आज याद आ रहे हैं बचपन के देशगान
बचपन में मैं शिशु मंदिर में पढ़ा हूं । इससे कई फ़ायदे हुए । एक तो संस्कृत आ गई, दूसरे साहित्य के संस्कार गहरे पड़ गये । भोपाल के वो दिन याद हैं जहां शिशु मंदिर में देशगान बहुत होते थे । सुबह की प्रार्थना से लेकर आखिर के विसर्जन मंत्र तक जब भी मौक़ा मिले देशगान हो जाया करता था । ऐसे कितने ही गीत मुझे याद रहे हैं । और ये सोचकर वाक़ई अच्छा लगता
है । आज के बच्चों को अगर ये गीत लिखकर दे दिये जायें तो मुमकिन है कि उनसे उच्चारण तक ना करते बने । कम से कम मुंबईया बच्चों के साथ तो यही देखने मिलेगा ।
देश की आज़ादी की लड़ाई में जागरण-गीतों का अहम योगदान था । ये गीत चेतना जगाते थे, लोगों को हिला-हिलाकर उठाने का माद्दा था इनमें । आज भी जब समूह में इन गीतों को गाया जाता है तो रोंए खड़े हो जाते हैं । इसके बाद मुझे जो समूह-गीत याद आते हैं वो कॉलेज के दौर में इप्टा में गाये जाने वाले गीत हैं । सफ़दर हाशमी ने परचम के नाम से शायद दो कैसेट तैयार किये थे । जो मेरे जबलपुर वाले घर में संजोकर रखे हुए हैं । कमाल के गीत थे उनमें । बहुत जोश के साथ गाये जाने वाले ।
आज की हिमेश रेशमिया के गीतों को गुनगुनाने वाली पीढ़ी क्या ‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग’ गा सकती है, देशभक्ति के भी आजकल पॉपुलर-प्रतीक गढ़ लिये गये हैं । तिरंगे का स्टीकर और बिल्ला बना लिया, उसे शर्ट पर या कहीं चिपका लिया । छोटा-सा तिरंगा ख़रीद कर टेबल पर सजा लिया, ए.आर.रहमान का हर साल आने वाला ‘वंदे मातरम’ का संस्करण सुन लिया, ज्यादा से ज्यादा ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ या ‘ऐ मेरे प्यारे वतन’ । बस हो गये देशभक्ति गीत ।
क्या हमारे लिए देशभक्ति गीतों का मतलब केवल फिल्मी गीत ही रह गये हैं । मैं फिल्मी देशभक्ति गीतों के महत्त्व को कम करके नहीं आंक रहा हूं लेकिन ज़ोर देकर ये कहना चाहता हूं कि प्रसिद्ध कवियों के रचे ये देशभक्ति गीत हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं । क्यों कोई लता मंगेशकर या कोई जगजीत सिंह या कोई ए.आर.रहमान इन गीतों को एलबम की शक्ल में नहीं उतारता । बहुत मुमकिन है कि ये हस्तियां इन देशभक्ति गीतों से परिचित ही ना हो ।
आपको बता दूं कि आकाशवाणी में लंबे समय से ये महती कार्य हो रहा है । देशगान की लंबी परंपरा है हमारे यहां । बड़े ही सिद्ध कलाकारों से लेकर स्थानीय कलाकारों तक सबने देशगान गाये हैं और वो संग्रहालयों में सुरक्षित ही नहीं है, हमेशा बजाए भी जाते हैं । विविध भारती पर वर्षों से देशगान रोज़ सबेरे छह बजकर बीस मिनिट पर सुनवाया जाता है । इनमें से कुछ गीत तो जैसे तन-मन में रच-बस गये हैं । जिनकी चर्चा बहुत विस्तार से निकट भविष्य में कभी की जाएगी ।
पर फिलहाल आईये तीन महत्त्वपूर्ण देशभक्ति रचनाएं पढ़ें । पढ़ें, सुनें इसलिए नहीं कि मुझे किसी की आवाज़ में इसकी रिकॉर्डिंग कहीं इंटरनेट पर नहीं मिली । देश के लगभग सारे आकाशवाणी केंद्रों पर ये समूह गान के रूप में मौजूद हैं । अगर आप सबेरे रेडियो ट्यून करें तो शायद आपको सुनाई भी दे जाएं ।
ये रहे वो देशभक्ति गीत---
हिमाद्री तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो ।
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी ।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी ।
