपनी प्रस्तुतियां देते । शायद वहीं से मेरे भीतर 'बोलने' की दुनिया में जाने के संस्कार बन गये होंगे ।
वसंत पंचमी साहित्य और संगीत का पर्व होना चाहिए । पर क्या हमारे शहरों में उतनी शिद्दत से वसंतोत्सव मनाया जाता है । क्या संगीत-संध्याओं का आयोजन वसंत के बहाने हो रहा है । क्या वसंत के बहाने काव्योत्सव हो रहे हैं । ये सब सोचने की बातें हैं । शायद बाज़ार को वसंत में उतना potential नजर नहीं आया है । जितना करवा चौथ या रक्षा बंधन में नजर आता है । वसंत पंचमी पर कोशिश कीजिए कि एक केसरिया रूमाल ही रख लें । अपनी पत्नी या बहन को केसरिया वस्त्र भेंट कर दें । सरस्वती वंदना कर लें । या फिर कम से कम कुछ अच्छी कविताएं पढ़ लें । कुछ अच्छा संगीत सुन लें । कहीं और जाने की ज़रूरत नहीं है ।
पहले ज़रा सरस्वती वंदना सुन ली जाये फिल्म आलाप से । संगीत है जयदेव का ।
और ये रहीं वसंत की कुछ कविताएं । जो हमने कविता कोश से ली हैं ।
सूर्यकांत त्रिपाठी की रची सरस्वती वंदना
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे।
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे।
नव गति नव लय ताल छंद नव
नवल कंठ नव जलद मन्द्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को,
नव पर नव स्वर दे।
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
सूर्यकांत त्रिपाठी की कविता--वसंत आया
सखि, वसन्त आया
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय उर-तरु-पतिका
मधुप-वृन्द बन्दी-
पिक-स्वर नभ सरसाया।
लता-मुकुल हार गन्ध-भार भर
बही पवन बन्द मन्द मन्दतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया।
अवृत सरसी-उर-सरसिज उठे;
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया।
सुमित्रानंदन पंत की कविता--वसंत
चंचल पग दीपशिखा के धर
गृह, मग़, वन में आया वसंत
सुलगा फागुन का सूनापन
सौन्दर्य शिखाओं में अनंत
सौरभ की शीतल ज्वाला से
फैला उर उर में मधुर दाह
आया वसंत, भर पृथ्वी पर
स्वर्गिक सुंदरता का प्रवाह
पल्लव पल्लव में नवल रूधिर
पत्रों में मांसल रंग खिला
आया नीली पीली लौ से
पुष्पों के चित्रित दीप जला
अधरों की लाली से चुपके
कोमल गुलाब से गाल लजा
आया पंखड़ियों को काले-
पीले धब्बों से सहज सजा
कलि के पलकों में मिलन स्वप्न
अलि के अंतर में प्रणय गान
लेकर आया प्रेमी वसंत
आकुल जड़-चेतन स्नेह प्राण
अज्ञेय की कविता--वसंत आ गया
मलयज का झोंका बुला गया
खेलते से स्पर्श से
रोम रोम को कंपा गया
जागो जागो
जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो
पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली
सिरिस ने रेशम से वेणी बाँध ली
नीम के भी बौर में मिठास देख
हँस उठी है कचनार की कली
टेसुओं की आरती सजा के
बन गयी वधू वनस्थली
स्नेह भरे बादलों से
व्योम छा गया
जागो जागो
जागो सखि़ वसन्त आ गया जागो
चेत उठी ढीली देह में लहू की धार
बेंध गयी मानस को दूर की पुकार
गूंज उठा दिग दिगन्त
चीन्ह के दुरन्त वह स्वर बार
"सुनो सखि! सुनो बन्धु!
प्यार ही में यौवन है यौवन में प्यार!"
आज मधुदूत निज
गीत गा गया
जागो जागो
जागो सखि वसन्त आ गया, जागो!
उदय प्रकाश की कविता--वसंत
रेल गाड़ी आती है
और बिना रुके
चली जाती है ।
जंगल में
पलाश का एक गार्ड
लाल झंडियाँ
दिखाता रह जाता है.
मुझे महादेवी वर्मा की कविता याद आ रही है--धीरे धीरे क्षितिज पर उतर, आ वसंत रजनी । शायद किसी पुरानी डायरी में उतारी रखी है । मिल गयी तो जल्दी ही आप तक पहुंचाऊंगा ।
कैसा लगा आपको रेडियोवाणी का वसंतोत्सव ।
12 comments:
आज का चिट्ठा बहुत अच्छा लगा। गीत और कविताओं का चयन बहुत सुन्न्दर है साथ ही इस दिन के लिए आपके विचार और सुझाव अच्छे लगे।
आपको भी वसन्तोत्सव की शुभकामनाएं ! आपका जीवन और चिट्ठा वसन्त की तरह खिला-खिला रहे!
