संगीत का कोई मज़हब, कोई ज़बान नहीं होती। 'रेडियोवाणी' ब्लॉग है लोकप्रियता से इतर कुछ अनमोल, बेमिसाल रचनाओं पर बातें करने का। बीते नौ बरस से जारी है 'रेडियोवाणी' का सफर।

Wednesday, August 1, 2007

आज सबेरे से ही गुनगुना रहा हूं गोपाल सिंह नेपाली का लिखा ये गीत और याद आ रही हैं उनकी कविताएं

मैंने पहले भी उल्‍लेख किया है कि गोपाल सिंह नेपाली की कविताएं मुझे बहुत पसंद रही
हैं । उनकी कविताओं से परिचय म.प्र. की हिंदी की स्‍कूली किताब ‘बाल भारती’ के ज़रिए हुआ था । जब मैंने उनकी ये कविता अपने कोर्स में पढ़ी थी ।

घोर अंधकार हो¸
चल रही बयार हो¸
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।
शक्ति का दिया हुआ¸
शक्ति को दिया हुआ¸
भक्ति से दिया हुआ¸
यह स्वतंत्रता–दिया¸
रूक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो¸
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं¸
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।


यह अतीत कल्पना¸
यह विनीत प्रार्थना¸
यह पुनीत भावना¸
यह अनंत साधना¸
शांति हो¸ अशांति हो¸
युद्ध¸ संधि¸ क्रांति हो¸
तीर पर¸ कछार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
देश पर¸ समाज पर¸ ज्योति का वितान है।
तीन–चार फूल है¸
आस–पास धूल है¸
बांस है –बबूल है¸
घास के दुकूल है¸
वायु भी हिलोर दे¸
फूंक दे¸ चकोर दे¸
कब्र पर मजार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।


झूम–झूम बदलियाँ
चूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं
लड़ रहा स्वदेश हो¸
यातना विशेष हो¸
क्षुद्र जीत–हार पर¸ यह दिया बुझे नहीं¸
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।


यह कविता ‘कविता कोश’ के सौजन्‍य से प्राप्‍त हुई है । इस लिहाज से कविता कोश कितना म‍हत्‍त्‍वपूर्ण काम कर रहा है, आप समझ सकते हैं । आज सबेरे से ही मैं नेपाली जी का लिखा एक फिल्‍मी-गीत गुनगुना रहा हूं, अचानक इच्‍छा हुई कि उनकी कविताएं खोजी जाएं । सबसे पहले कविता कोश पर गया और देखा कितनी कविताएं हैं । अपनी पसंद की कविताएं मिल गयीं तो चैन पड़ा । धन्‍यवाद कविता कोश । कविता कोश वालों से निवेदन है कि वे अपना एक विजेट तैयार करें ताकि हम सब अपने अपने ब्‍लॉग पर उसे चढ़ा सकें और कविता कोश के विस्‍तार में योगदान दे सकें ।


‘आज द्वार द्वार पर ये दिया बुझे नहीं’—कितनी अद्भुत कविता है ना ।

पक्‍के तौर पर तो नहीं कह सकता पर मुझे लगता है कि ‘हम लाए हैं तूफ़ान से कश्‍ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्‍चों संभाल के’ इसी गाने का नया रूप लगता है । ये शोध का विषय है कि इन दोनों में से कौन सा गीत पहले लिखा गया ।

हां तो मैं बता रहा था कि नेपाली जी की कविताएं मुझे आरंभ से ही पसंद रही हैं । कोर्स में पढ़ने के बाद लाईब्रेरियों से उनको खोज-खोजकर पढ़ा गया । यहां उनकी एक कविता और दे रहा हूं जो मुझे विशेष रूप से पसंद है---


यह लघु सरिता का बहता जल
कितना शीतल¸ कितना निर्मल¸
हिमगिरि के हिम से निकल–निकल¸
यह विमल दूध–सा हिम का जल¸
कर–कर निनाद कल–कल¸ छल–छल
बहता आता नीचे पल पल
तन का चंचल मन का विह्वल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।


निर्मल जल की यह तेज़ धार
करके कितनी श्रृंखला पार
बहती रहती है लगातार
गिरती उठती है बार बार
रखता है तन में उतना बल
यह लघु सरिता का बहता जल।।

