दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर से मुलाक़ात
एक मीडिया सेमीनार के सिलसिले में इंदौर जाना तय ही हो रहा था कि इंदौर के कुछ मित्रों को अग्रिम सूचना दे दी गई । भई हम आ रहे हैं खुद को ख़ाली रखिएगा एक दिन । ये संदेश मनीषा को भी गया था । और फिर उसका संदेश आया--रूकने की क्या व्यवस्था है, मेरा घर बहुत छोटा नहीं है और बुरी मेज़बान भी नहीं हूं मैं । फिर जब रवाना हो रहा था उसके ठीक पहले ही मनीषा ने फोन करके पूछा--पहुंच गये क्या आप । मैंने कहा बस एक घंटे में पहुंच रहा हूं । तय हुआ कि अगले दिन सबेरे मुलाक़ात होगी ।
अगले दिन मुलाक़ात हुई भी । ये सेमीनार वाला दिन था । और मुझे दस बजे के आसपास आयोजन -स्थल पहुंचना था । इसलिए सबेरे से ही मैं एकदम चुस्त दुरूस्त तैयार हो चुका था । एक संदेस आया, दस मिनिट में पहुंच रही हूं । और दस मिनिट में दस ब्लागर के बराबर एक ब्लॉगर मनीषा आ धमकी । बातों का सिलसिला शुरू हो गया । इसी दौरान हमारे पुराने मित्र प्रेम छापरवाल जी भी आ पहुंचे थे । और बाक़ायदा नाश्ते की मेज़ पर महफिल जमी थी । प्रेम भाई संगीत और रेडियो के शौकीन हैं । ज़ाहिर है कि चर्चा उन्हीं मुद्दों पर घूम रही थी ।
पर पहले आपको ये बता दूं कि मनीषा से मेरा परिचय तब हुआ था जब वेबदुनिया पर ब्लॉग-चर्चा नामक स्तंभ शुरू हुआ था, जिसमें रेडियोवाणी की चर्चा की गयी थी । ये सब वेबदुनिया की ही निहारिका ने किया था, बाद में तीन अक्तूबर को जब विविध भारती के पचास साल पूरे हुए तो मनीषा ने वेबदुनिया पर विशेष आयोजन करने के लिए सामग्री जमा करने के मक़सद से फ़ोन किया था । उसके बाद कई बार और मनीषा से अलग अलग मुद्दों पर बातचीत हुई । कभी मेल पर कभी फोन पर । संभवत: उसने एक लेख अंतधर्म विवाह पर भी तैयार किया था । और उस सिलसिले में भी बातचीत हुई थी ।
हां तो फिर से चलें इंदौर । चूंकि प्रेम भाई चर्चा कर रहे थे रेडियो की तो मनीषा ने बताया कि जब वो स्कूल में पढ़ती थी तब इलाहाबाद में मेरे छायागीत और 'आपके अनुरोध पर' जैसे कार्यक्रम सुनती थी । हम तीनों गानों की चर्चा भी करते रहे और बीच बीच में मैं ठेल ठेल कर दोनों लोगों को भी कराता रहा । इसी दौरान मनीषा ने तय कर लिया था कि आज रात का भोजन उसके घर पर होगा । प्रेम भाई चाहते थे कि मैं उनके घर जाऊं । आखिरकार दस ब्लॉगर के बराबर एक ब्लॉगर की दादागिरी चल गई और प्रेम भाई को हार मानना पड़ी । उनके साथ मैंने अगले दिन लंच लिया । इस दौरान सोचा कि कुछ तस्वीरें तो ले ली जाएं । कुछ सुनील और प्रेम भाई की खींची हुई हैं । मजेदार बात ये रही कि दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर मनीषा की तस्वीर लेते वक्त फ्लैश चमक रहा था, जब मैं और प्रेम भाई तस्वीर में होते और कैमेरा मनीषा के हाथों में, तो कमबख्त फ्लैश धोखा दे रहा था । इस बात पर मनीषा ने अपने कॉलर खूब ऊंचे किये । फ्लैश तक उस जैसे खास लोगों के लिए चमकता है ।
