संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Thursday, December 13, 2007

दस ब्‍लॉगरों के बराबर एक ब्‍लॉगर से मुलाक़ात

एक मीडिया सेमीनार के सिलसिले में इंदौर जाना तय ही हो रहा था कि इंदौर के कुछ मित्रों को अग्रिम सूचना दे दी गईभई हम रहे हैं खुद को ख़ाली रखिएगा एक दिनये संदेश मनीषा को भी गया थाऔर फिर उसका संदेश आया--रूकने की क्‍या व्‍यवस्‍था है, मेरा घर बहुत छोटा नहीं है और बुरी मेज़बान भी नहीं हूं मैंफिर जब रवाना हो रहा था उसके ठीक पहले ही मनीषा ने फोन करके पूछा--पहुंच गये क्‍या आपमैंने कहा बस एक घंटे में पहुंच रहा हूंतय हुआ कि अगले दिन सबेरे मुलाक़ात होगी

अगले दिन मुलाक़ात हुई भीये सेमीनार वाला दिन थाऔर मुझे दस बजे के आसपास आयोजन -स्‍थल पहुंचना थाइसलिए सबेरे से ही मैं एकदम चुस्‍त दुरूस्‍त तैयार हो चुका थाएक संदेस आया, दस मिनिट में पहुंच रही हूंऔर दस मिनिट में दस ब्‍लागर के बराबर एक ब्‍लॉगर मनीषा धमकीबातों का सिलसिला शुरू हो गयाइसी दौरान हमारे पुराने मित्र प्रेम छापरवाल जी भी पहुंचे थेऔर बाक़ायदा नाश्‍ते की मेज़ पर महफिल जमी थीप्रेम भाई संगीत और रेडियो के शौकीन हैंज़ाहिर है कि चर्चा उन्‍हीं मुद्दों पर घूम रही थी


पर पहले आपको ये बता दूं कि मनीषा से मेरा परिचय तब हुआ था जब वेबदुनिया पर ब्‍लॉग-चर्चा नामक स्‍तंभ शुरू हुआ था, जिसमें रेडियोवाणी की चर्चा की गयी थीये सब वेबदुनिया की ही निहारिका ने किया था, बाद में तीनअक्‍तूबर को जब विविध भारती के पचास साल पूरे हुए तो मनीषा ने वेबदुनिया पर विशेष आयोजन करने के लिए सामग्री जमा करने के मक़सद से फ़ोन किया थाउसके बाद कई बार और मनीषा से अलग अलग मुद्दों पर बातचीत हुईकभी मेल पर कभी फोन परसंभवत: उसने एक लेख अंतधर्म विवाह पर भी तैयार किया थाऔर उस सिलसिले में भी बातचीत हुई थी

हां तो फिर से चलें इंदौरचूंकि प्रेम भाई चर्चा कर रहे थे रेडियो की तो मनीषा ने बताया कि जब वो स्‍कूल में पढ़ती थी तब इलाहाबाद में मेरे छायागीत और 'आपके अनुरोध पर' जैसे कार्यक्रम सुनती थीहम तीनों गानों की चर्चा भी करते रहे और बीच बीच में मैं ठेल ठेल कर दोनों लोगों को भी कराता रहाइसी दौरान मनीषा ने तय कर लिया था कि आज रात का भोजन उसके घर पर होगाप्रेम भाई चाहते थे कि मैं उनके घर जाऊंआखिरकार दस ब्‍लॉगर के बराबर एक ब्‍लॉगर की दादागिरी चल गई और प्रेम भाई को हार मानना पड़ीउनके साथ मैंने अगले दिन लंच लियाइस दौरान सोचा कि कुछ तस्‍वीरें तो ले ली जाएंकुछ सुनील और प्रेम भाई की खींची हुई हैंमजेदार बात ये रही कि दस ब्‍लॉगरों के बराबर एक ब्‍लॉगर मनीषा की तस्‍वीर लेते वक्‍त फ्लैश चमक रहा था, जब मैं और प्रेम भाई तस्‍वीर में होते और कैमेरा मनीषा के हाथों में, तो कमबख्‍त फ्लैश धोखा दे रहा थाइस बात पर मनीषा ने अपने कॉलर खूब ऊंचे कियेफ्लैश तक उस जैसे खास लोगों के लिए चमकता है