एकांत प्रांत निर्जन निर्जन
यह वसुधा के हिमगिरि का वन
रहता मंजुल मुखरित क्षण क्षण
लगता जैसे नंदन कानन
करता है जंगल में मंगल
यह लघु सरित का बहता जल।।

ऊँचे शिखरों से उतर–उतर¸
गिर–गिर गिरि की चट्टानों पर¸
कंकड़–कंकड़ पैदल चलकर¸
दिन–भर¸ रजनी–भर¸ जीवन–भर¸
धोता वसुधा का अन्तस्तल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।

मिलता है उसको जब पथ पर
पथ रोके खड़ा कठिन पत्थर
आकुल आतुर दुख से कातर
सिर पटक पटक कर रो रो कर
करता है कितना कोलाहल
यह लघु सरित का बहता जल।।

हिम के पत्थर वे पिघल–पिघल¸
बन गये धरा का वारि विमल¸
सुख पाता जिससे पथिक विकल¸
पी–पीकर अंजलि भर मृदु जल¸
नित जल कर भी कितना शीतल।
यह लघु सरिता का बहता जल।।

कितना कोमल¸ कितना वत्सल¸
रे! जननी का वह अन्तस्तल¸
जिसका यह शीतल करूणा जल¸
बहता रहता युग–युग अविरल¸
गंगा¸ यमुना¸ सरयू निर्मल
यह लघु सरिता का बहता जल।।



मुझे उम्‍मीद है कि इन कविताओं ने आपको भी पुरानी यादों में पहुंचा दिया होगा । लेकिन इस पोस्‍ट के ज़रिए आपको ये भी बता दूं कि मैंने जब विविध भारती में ज्‍वाईन किया तो कुछ वर्षों बाद पता चला कि ये जो कमला कुंदर जी हमारे साथ काम करती हैं ये गोपाल सिंह नेपाली की बेटी हैं । घनघोर आश्‍चर्य हुआ । फौरन उनके पास गया और उनसे बताया कि मुझे नेपाली जी कविताओं से कितना अनुराग रहा है ।

फिर तो नेपाली जी के बारे में अनगिनत बातें उनसे पता चलीं । कवि-सम्‍मेलनों की जान हुआ करते थे नेपाली जी । और विडंबना देखिए कि शायद बिहार में किसी कवि-सम्‍मेलन में भाग लेने गये, तो वे फिर कभी लौट कर नहीं आए । आई तो उनके संसार से चले जाने की ख़बर । परिवार वालों को तो उनके अंतिम-संस्‍कार में भाग लेने तक नहीं मिला । मुझे ये बात जानकर बड़ा धक्‍का लगा । अकसर सोचता हूं कि एक व्‍यक्ति निकला तो घर से था, भ्रमण करने, कवि-सम्‍मेलनों में भाग लेने, परिचर्चाओं का हिस्‍सा बनने । पर उसके बाद लौटा ही नहीं । परिवार वालों के लिए तो शायद आज भी यक़ीन करना मुश्किल होता होगा ।

बहरहाल नेपाली जी फिल्‍म-संसार में अच्‍छे ख़ासे सक्रिय रहे हैं । उनके कई गीत बड़े मशहूर हुए हैं । फिल्‍म-संगीत के क़द्रदान उनके गीतों को खोज खोजकर सुनते हैं । उनके कुछ मशहूर गीतों की एक संक्षिप्‍त सूची पेश है--


ओ दुपट्टा रंग दे मेरा रंगरेज—फिल्‍म:गजरे ।
बहारें आयेंगी होठों पे फूल खिलेंगे—फिल्‍म:नवरात्री
दूर पपीहा बोला रात आधी रह गयी—फिल्‍म:गजरे ।
कहां तेरी मंजिल कहां है ठिकाना—नई राहें ।
किसी से मेरी प्रीत लगी अब क्‍या करूं—आठ दिन ।
शमां से कोई कह दे—जय भवानी ।


अब उस गीत की बात जिसे मैं आज स‍बेरे से गुनगुना रहा था । कुछ गीत ऐसे होते हैं जो मन की परतों से बाहर निकलकर जाने कैसे और कब होठों पर आ जाते हैं । ऐसे गीत हम सबेरे से लेकर शाम तक गुनगुनाते रहते हैं ।