जैसलमेर की जानकारी आपने आपने रेडियोनामा पर दी थी। आशा है आपकी देशभक्ति की भावना जिसके यहां सिर्फ़ छींटें पड़े है वहां खूब छलकेगी। कार्यक्रम की प्रतीक्षा है।
और हां, मुबारक ! आप रामगढ के शोले हो गए।
वाह,सच में बसंत खिल गया… यूनुस जी हमारे यहाँ तो बड़े धूम से ये उत्सव मनाया जाता है । पूरे शहर मे बच्चे माँ शारदा की मूर्तियाँ व झाँकी सजाते हैं । छोटे छोटे बच्चों के हाथों मे पूजा की थाली बड़ी प्यारी लगती है…कविताओ ने स्कूल की याद दिला दी । शुक्रिया
यूनुस भाई,
बिल्कुल आपके ही शब्दों में.... आप तो छा गए. बसंत की शुरुआत वो भी बसंत-पंचमी के दिन माँ सरस्वती की वंदना के साथ. क्या खूब!
संगीत संध्यायें तो खूब होती हैं यूनुस भाई पर क्या वो रस रह गया है अब.? शायद नहीं.
महान कवियों की बसंत कवितायें सीधे दिल में उतर गयीं. स्कूल के दिनों में सरस्वती पूजा के दिन हमेशा गाने वाले कविताओं की याद ताज़ा हो आयी.
धन्यवाद.
यूनुस भाई आपने स्कूल के दिनों की याद दिला दी... कविताओं का चयन बहुत अच्छा किया आपने... महादेवी वर्मा, सुमित्रा नंदन पन्त, निराला के साथ अगर जयशंकर प्रसाद की बात न हो तो छायावाद अधूरा रह जायेगा... जयशंकर प्रसाद की यही पंक्तिया अभी तो दिमाग में आ रही हैं :
चिर-वसंत का यह उदगम है.
पतझर होता एक ओर है.
अमृत हलाहल यहाँ मिले है.
सुख-दुख बँधते, एक डोर हैं..
यूनुस भाई,
क्या बढिया संयोग है कि आज सुबह ही जोधपुर के एक मित्र ने फोन पर आपसे मुलाक़ात की चर्चा की और उसके थोडी हे देर बाद आपका यह शानदार पोस्ट पढने का मौका मिला.. आपने बस6त को बहुत सलीके से याद किया है. अज्ञेय जी और उदयप्रकाश की कविताओं से आपने ही परिचित कराया है. आभार मानता हूं. बस एक बात, आपने केसरिया रुमाल रखने की जो बात कही वह अपने गले नहीं उतरी. वासंती कहते तो ज़्यादा ठीक रहता. मैं तो केसरिया कभी नहीं रख सकता. मेरा इशारा समझ रहे हैं ना?
बाज़ार में उत्साह दिखाई दे रहा हो या न हो..हम इस उत्साह में सुबह सुबह बॉस का बिगड़ा मुँह झेल चुके हैं.....सरस्वती की सस्वर आराधना के चक्कर में आफिस का schedual बिगड़ गया...लेकिन ये सब तो होता ही रहता है....!
आपके ब्लॉग पर वसंतोत्सव अच्छा लगा...देखिये न यूनुस जी! कल ही मैं अपने भईया से बात कर रही थी कि ये वसंत पंचमी हिंदुस्तानी valentine day है..और मदनोत्सव के नाम से जाना जाता है..और इस दिन की भी शुरुआत हम ग्यान की देवी की आराधना से करते हैं..यानि कुछ भी करो लेकिन मूर्खता के साथ नही...!
माँ सरस्वती की वंदना सुनकर अच्छा लगा।
युनूस जी हमेशा की तरह इस साल भी सरस्वती पूजा करके ज़ाफरानी ज़र्दा और पुलाव बना कर खा चुके हैं। रही-सही कसर आपकी प्रस्तुती ने पूरी करदी। बचपन में अपने स्कूल की प्रार्थना सभा में इसी को गाया करते थे-
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे।
यूनुस भाई, सचमुच छा गए आप. ये पोस्ट सुन / पढ़ कर आनंद आ गया. सरस्वती वंदना, और फिर ये कवितायें. माता का आशीर्वाद सदैव सब पर रहे. बहुत बहुत शुक्रिया आप का.
क्या केसरिया का मतलब हमारे लिए बस एक ही रह गया है जो हम उसे लिखना ही छोड़ दें?
क्या हम यह कहना छोड़ दें --
" केसरिया बल भरने वाला,
सादा है सच्चाई.
हरा रंग है हरी हमारी धरती की अंगडाई." ?
क्या केसरिया बालमा... ... गीत अब नहीं गाया जायेगा?
शायद अब हम तिरंगे में कोई और रंग प्रयोग करने लगें???
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तो क्या रह गया महाप्राण निराला जी की उन पंक्तियों का अर्थ ??
"वर दे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव भारत में भर दे।
काट अंध उर के बंधन स्तर
बहा जननि ज्योतिर्मय निर्झर
कलुष भेद तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे।"
बहुत सुन्दर और बहुत प्रिय पोस्ट। आजका वसन्त पन्चमी का दिन धन्य हो गया।
संगीतकार जयदेव का संगीत: सुन्दर अति सुन्दर। बसंत की कविताओं में एक( बसंत आया) रधुवीर सहाय की भी है।
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