Wednesday, November 13, 2019

एक प्‍यारा सा गांव-- नमन राजेंद्र-नीना मेहता को.....



ग़ज़लों की दुनिया की एक बड़ी हस्‍ती राजेंद्र मेहता इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कहकर चल दिए। हम ऐसे समय में जी रहे हैं
, जब हमें तमाम कलाकारों के बिछड़ने पर सोग़ मनाना पड़ रहा है।

आकाशवाणी से उनका गहरा नाता रहा। राजेंद्र जी अकसर रेडियो के बुलावे पर सहर्ष आते रहे। बहुत कम लोगों को याद है कि राजेंद्र-नीना मेहता की जोड़ी जगजीत-चित्रा या भूपिंदर मिताली से भी पहले की जोड़ी रही है। सत्‍तर के दशक में वो साथ-साथ ग़ज़लें गा रहे थे। हालांकि लगातार उन्‍हें सन 1980 में आए अलबम
हमसफरमें शामिल प्रेम वारबटोनी की नज़्म से पहचाना जाता रहा—

जब आँचल रात का लहराए
और सारा आलम सो जाए
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर
ताजमहल में आ जाना


दिलचस्‍प ये है कि सत्‍तर के दशक के प्रेमी-जोड़े जब-जब आगरा गये
, जब-जब चाँदनी रात में उन्‍होंने ताज के दीदार किए—उनके होठों पर ये नज़्म सजती रही। कितनी-कितनी जिंदगियां और जवानियां इस नज्म से रोशन होती रहीं।

बहुत कम लोगों को ये बात याद है कि सन 1965 में आयी फिल्‍म
शहीदके गानों मेरा रंग दे बसंती चोलाऔर सरफरोशी की तमन्‍नाजैसे गानों में अन्‍य गायकों के साथ राजेंद्र मेहता की भी आवाज़ थी। संगीत प्रेम धवन का था।

होता ये है कि नई पीढियां अपनी आब और ताब के साथ मौसिकी की दुनिया में आती रहती हैं। अस्‍सी के दशक में जगजीत-चित्रा की तूफानी जोड़ी ने बाक़ी सब कलाकारों की चमक को धुंधला कर दिया। पर राजेंद्र-नीना मेहता के अलबम आते रहे और जब-तब चर्चित भी होते रहे।
नीना जी कुछ बरस पहले ही इस फानी दुनिया को छोड़कर चली गयी थीं। तब से राजेंद्र जी को अकेलेपन की धुंध ने घेर लिया था।

आज राजेंद्र-नीना मेहता की याद में रेडियोवाणी पर हम आपको सुनवा रहे हैं- उनका गाया एक बेहद लोकप्रिय गीत—
एक प्‍यारा सा गांव। इसे बेमिसाल शायर सुदर्शन फाकिर ने लिखा है। अलबम है 'मंज़र मंज़र'।

मैं हमेशा कहता हूं कि हम सबके भीतर एक ग्रामीण व्‍यक्ति छिपा होता है। कुछ लोग इसे पहचान लेते हैं
, कुछ लोग अपने शहरी आवरण में इसे पहचान नहीं पाते। वरना क्‍या कारण है कि राजेंद्र-नीना के गाये इस गीत को सुनकर आंखें भर आती हैं। दिल में एक अजीब-सी कसक होती है? आपको इस सवाल के साथ छोड़कर जा रहा हूं।


नमन राजेंद्र-नीना मेहता को।





7 comments:

  1. श्रद्धांजलि..

    बचपन में जब ग़ज़लों की समझ शुरू ही हुई थी तब सबसे पहले ताजमहल वाली ग़ज़ल में राजेंद्र नीना जी को ही सुना था...फिर बाद में जब जगजीत जी को सुनना शुरू किया तब भी यही समझती थी कि राजेंद्र जी ही गा रहे हैं...बहुत बरसों तक दोनों में फर्क नहीं पता चला था मुझे...

    सुनीता

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  2. विनम्र श्रद्धांजलि

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  3. प्यारा सा गाना, बड़ा ही सुकून देने वाला।

    वो बड़े याद आएंगे।

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  4. विनम्र श्रद्धांजलि

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  5. अद्भुद गायकी रही है ...राजेन्द्र मेहता जी की उन्हें नमन

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  6. राजेन्द्र और नीना मेहता की ग़ज़ल गायकी का मैं बहुत पुराना प्रशंसक रहा हूँ। राजेन्द्र जी के अचानक चले जाने से सचमुच मुझे धक्का लगा है। परम प्रभु उनकी आत्मा को परम शांति दे।

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