मैंने सेमीनार में मनीषा, प्रेम भाई और अपने मित्रों को बुलाया भी थापर वेबदुनिया का सर्वर बेदम हो गया और वो फंस गयीख़ैर सेमीनार से फुरसत हुए और कमरे में जाकर आराम कर ही रहे थे कि प्रेम भाई मेरे अभिन्‍न मित्र सुनील के साथ प्रकट हुए, अमरूदों से भरे एक पॉलीपैक के साथरूमसर्विस को फोन किया, जरा चाकू भेजना, वेटर सहम गया, भाईसाहब क्‍या करने वाले हैं आप लोगसुनील ने उसे बताया-अरे भाई इंसानों का नहीं अमरूदों का क़त्‍ल करना हैऔर फिर अमरूद-चर्चा ही शुरू हो गयीमैंने इलाहाबाद के अमरूदों का जिक्र किया और बताया कि मुझे किस क़दर प्रिय रहे हैं अमरूदपांच पांच किलो लेकर आता हूं अपनी ससुराल इलाहाबाद सेमनीषा जो अमरूदों के क़त्‍ल के दौरान ही गयी थी बताने लगी कि उसे अमरूदों का इतना शौक़ नहीं क्‍योंकिइतने सारे अमरूद बचपन से खाए हैं कि इनमें कुछ खास नहीं लगतामैंने अपना दुख बताया कि मुंबईया अमरूद इतने पनियल होते हैं कि हमें अपने शहरों के अमरूदों की बहुत याद आती हैबहरहाल जाने किन किन विषयों पर इस दौरान चर्चा हुईमैंने प्रेम भाई को बताया कि मनीषा जब मुंबई में थी तो शहर उदास उदास सा रहता थाइसके जाते ही जैसे बहार सी गयी हैबातों बातों में मेरी कुछ टिप्‍पणियों पर उसकी ओर से ये धमकी भी आई कि वो ममता से मेरी शिकायत कर देगीपर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ और मैंने उसका मज़ाक़ उड़ाना जारी रखा

प्रेम भाई ने कहा कि वो हमें छोड़ देंगेहम उनकी गाड़ी में सवार हुए और जाने कहां पहुंचे थे, आधे रास्‍ते में कि मनीषा ने गाड़ी रूकवाई और ग़ायब हो गयीलौटकर आई तो हाथ में थे कई सारे पॉलीपैकजैसे सारा डिपार्टमेन्‍टल स्‍टोर ही ख़रीद लाई हो

ख़ैर इसके बाद हम मनीषा के घर पहुंचेइतने कम समय में भी मनीषा खींच खांचकर घर इसलिए ले गयी थी क्‍योंकि उसकी नज़रों में इंदौर इत्‍ता बुरा शहर है, कोई आता ही नहीं घर परसुंदर, सजीला सा घर है उसका, किसी नाटक के सेट की तरह हैखूब सारी बातें करते हुए उसने खाना बनायामुझसे लहसुन भी छिलवा लिये

इस दौरान मनीषा ने खूब खूब सारी बातें कींकई दिनों बाद कोई ऐसा मिला, जिसने मुझे बोलने ही नहीं दियामतलब ये कि रेडियो वाला होने का अब तक फायदा ये था कि हम बोलते तो लोग सुनते, पर यहां ' दस के बराबर एक ब्‍लॉगर ' से मुलाकात में हमने सिर्फ सुनाहमें बोलने का मौक़ा ही कहां मिलासब कुछ पूछलिया उसने, ब्‍लॉगिंग के बारे में, मेरी और ममता की शादी के बारे में, जिंदगी की दिक्‍कतों के बारे में, संगीत के बारे में, ना जाने किस किस बारे मेंफिर मज़े लेकर बोली कि ममता जी ने मुझसे वादा किया है कि अगर मैंने कोई 'क्रांति' की तो वो सबसे आगे खड़ी होंगी मदद करने के लिए


खुद को 'दस ब्‍लॉगरों के बराबर एक ब्‍लॉगर' कहने वाली मनीषा ने अपनी किताबों की आलमारी भी दिखाई, जिसमें ढेर सारी किताबें करीने से सजी रखी हैंआजकल मनीषा ओरहान पामुक की पुस्तक 'the other colours' पढ़ रही हैजिसका सुबूत भी उसने मेरे कैमेरे में कैद करवा लिया है