अराती सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो ।
----जयशंकर प्रसाद
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ॥
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कंकुम सारा ॥
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये, समझ नीड़ निज प्यारा ॥
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा ॥
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा ॥
---जयशंकर प्रसाद ।
भारती जय विजय करे
भारति जय विजय करे,कनक शस्य कमल धरे/
लंका पदतल शतदल, गर्जितोर्मि सागर जल
धोता शुचि चरण युगल, स्तव कर बहु अर्थ भरे/
तरु तृण वन लता वसन, अन्चल मे खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल कण, धवल धार हार गले/मुकुट शुभ्र हिम तुषार. प्राण प्रणव ओंकार
मुखरित दिशायें उदार, शतमुख शतरव मुखरे/
--महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला"
बताईये आपको कौन से देशगान याद आते हैं ।
है । आज के बच्चों को अगर ये गीत लिखकर दे दिये जायें तो मुमकिन है कि उनसे उच्चारण तक ना करते बने । कम से कम मुंबईया बच्चों के साथ तो यही देखने मिलेगा ।
देश की आज़ादी की लड़ाई में जागरण-गीतों का अहम योगदान था । ये गीत चेतना जगाते थे, लोगों को हिला-हिलाकर उठाने का माद्दा था इनमें । आज भी जब समूह में इन गीतों को गाया जाता है तो रोंए खड़े हो जाते हैं । इसके बाद मुझे जो समूह-गीत याद आते हैं वो कॉलेज के दौर में इप्टा में गाये जाने वाले गीत हैं । सफ़दर हाशमी ने परचम के नाम से शायद दो कैसेट तैयार किये थे । जो मेरे जबलपुर वाले घर में संजोकर रखे हुए हैं । कमाल के गीत थे उनमें । बहुत जोश के साथ गाये जाने वाले ।
आज की हिमेश रेशमिया के गीतों को गुनगुनाने वाली पीढ़ी क्या ‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग’ गा सकती है, देशभक्ति के भी आजकल पॉपुलर-प्रतीक गढ़ लिये गये हैं । तिरंगे का स्टीकर और बिल्ला बना लिया, उसे शर्ट पर या कहीं चिपका लिया । छोटा-सा तिरंगा ख़रीद कर टेबल पर सजा लिया, ए.आर.रहमान का हर साल आने वाला ‘वंदे मातरम’ का संस्करण सुन लिया, ज्यादा से ज्यादा ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ या ‘ऐ मेरे प्यारे वतन’ । बस हो गये देशभक्ति गीत ।
क्या हमारे लिए देशभक्ति गीतों का मतलब केवल फिल्मी गीत ही रह गये हैं । मैं फिल्मी देशभक्ति गीतों के महत्त्व को कम करके नहीं आंक रहा हूं लेकिन ज़ोर देकर ये कहना चाहता हूं कि प्रसिद्ध कवियों के रचे ये देशभक्ति गीत हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं । क्यों कोई लता मंगेशकर या कोई जगजीत सिंह या कोई ए.आर.रहमान इन गीतों को एलबम की शक्ल में नहीं उतारता । बहुत मुमकिन है कि ये हस्तियां इन देशभक्ति गीतों से परिचित ही ना हो ।
आपको बता दूं कि आकाशवाणी में लंबे समय से ये महती कार्य हो रहा है । देशगान की लंबी परंपरा है हमारे यहां । बड़े ही सिद्ध कलाकारों से लेकर स्थानीय कलाकारों तक सबने देशगान गाये हैं और वो संग्रहालयों में सुरक्षित ही नहीं है, हमेशा बजाए भी जाते हैं । विविध भारती पर वर्षों से देशगान रोज़ सबेरे छह बजकर बीस मिनिट पर सुनवाया जाता है । इनमें से कुछ गीत तो जैसे तन-मन में रच-बस गये हैं । जिनकी चर्चा बहुत विस्तार से निकट भविष्य में कभी की जाएगी ।
