Friday, November 22, 2019

वो नज्‍म जिसने शौक़त आपा को कैफ़ी से जोड़ा



कैफी आज़मी जवानी के दिनों में हैदराबाद में एक मुशायरा पढ़ने गए थे।
ये कैफी की तूफानी शोहरत का शुरूआती दौर था। उन्‍होंने जो नज़्म सुनायी थी—वही आज हम रेडियोवाणी पर पेश कर रहे हैं। इस नज्म को सुनकर शौक़त कैफी साहब को दिल दे बैठी थीं। ये बहुत दिलचस्‍प किस्‍सा है जिसे तफसील से बाद में पेश किया जाएगा। आज मुंबई में शौक़त आपा ने आखिरी सांस ली। हम उन्‍हें नमन करते हैं। शौकत आपा के बारे में और भी बातें फिर कभी।   


उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


क़ल्ब-ए-माहौल[1] में लर्ज़ां[2] शरर-ए-जंग[3] हैं आज
हौसले वक़्त के और ज़ीस्त[4] के यक-रंग हैं आज
आबगीनों[5] में तपाँ[6] वलवला-ए-संग[7] हैं आज
हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़[8] ओ हम-आहंगल[9] हैं आज
जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन[10] की बहार
तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार[11]
तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार[12]
ता-बा-कै[13] गिर्द तिरे वहम ओ तअय्युन[14] का हिसार[15]
कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत[16] से निकलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है
तपती साँसों की हरारत[17] से पिघल जाती है
पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है
बन के सीमाब[18] हर इक ज़र्फ़[19] में ढल जाती है
ज़ीस्त[20] के आहनी[21] साँचे में भी ढलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

ज़िंदगी जोहद[22] में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत[23] ख़म-ए-गेसू[24] में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उस की आज़ाद रविश[25] पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

गोशे-गोशे[26] में सुलगती है चिता तेरे लिए
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा[27] तेरे लिए
क़हर[28] है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़द्र अब तक तेरी तारीख़[29] ने जानी ही नहीं
तुझ में शोले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी[30] ही नहीं
तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं
तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं
अपनी तारीख़ का उनवान[31] बदलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत[32] से निकल
ज़ोफ़-ए-इशरत[33] से निकल वहम-ए-नज़ाकत[34] से निकल
नफ़्स[35] के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत[36] से निकल
क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल
राह का ख़ार[37] ही क्या गुल[38] भी कुचलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

तोड़ ये अज़्म-शिकन[39] दग़दग़ा-ए-पंद[40] भी तोड़
तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद[41] भी तोड़
तौक़[42] ये भी है ज़मुर्रद[43] का गुलू-बंद भी तोड़
तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद[44] भी तोड़
बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे

तू फ़लातून[45] ओ अरस्तू है तू ज़ेहरा[46] परवीं[47]
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं
[48] तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर[49] से जबीं[50]
मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं
लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे
उठ मेरी जान!! मेरे साथ ही चलना है तुझे


आगे चलकर इसका एक रूप फिल्‍म 'तमन्‍ना' में आया। इसे सोनू निगम ने
अपनी आवाज़ दी थी। 




यहां शबानाा आज़मी इसके बारे में बताते हुए



यहां कैफी ख़ुद ये नज्‍म सुनाते हुए



1 comment:

  1. प्रिय रेडियो मित्र,
    एक बात बताइये, ऊपर दिए गए कॉन्टैक्ट मी वाले बटन पर भेजे गए पत्र आपको मिलते भी हैं, या फिर वे नितांत शून्य में खो जाते हैं?
    मेरी जानकारी में,जिज्ञासा का प्रसारण तो अब नहीं होता, तो कृपया उस का नाम 'विविध भारती पर मुझे सुनिये' सूची से हटाया जा सकता है।
    एक प्रार्थना: तरंग की तरह, रेडियोवाणी पर भी पुराने अंकों की एक इंटरैक्टिव सूची हो तो कितना अच्छा हो। कहते हैं ना, ओल्ड इज़ गोल्ड। 😃

    आपका श्रोता अशोक

    ReplyDelete

if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/