मैंने मनीषा से शिकायत की कि इतना अच्छा लिखने के बावजूद वो ब्‍लॉग पर नियमित क्‍यों नहीं लिखती, तो वो अपने कंप्यूटर की परेशानियां गिनाने लगीवायरस गये हैं, सुस् हो गया है और जाने क्या क्याखैर खाने के बाद मनीषा का कंप्यूटर ऑन किया गया, पता चला कि इस अनाड़ी ब्लॉगर ने कंप्यूटर का मेन्टेनेन् बरसों बरस से नहीं किया हैकुछ वायरस, हज़ारों स्पाईवेयर, बहुत सारा ट्रैश, कुकीज़ सब के सब जमा पड़े थे जैसे एक घर जिसकी दीवाली के दीवाली सफाई होती हैऔर तो और कई अनवॉन्टेड प्रोग्राम र्स्टाट-अप के साथ शुरू होकर मेमरी खा रहे थे और 'दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर' शिकायत कर रही थी कि पीसी स्लो हैकुल जमा 256 mb का ram इत्ता सारा कचराभला पीसी चले कैसेकिसी तरह सब कुछ साफ कियास्टार्ट अप को सिलेक्टिव किया एडवांस विन्‍डोज़ केयर डाउनलोड करके बताया कि इसका इस्तेमाल किया करोतब 'दस ब्लागरों के बराबर एक ब्लॉगर' की अक् में घुसा

जब मैंने मनीषा के लिए हिंदी टूल बार डाउनलोड किया तो फिर पता नहीं कैसे उसके ब्लॉग का साइडबार ही गायब हो गयाऔर धमकी मिल गयी कि जब तक मेरे ब्लॉग का साइडबार नहीं जाता मैं आपको जाने नहीं दूंगीऔर सबको बता भी दूंगी कि बंबई वालों ने मेरे ब्लॉग का क्या हाल कर दिया हैऔर उसका इंटरनेट कनेक्शन तो माशाअल्लाह हैमुंबई के ठीकठाक ब्रॉडबैन् के आगे तो ये एकदम्मै बैलगाड़ी जैसा थाइसलिए कई चीज़ें डाउनलोड ही नहीं हो पाईंइसलिए मैंने 'दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर' से कहा कि मेल पर निर्देश भेज दूंगा और आगे का काम वो स्वयं कर लेगीबहरहाल माथापच्ची करने के बाद आखिरकार री स्टार्ट करने के बाद साईडबार प्रकट हो गयाऔर मुझे मुक्ति मिली


लंबी ब्लॉगर-बैठक के दौरान ना जाने क्या क्या बातें हुईंमुंबई के साहित् और ब्लॉग जगत से लेकर इलाहाबाद तक, संगीत से लेकर किताबों तक असंख्‍य बातेंये साफ कर दूं कि ये सब बातें मैंने सुनींऔर उसने कहींलेकिन मज़ा खूब आयाजिस तरह दौड़ दौड़ कर उसने आवभगत की, भोजन तैयार किया, बातों का भी भोजन कराया, कंप्‍यूटर ठीक करने की धमकियां दीं--उसमें एक तरह की तत्‍परता आत्‍मीयता और उमंग थीअगले दिन मनीषा ने फोन पर कहा कि अगर आप 'दस ब्‍लॉगरों के बराबर एक ब्‍लॉगर' से मिलने की रपट लिखें तो सब कुछ अच्‍छा लिखिएगा--वरनाऔर इस धमकी से डरकर हमने सब कुछ अच्‍छा अच्‍छा ही लिखा हैहै नाअरे भैया कौन अपना सिर फुड़वाये

11 comments:

डॉ. अजीत कुमार December 13, 2007 at 12:09 PM  

यूनुस भाई,
इंदौर में खूब मजे किए आपने. पढ़ कर अच्छा लगा.
अब तक मनीषा जी से मेरा परिचय वेबदुनिया तक ही सीमित था. आपके जरिये उनसे प्रत्यक्ष तो नहीं पर परोक्ष रूप से रूबरू हो ही गया.आपने उनका विशेषण क्या खूब दिया है " दस ब्लोगरों के बराबर एक ब्लॉगर" . वैसे भी वे सारे ब्लागरों की बखिया उधेड़ती ही हैं...... अरे क्या कह गया.... बड़ाई करती ही हैं.
और आपको तो अच्छा लिखना ही था.. जानते हैं न." यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः."
धन्यवाद.