पर फिलहाल आईये तीन महत्त्वपूर्ण देशभक्ति रचनाएं पढ़ें । पढ़ें, सुनें इसलिए नहीं कि मुझे किसी की आवाज़ में इसकी रिकॉर्डिंग कहीं इंटरनेट पर नहीं मिली । देश के लगभग सारे आकाशवाणी केंद्रों पर ये समूह गान के रूप में मौजूद हैं । अगर आप सबेरे रेडियो ट्यून करें तो शायद आपको सुनाई भी दे जाएं ।
ये रहे वो देशभक्ति गीत---
हिमाद्री तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो ।
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी ।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी ।
अराती सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो ।
----जयशंकर प्रसाद
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा ॥
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कंकुम सारा ॥
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किये, समझ नीड़ निज प्यारा ॥
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा ॥
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा ॥
---जयशंकर प्रसाद ।
भारती जय विजय करे
भारति जय विजय करे,कनक शस्य कमल धरे/
लंका पदतल शतदल, गर्जितोर्मि सागर जल
धोता शुचि चरण युगल, स्तव कर बहु अर्थ भरे/
तरु तृण वन लता वसन, अन्चल मे खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल कण, धवल धार हार गले/मुकुट शुभ्र हिम तुषार. प्राण प्रणव ओंकार
मुखरित दिशायें उदार, शतमुख शतरव मुखरे/
--महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला"
बताईये आपको कौन से देशगान याद आते हैं ।
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13 comments:
नमस्कार युनुस भाई. आपने अपने चिट्ठे के अंत में एक प्रश्न छोड़ दिया है, कि आपको कौन से देशगान याद हैं. तो मेरा उत्तर है कि आपने यहां पर जितने देशगान प्रस्तुत किये हैं, मुझे वो सारे याद हैं, हां मैं कुछ भुलता सा जा रहा था सो आपने याद दिला दिया. उसके लिये आपको साधुवाद। और माफ किजीयेगा, मैं भी हिमेश रेशमिया के गीतों को गुनगुनाने वाली पीढी से ही आता हूं। और ना सिर्फ़ मुझे ही यह गाण याद हैं, मेरे कई मित्र जो की इसी पीढी से आते हैं उन्हें भी इनमें से कई गाण याद हैं।
मेरा अपना विचार ये है कि इसमें दोष किसी पीढी का नहीं, इसमें दोष वातावरण का होता है। मेरा तो ये दावा है कि मुझसे पहले की बहुत सी पीढीयों को भी ये गाण याद नहीं होंगे।
मैं आपके चिट्ठे को बहुत दिनों से पढ रहा हूं पर आपके चिट्ठे पर अपनी चिट्ठी पहली बार गिरा रहा हूं। मैं एक दिन इस कम्प्यूटर के मायाजाल कि खिड़की से झांक रहा था तो अनायास ही आपके चिट्ठे पर नजर पर गयी, और तबसे मैं आपके इस चिट्ठे पर हर दिन झांक आता हूं।
और मुझे आपका ये चिट्ठा आपके रेडियो के प्रोग्राम कि ही तरह बहुत पसंद हैं।
मुझे आपके इस ब्लाग पर अब-तक सबसे ज्यादा जो पसंद आया है वो है गुरूदत्त वाली चिट्ठी और वो चिट्ठी जो आपने अपने छोटे भाई के जन्मदिन पर लिखी थी। वो पढकर मुझे अपने बड़े भाई की याद हो आई थी। Father's Day पर जो आपने लिखी थी वो भी दिल को छू लेने वाली थी।
आपसे बस यही अनुरोध है कि आप हर दिन कोई नयी अच्छी और मजेदार चिट्ठी लिखते रहिये, और हर दिन कुछ भूले-बिसरे गीत सुनाते रहिये।
बहुत-बहुत धन्यवाद...
हिमाद्री तुंग श्रृंग... अपने लिये नम्बर वन पर है बिनाका देशगीत माला में.
यूनूस भाई, ये पुरानी यादों को नया करना कोई आपसे सीखे. मजा आ जाता है.