मैंने सेमीनार में मनीषा, प्रेम भाई और अपने मित्रों को बुलाया भी था । पर वेबदुनिया का सर्वर बेदम हो गया और वो फंस गयी । ख़ैर सेमीनार से फुरसत हुए और कमरे में जाकर आराम कर ही रहे थे कि प्रेम भाई मेरे अभिन्न मित्र सुनील के साथ प्रकट हुए, अमरूदों से भरे एक पॉलीपैक के साथ । रूमसर्विस को फोन किया, जरा चाकू भेजना, वेटर सहम गया, भाईसाहब क्या करने वाले हैं आप लोग । सुनील ने उसे बताया-अरे भाई इंसानों का नहीं अमरूदों का क़त्ल करना है । और फिर अमरूद-चर्चा ही शुरू हो गयी । मैंने इलाहाबाद के अमरूदों का जिक्र किया और बताया कि मुझे किस क़दर प्रिय रहे हैं अमरूद । पांच पांच किलो लेकर आता हूं अपनी ससुराल इलाहाबाद से । मनीषा जो अमरूदों के क़त्ल के दौरान आ ही गयी थी बताने लगी कि उसे अमरूदों का इतना शौक़ नहीं क्योंकि इतने सारे अमरूद बचपन से खाए हैं कि इनमें कुछ खास नहीं लगता । मैंने अपना दुख बताया कि मुंबईया अमरूद इतने पनियल होते हैं कि हमें अपने शहरों के अमरूदों की बहुत याद आती है । बहरहाल जाने किन किन विषयों पर इस दौरान चर्चा हुई । मैंने प्रेम भाई को बताया कि मनीषा जब मुंबई में थी तो शहर उदास उदास सा रहता था । इसके जाते ही जैसे बहार सी आ गयी है । बातों बातों में मेरी कुछ टिप्पणियों पर उसकी ओर से ये धमकी भी आई कि वो ममता से मेरी शिकायत कर देगी । पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ और मैंने उसका मज़ाक़ उड़ाना जारी रखा ।
प्रेम भाई ने कहा कि वो हमें छोड़ देंगे । हम उनकी गाड़ी में सवार हुए और जाने कहां पहुंचे थे, आधे रास्ते में कि मनीषा ने गाड़ी रूकवाई और ग़ायब हो गयी । लौटकर आई तो हाथ में थे कई सारे पॉलीपैक । जैसे सारा डिपार्टमेन्टल स्टोर ही ख़रीद लाई हो ।
ख़ैर इसके बाद हम मनीषा के घर पहुंचे । इतने कम समय में भी मनीषा खींच खांचकर घर इसलिए ले गयी थी क्योंकि उसकी नज़रों में इंदौर इत्ता बुरा शहर है, कोई आता ही नहीं घर पर । सुंदर, सजीला सा घर है उसका, किसी नाटक के सेट की तरह है । खूब सारी बातें करते हुए उसने खाना बनाया । मुझसे लहसुन भी छिलवा लिये ।
इस दौरान मनीषा ने खूब खूब सारी बातें कीं । कई दिनों बाद कोई ऐसा मिला, जिसने मुझे बोलने ही नहीं दिया । मतलब ये कि रेडियो वाला होने का अब तक फायदा ये था कि हम बोलते तो लोग सुनते, पर यहां ' दस के बराबर एक ब्लॉगर ' से मुलाकात में हमने सिर्फ सुना । हमें बोलने का मौक़ा ही कहां मिला । सब कुछ पूछ लिया उसने, ब्लॉगिंग के बारे में, मेरी और ममता की शादी के बारे में, जिंदगी की दिक्कतों के बारे में, संगीत के बारे में, ना जाने किस किस बारे में । फिर मज़े लेकर बोली कि ममता जी ने मुझसे वादा किया है कि अगर मैंने कोई 'क्रांति' की तो वो सबसे आगे खड़ी होंगी मदद करने के लिए ।