Sanjeet Tripathi December 13, 2007 at 1:19 PM  

चलिए साहब बधाई कि मुंबई की आपाधापी के बीच आपने समय निकाला और इंदौर पहुंच गए!!
मनीषा जी के इन पहलुओं से परिचित कराने के लिए शुक्रिया।

PD December 13, 2007 at 4:32 PM  

पढ़ कर मजा आ गया.. और मनीषा जी की तस्वीर भी क्या खूब आई है.. उनका हंसमुख चेहरा देखकर दिल खुश हो गया.. :)

mamta December 13, 2007 at 5:01 PM  

मनीषा का इतने दिलचस्प तरीके से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया। फोटो और लेख दोनों ही अच्छे है।

विजयशंकर चतुर्वेदी December 13, 2007 at 8:35 PM  

यूनुस, लेख में आत्मीयता तो है ही; 'खाके' के भी गुण हैं और लेखन में रवानी भी. ये वही मनीषा जी हैं न, जिन्होंने पाब्लो नेरूदा पर वेब दुनिया में बहुत अच्छी सामग्री दी थी?

PIYUSH MEHTA-SURAT December 13, 2007 at 10:09 PM  

श्री युनूसजी,
आपकी इन्दौर यात्रा पढ़ना रस्स्प्रद रहा । पर एक दू:ख रहा । आप इन्दौर के लिये सुरत से ही शायद गुजरे होगे । तो सुरत शहर देखने का जी नहीं हुआ । अचरज की बात है, के आप देशमें कई जगह घूमे है पर सुरत की सुरत (यह शब्द आपके रेडियो साथी कमल शर्माजी के प्यारसे चूरे है ।)देखने का मन नहीं हुआ । अगर समय की कमी थी तो कम से कम मैं आपको ट्रेइन पर मिल जाता ।
पियुष महेता ।

ghughutibasuti December 14, 2007 at 2:01 AM  

बहुत बढ़िया व दिलचस्प लेख लिखा है आपने । मनीषा जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद । यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि कम्प्यूटर के मामले में हम जैसे अनाड़ी और भी हैं । और सबसे बढ़िया बात कि ठीक करवाने का नुस्खा भी हाथ लग गया। धमकी आदि देने व खाना बनाने में हम भी बहुत बुरे नहीं हैं।
घुघूती बासूती

Anonymous,  December 14, 2007 at 11:57 AM  

बचपन में सौ हाथियों के बराबर भीम और कई शेरों के बराबर महाबली वेताल(फ़ैण्टम)के बारे में तो पढा़-सुना था; पर यह "दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर" वाली बात नयी पता चली ।

बहरहाल,इंदौर तो हो आये; अब इधर का रुख़ कब करने का इरादा है ?

इक बार मिले जो वो दिल में बडी़ हसरत है
यह बात भी कर डालें वह बात भी कर डालें

और हाँ;
"भई हम आ रहे हैं खुद को ख़ाली रखिएगा एक दिन" जैसी किसी "अग्रिम सूचना " की भी जरूरत नहीं है यहाँ :

तुम फ़ुरसतों में हमसे मिलो ये नहीं कुबूल
फ़ुरसत न जब हो ऐसे बुलाने का शौक है

-वही

Manish Kumar December 15, 2007 at 10:15 PM  

इंदौर में तो हमारे संजय पटेल भी रहते हैं ना उनसे मुलाकात नहीं हुई आपकी? बाकी सब तो ठीक है पर मनीषा जी ने जो असंख्य बातें पूछीं उनका १ प्रतिशत वो कब बाँट रहीं हैं हम सबसे :)

Gyan Dutt Pandey December 20, 2007 at 10:14 AM  

यह 11 ब्लॉगरों का मीटाख्यान बहुत बढ़िया लगा!

उन्मुक्त December 21, 2007 at 9:49 AM  

मनीषा जी से मिल कर अच्छा लगा।

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