ये एक भजन है फिल्‍म का नाम है—‘नरसी भगत’
संगीत रवि का है और आवाज़ें सुधा मल्‍होत्रा और हेमंत कुमार की ।
इस भजन में एक दीनता है । प्रभु के चरणों में एकमेक हो जाने की विह्वलता है । अजीब-सी शांति मिलती है इसे सुनकर । ज्‍यादा कुछ नहीं कहना है मुझे इस गाने के बारे में । बस सुनिए और आनंद लीजिए--



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9 comments:

Udan Tashtari August 1, 2007 at 5:44 PM  

वाकई बहुत पीछे ढ़केल गये. वो बाल भारती,वो नवीन विद्या भवन-बहुत खूब खोज कर लाये गोपाल सिंह नेपाली की कवितायें. बहुत आभार.

SahityaShilpi August 1, 2007 at 6:08 PM  

युनुस भाई!
गोपाल सिंह जी की जो कविता आज आपने अपने चिट्ठे पर पढ़ाई, उसे मैंने भी पहली बार बहुत पहले अप्नी पाठ्य-पुस्तक में ही पढ़ा था. आज इतने साल बाद भी यह कविता मन में बसी हुयी है. और कितने दुख का विषय है कि आज नयी कविताओं को जगह देने के नाम पर इतनी सुंदर कविताओं से नयी पीढ़ी को महरूम किया जा रहा है.
’नरसी भगत’ का ये भजन भी नेपाली जी की प्रतिभा का सशक्त प्रमाण है.
इन्हें एक बार फिर याद दिलाने के लियी आभार!

Gyan Dutt Pandey August 1, 2007 at 6:12 PM  

सच में सुखद स्मृतियों में ले गये यूनुस. गोपाल सिंह नेपाली तो मेरे किशोरावस्था के आदर्शों से जुड़े हैं.

बसंत आर्य August 1, 2007 at 6:58 PM  

यूनूस भाई. नेपाली जी के स्वर में किसी काव्य पाठ की रेकार्डिंग आपके पास हो तो जरा सुनवाईए. ये क्या कि चर्चा किसी और की स्वर किसी और का

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` August 1, 2007 at 11:45 PM  

युनूस भाई,
कवि श्री नेपाली की कविताँ बडी ओजस्वी हैँ !
नेपाली जी की बेटी, अब भी ,
आप के वहाँ ( विविध भारती मेँ ) कार्यरत हैँ क्या ? उन्हेँ भी मेरा स्नेह देना -

-- स्नेह , लावण्या

Manish Kumar August 2, 2007 at 1:38 AM  

पहली वाली कविता पढ़ कर तो मन जोश से भर उठता है! अच्छा लगा नेपाली जी के बारे में पढ़ना।

Anonymous,  August 2, 2007 at 11:28 AM  

सोच रही हूं बाल भारती किताब खरीद ही लूं।

वैसे अच्छा लगा पहले बाल भारती की बात करना फिर भजन सुनाना।

अन्न्पूर्णा

purushottam naveen July 30, 2008 at 6:40 PM  

यूनुस भाई, नेपाली जी को ढूंढते आप तक पहुंचा हूं। आप अच्छा काम कर रहे हैं। धन्यवाद। नेपाली जी का जबर्दस्त फैन हूं। प्रगतिशीलता और यथार्थ के नाम पर नेपाली जैसे कवियों को भुला दिया गया है। आपको बता दूं कि नेपाली जी की जन्मशती के अवसर पर 2011 में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर न्यास की ओर से एक बड़ा कार्यक्रम करवाना चाहता हूं। देखता हूं क्या हो सकता है। कमला जी को नमस्कार कहिएगा। धन्यवाद। पुरुषोत्तम नवीन।

purushottam naveen July 30, 2008 at 6:40 PM  

यूनुस भाई, नेपाली जी को ढूंढते आप तक पहुंचा हूं। आप अच्छा काम कर रहे हैं। धन्यवाद। नेपाली जी का जबर्दस्त फैन हूं। प्रगतिशीलता और यथार्थ के नाम पर नेपाली जैसे कवियों को भुला दिया गया है। आपको बता दूं कि नेपाली जी की जन्मशती के अवसर पर 2011 में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर न्यास की ओर से एक बड़ा कार्यक्रम करवाना चाहता हूं। देखता हूं क्या हो सकता है। कमला जी को नमस्कार कहिएगा। धन्यवाद। पुरुषोत्तम नवीन।

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