खुद को 'दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर' कहने वाली मनीषा ने अपनी किताबों की आलमारी भी दिखाई, जिसमें ढेर सारी किताबें करीने से सजी रखी हैं । आजकल मनीषा ओरहान पामुक की पुस्तक 'the other colours' पढ़ रही है । जिसका सुबूत भी उसने मेरे कैमेरे में कैद करवा लिया है ।
मैंने मनीषा से शिकायत की कि इतना अच्छा लिखने के बावजूद वो ब्लॉग पर नियमित क्यों नहीं लिखती, तो वो अपने कंप्यूटर की परेशानियां गिनाने लगी । वायरस आ गये हैं, सुस्त हो गया है और जाने क्या क्या । खैर खाने के बाद मनीषा का कंप्यूटर ऑन किया गया, पता चला कि इस अनाड़ी ब्लॉगर ने कंप्यूटर का मेन्टेनेन्स बरसों बरस से नहीं किया है । कुछ वायरस, हज़ारों स्पाईवेयर, बहुत सारा ट्रैश, कुकीज़ सब के सब जमा पड़े थे जैसे एक घर जिसकी दीवाली के दीवाली सफाई होती है । और तो और कई अनवॉन्टेड प्रोग्राम र्स्टाट-अप के साथ शुरू होकर मेमरी खा रहे थे और 'दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर' शिकायत कर रही थी कि पीसी स्लो है । कुल जमा 256 mb का ram इत्ता सारा कचरा । भला पीसी चले कैसे । किसी तरह सब कुछ साफ किया । स्टार्ट अप को सिलेक्टिव किया । एडवांस विन्डोज़ केयर डाउनलोड करके बताया कि इसका इस्तेमाल किया करो । तब 'दस ब्लागरों के बराबर एक ब्लॉगर' की अक्ल में घुसा ।
जब मैंने मनीषा के लिए हिंदी टूल बार डाउनलोड किया तो फिर पता नहीं कैसे उसके ब्लॉग का साइडबार ही गायब हो गया । और धमकी मिल गयी कि जब तक मेरे ब्लॉग का साइडबार नहीं आ जाता मैं आपको जाने नहीं दूंगी । और सबको बता भी दूंगी कि बंबई वालों ने मेरे ब्लॉग का क्या हाल कर दिया है । और उसका इंटरनेट कनेक्शन तो माशाअल्लाह है । मुंबई के ठीकठाक ब्रॉडबैन्ड के आगे तो ये एकदम्मै बैलगाड़ी जैसा था । इसलिए कई चीज़ें डाउनलोड ही नहीं हो पाईं । इसलिए मैंने 'दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर' से कहा कि ई मेल पर निर्देश भेज दूंगा और आगे का काम वो स्वयं कर लेगी । बहरहाल माथापच्ची करने के बाद आखिरकार री स्टार्ट करने के बाद साईडबार प्रकट हो गया । और मुझे मुक्ति मिली ।
इस लंबी ब्लॉगर-बैठक के दौरान ना जाने क्या क्या बातें हुईं । मुंबई के साहित्य और ब्लॉग जगत से लेकर इलाहाबाद तक, संगीत से लेकर किताबों तक असंख्य बातें । ये साफ कर दूं कि ये सब बातें मैंने सुनीं । और उसने कहीं । लेकिन मज़ा खूब आया । जिस तरह दौड़ दौड़ कर उसने आवभगत की, भोजन तैयार किया, बातों का भी भोजन कराया, कंप्यूटर ठीक करने की धमकियां दीं--उसमें एक तरह की तत्परता आत्मीयता और उमंग थी । अगले दिन मनीषा ने फोन पर कहा कि अगर आप 'दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर' से मिलने की रपट लिखें तो सब कुछ अच्छा लिखिएगा--वरना । और इस धमकी से डरकर हमने सब कुछ अच्छा अच्छा ही लिखा है । है ना । अरे भैया कौन अपना सिर फुड़वाये ।
11 comments:
यूनुस भाई,
इंदौर में खूब मजे किए आपने. पढ़ कर अच्छा लगा.
