Sunday, June 12, 2016

'अल्‍लाह मेघ दे'.... मूल बांग्‍ला गीत, अब्‍बासुद्दीन अहमद की आवाज़।

अब्‍बासुद्दीन अहमद बांग्‍ला के एक लोकप्रिय गायक रहे हैं।
उनकी याद गरमी के इन आखिरी तपते दिनों और बारिश की ज़ोरदार आहट के लम्‍हों में खूब-खूब आती है। इसलिए क्‍योंकि उन्‍होंने वो गाना गाया था जिसे आज रेडियोवाणी पर पेश किया जा रहा है।


अब्‍बाासुद्दीन बलरामपुर तूफानगंज, कूचबिहार में जन्‍मे साल 1901 में।
बचपन से ही संगीत में रूचि जागी। उस्‍ताद जमीरूद्दीन ख़ान और उस्‍ताद कादर बख्‍श से
सीखा। और बांग्‍ला लोकगीतों की एक बहुत ही लोकप्रिय आवाज़ बन गए। शुरूआती दौर में भवैया गीत गाते थे। उसके बाद भटियाली और मुरशीदी गीतों के लिए भी चर्चित हुए। कोलकाता में उन्‍होंने HMV और अन्‍य म्‍यूजिक कंपनियों के लिए अपने लोकगीत और इस्‍लामिक गीत रिकॉर्ड करवाए थे। उनका जो गीत आज हम यहां सुनवा रहे हैं, फिल्‍म 'गाइड' में सचिन देव बर्मन ने इसी गाने से प्रेरित होकर 'अल्‍लाह मेघ दे' जैसा गीत दिया था।

सुनिए अब्‍बासुद्दीन की आवाज़ में 'अल्‍ला मेघ दे' का मूल संस्‍करण।
इस ऑडियो के लिए हम इस ब्‍लॉग के आभारी हैं।
यूट्यूब से गाने का लिंक ये रहा।



ये रही रोमन में इस गाने की इबारत
(इस ब्‍लॉग से साभार)

Bela dwiprohor dhudhu baluchor
Dhupetey kolija phatey piyasey kator.

Allah megh de pani de chaya de re tui.

Asman hoilo toota toota jomin hoilo phata
Meghraja ghumaiya roichey megh dibo tor keda.

Phaitya phaitya roichey joto khala bila nodi
Panir laigya kainda biley ponkhi jolodhi

aler goru baindha gerosto re kainda 
khabar paner khodor khodo na re aan ki korey

kopot kopoti kandey khopetey boshiya
shukna phuler koli podey jhoriya jhoriya
अब सुनते हैं सचिन देव बर्मन की आवाज़ में फिल्‍म 'गाइड' में आया संस्‍करण। जिसे लिखा था शैलेंंद्र ने। ये मूल संस्‍करण से कहीं भी कम नहीं है। ना कविता में, ना गायकी में।



और ये 'गाइड' वाले संस्‍करण की इबारत।

अल्लाह मेघ दे, पानी दे,  छाया दे रे रामा मेघ दे
श्यामा मेघ दे
अल्लाह मेघ दे, पानी दे,  छाया दे रे रामा मेघ दे
आँखें फाड़े दुनिया देखे,  हाय ये तमाशा
आँखें फाड़े ...
आँखें फाड़े दुनिया देखे,  हाय ये तमाशा
है ये विश्वास तेरा, है तेरी आशा
अल्लाह मेघ दे ...
अल्लाह मेघ दे, पानी दे,  छाया दे रे रामा मेघ दे

इस गाने का एक रूप था गुलज़ार के बोलों वाला। फिल्‍म थी--'पलकों की छांव में'
जिसे यू-ट्यूब पर यहां सुना जा सकता है।

शुभकामनाएं इस बरस मेघा बरसे और खूूब बरसे।

2 comments:

  1. क्या बात है! शब्द दिखाई पड़ते हैं तो सुनने का मज़ा ही कुछ और हो जाता है।
    इस बरस तो ये गाना ख़ास तौर पर सुनना लाज़मी है क्योंकि इसमें जून के तपते महीने में रमज़ान के रोज़ेदारों की कातर पुकार सुनाई दे रही है -
    "दूसरे पहर की बेला, बालू उड़ाती आँधी, धूप से फटता कलेजा और प्यास से बेहाल लोगों को मेघ भेजकर कुछ तो राहत दे, मेरे अल्लाह!"
    सुभानअल्लाह यूनुस भाई !

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  2. एक मन मोहक सी बांसुरी की धुन बजा करती थी जो भी सुनता समझ जाता था कि दिन के ३ बज गए हैं। जी हाँ मैं लोकसंगीत के प्रोग्राम की धुन की बात कर रहा हूँ। क्या कोई मेरी मदद कर सकता है उस धुन को डाउनलोड करने में। आपसे खास अपेक्षा है यूनुस जी

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