बसंत आर्य
सही कहा है की अब देशभक्ति का मतलब रहमान के गाने सुनना भर रह गया है।
यूनुसजी,
हम भी कक्षा ८ तक सरस्वती शिशु मन्दिर और सरस्वती विद्या मन्दिर में पढे हैं ।
मुझे तो अभी तक प्रात: स्मरण, एतात्मता स्त्रोत, भोजन मंत्र, शान्तिपाठ और बडा वाला वन्दे मातरम लगभग ८० प्रतिशत तक याद है, जहाँ शब्द भूल चुका हूँ, उनके उच्चारण की ध्वनि अभी जेहन में जमी हुयी है । आपने बढिया गीत पढवाये,
एक गीत जो मुझे बेहद पसन्द था अब उसकी कुछ पंक्तियाँ ही याद रह गयी हैं:
पढ देखो इतिहास कि इसका कितना मूल्य चुकाया है,
अपनी प्यारी आजादी को तब भारत ने पाया है ।
...
साभार स्वीकार करें,
बहुत सारे तो याद आ रहे हैं, क्या क्या याद दिलाऊँ.
आपने अच्छे याद दिलाये.
युनूसभाई,
जयदेवजी ने संगीत दिया हुवा एक गीत है जिसे लताजी ने गाया है. "जयते जयते जयते सत्यमेव जयते.."
क्या गाना है! सुनकर रोंगटे खडे हो जाते है. हो सके तो आप उसे सुनवाये. और जयदेव के बारेमे विस्तारपूर्वक कब लिखेंगे आप?
आपने जो याद दिलाया वही हम सब प्रार्थना के समय गाया करते थे पर बचपन में प्रसाद जी की रचनाओं की क्लिष्ट हिंदी बाल मन को पच नहीं पाती थीं। दिनकर, सुभद्रा और माखनलाल चतुर्वेदी देशभक्ति का जज़्बा ज्यादा जगा पाते थे।
द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी िक रचना "वीर तुम बढे चलो"
पढने में िभ बडा मजा आता था.
वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
हाथ में ध्वजा रहे ,
बाल - दल सजा रहे ,
ध्वज कभी झुके नहीं ,
दल कभी रुके नहीं ।
बचपन की अच्छी याद दिलाई आपने। मैं भी अपने बचपन की कुछ ऐसी ही बातें आप सबसे बांटना चाहती हूं।
हमारे स्कूल में रोज़ प्रार्थना गाने के लिए समूह बनाए जाते थे। 5 बच्चों का समूह होता था। समूह एक पंक्ति गाता उसके बाद सब बच्चे उसे दोहराते। छठी कक्षा से समूह के लिये चयन होता था।
मैं उन भाग्यशालियों में से हूं जिसका समूह के लिये चयन हुआ।
छठी कक्षा से दसवीं तक सप्ताह में कम से कम एक बार (हर कक्षा से समूह होता था) मैं समूह में प्रार्थना गाती थी जिसमें वन्देमातरम भी शामिल था।
जो नियम के अनुसार 52 सेकेण्ड में ही गाया जाता था। इसीलिये मुझे रहमान का वन्देमातरम कभी पसन्द नही आया।
हमारा समूह ये गीत बहुत अच्छा गाता था -
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झण्डा ऊंचा रहे हमारा
इसीलिये हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी को हमारा ही समूह यह झण्डा वन्दन गाता और इसीलिये मेरा प्रिय देश भक्ति गीत यही है।
मुझे नही लगता कि इअ गीत को यहां पूरा लिखने की ज़रूरत है।
हो सके तो आप इसे प्रस्तुत कर दें।
अन्नपूर्णा
plz send me this द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी िक रचना "वीर तुम बढे चलो"
वीर तुम बढे चलो ।
धीर तुम बढे चलो ।।
हाथ में ध्वजा रहे ,
बाल - दल सजा रहे ,
ध्वज कभी झुके नहीं ,
दल कभी रुके नहीं । @ my mail id
manjeet_chandhok@rediffmail.com
एक शिशु मंदिर के पुराने विद्यार्थी की पोस्ट पढकर बहुत अच्छा लगा. मै कई दिनो से शिशु मंदिर के विसर्जन मंत्र का शोध कर रहा हू.. इसी शोध मे इस ब्लॉग पर आ पहुंचा. कृपया यदि किसी को याद हो तो मुझे भेजने की कृपा करे. मेरा email id है. pole.indraneel@gmail.com धन्यवाद
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