अब तक मनीषा जी से मेरा परिचय वेबदुनिया तक ही सीमित था. आपके जरिये उनसे प्रत्यक्ष तो नहीं पर परोक्ष रूप से रूबरू हो ही गया.आपने उनका विशेषण क्या खूब दिया है " दस ब्लोगरों के बराबर एक ब्लॉगर" . वैसे भी वे सारे ब्लागरों की बखिया उधेड़ती ही हैं...... अरे क्या कह गया.... बड़ाई करती ही हैं.
और आपको तो अच्छा लिखना ही था.. जानते हैं न." यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवताः."
धन्यवाद.
चलिए साहब बधाई कि मुंबई की आपाधापी के बीच आपने समय निकाला और इंदौर पहुंच गए!!
मनीषा जी के इन पहलुओं से परिचित कराने के लिए शुक्रिया।
पढ़ कर मजा आ गया.. और मनीषा जी की तस्वीर भी क्या खूब आई है.. उनका हंसमुख चेहरा देखकर दिल खुश हो गया.. :)
मनीषा का इतने दिलचस्प तरीके से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया। फोटो और लेख दोनों ही अच्छे है।
यूनुस, लेख में आत्मीयता तो है ही; 'खाके' के भी गुण हैं और लेखन में रवानी भी. ये वही मनीषा जी हैं न, जिन्होंने पाब्लो नेरूदा पर वेब दुनिया में बहुत अच्छी सामग्री दी थी?
श्री युनूसजी,
आपकी इन्दौर यात्रा पढ़ना रस्स्प्रद रहा । पर एक दू:ख रहा । आप इन्दौर के लिये सुरत से ही शायद गुजरे होगे । तो सुरत शहर देखने का जी नहीं हुआ । अचरज की बात है, के आप देशमें कई जगह घूमे है पर सुरत की सुरत (यह शब्द आपके रेडियो साथी कमल शर्माजी के प्यारसे चूरे है ।)देखने का मन नहीं हुआ । अगर समय की कमी थी तो कम से कम मैं आपको ट्रेइन पर मिल जाता ।
पियुष महेता ।
बहुत बढ़िया व दिलचस्प लेख लिखा है आपने । मनीषा जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद । यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि कम्प्यूटर के मामले में हम जैसे अनाड़ी और भी हैं । और सबसे बढ़िया बात कि ठीक करवाने का नुस्खा भी हाथ लग गया। धमकी आदि देने व खाना बनाने में हम भी बहुत बुरे नहीं हैं।
घुघूती बासूती
बचपन में सौ हाथियों के बराबर भीम और कई शेरों के बराबर महाबली वेताल(फ़ैण्टम)के बारे में तो पढा़-सुना था; पर यह "दस ब्लॉगरों के बराबर एक ब्लॉगर" वाली बात नयी पता चली ।
बहरहाल,इंदौर तो हो आये; अब इधर का रुख़ कब करने का इरादा है ?
इक बार मिले जो वो दिल में बडी़ हसरत है
यह बात भी कर डालें वह बात भी कर डालें
और हाँ;
"भई हम आ रहे हैं खुद को ख़ाली रखिएगा एक दिन" जैसी किसी "अग्रिम सूचना " की भी जरूरत नहीं है यहाँ :
तुम फ़ुरसतों में हमसे मिलो ये नहीं कुबूल
फ़ुरसत न जब हो ऐसे बुलाने का शौक है
-वही
इंदौर में तो हमारे संजय पटेल भी रहते हैं ना उनसे मुलाकात नहीं हुई आपकी? बाकी सब तो ठीक है पर मनीषा जी ने जो असंख्य बातें पूछीं उनका १ प्रतिशत वो कब बाँट रहीं हैं हम सबसे :)
यह 11 ब्लॉगरों का मीटाख्यान बहुत बढ़िया लगा!
मनीषा जी से मिल कर अच्छा लगा।
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