रेडियोवाणी पर जगजीत कौर का जिक्र पहले भी हुआ है। जगजीत कौर ने ज्यादा गाने नहीं गाए हैं, लेकिन इतने-कम गानों के बावजूद उनके चाहने वाले उनके गाने खोज-खोजकर सुनते हैं । जगजीत जी के गानों की फेहरस्ति आप यहां देख सकते हैं । सभी सुधि-श्रोता और पाठक जानते हैं कि जगजीत कौर संगीतकार ख़ैयाम की शरीके-हयात हैं । संगीतकार ख़ैयाम फिल्म-जगत के बेहद ज़हीन संगीतकारों में से एक हैं । उन्होंने इतने लंबे सफ़र में कभी अपने काम से समझौता नहीं किया ।
पिछले दिनों रेडियोवाणी पर लगे 'सी-बॉक्स' पर गुजरात के हमारे सुधि-पाठक और श्रोता
मलय का संदेसा आया कि क्या आपके पास संगीतकार ख़ैयाम का गाया कोई गीत या ग़ज़ल आपके पास है । ज़ाहिर है कि इसका जवाब 'नहीं' में ही था । जिसके बदले में उन्होंने मुझे एक लिंक भेजी और पता चला कि HMV ने ख़ैयाम साहब का जो the golden collection नामक अलबम जारी किया है उसमें ये ग़ज़ल शामिल है ।आपके पास है । ज़ाहिर है कि इसका जवाब 'नहीं' में ही था । जिसके जवाब में उन्होंने मुझे एक लिंक भेजी और पता चला कि HMV ने ख़ैयाम साहब का जो the golden collection नामक अलबम जारी किया है उसमें ये ग़ज़ल शामिल है । ये सन 1986 में बनी मुज़फ्फ़र अली की फिल्म 'अंजुमन' के लिए रिकॉर्ड की गयी थी । पर शायद कभी रिलीज़ नहीं हो सकी । इस फिल्म के गाने आप यहां सुन सकते हैं । आपको वो गाना भी सुनाई देगा जिसे भूपिंदर सिंग और शबाना आज़मी ने गाया है । यहां ये जिक्र करते चलें कि ख़ैयाम ने अपने शुरूआती दौर में कई फिल्मी गीत गाए हैं।
( ऊपर की तस्वीर में ख़ैयाम जगजीत कौर और बीचोंबीच हैं साहिर लुधियानवी...कह नहीं सकते कि 'कभी-कभी' की रिकॉर्डिंग की तस्वीर है या फिर 'शगुन' के गानों की रिकॉर्डिंग के दौरान ली गयी तस्वीर )
रेडियोवाणी पर जल्दी ही आपको ये सभी गाने सुनवाए जा सकते हैं । बहरहाल....ख़ैयाम
साहब की आवाज़ सुनकर सुखद-आश्चर्य हुआ । और 'मधुशाला' की मन्नाडे की गाई वो पंक्ति याद आ गयी...'और और की रटन लगाता जाता हर पीने वाला' । अशआर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के हैं । ये ऐसी ग़ज़ल है जो आपके ज़ेहन में बस जायेगी । ( तस्वीर में ख़ैयाम और जगजीत कौर )
यहां सुनिए।
इस ग़ज़ल से जुडी इंटरनेटी खोजबीन में कुछ और चीज़ें मिली हैं । ये एक वीडियो प्रेजेन्टेशन है जिसे किसी ने इस ग़ज़ल को यू-ट्यूब पर उपलब्ध करवाने के लिए बनाया है ।
और ये है इसी ग़ज़ल का एक और संस्करण जिसे उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ां साहब ने गाया है । ये भी यूट्यूब से कबाड़ा गया है ।
पिछले दिनों रेडियोवाणी पर लगे 'सी-बॉक्स' पर गुजरात के हमारे सुधि-पाठक और श्रोता
( ऊपर की तस्वीर में ख़ैयाम जगजीत कौर और बीचोंबीच हैं साहिर लुधियानवी...कह नहीं सकते कि 'कभी-कभी' की रिकॉर्डिंग की तस्वीर है या फिर 'शगुन' के गानों की रिकॉर्डिंग के दौरान ली गयी तस्वीर )
रेडियोवाणी पर जल्दी ही आपको ये सभी गाने सुनवाए जा सकते हैं । बहरहाल....ख़ैयाम
यहां सुनिए।
| कब याद में तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहीं सद-शुक्र* के अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं *सौ बार शुक्र मैदाने-वफ़ा दरबार नहीं, यां नामो-नसब* की पूछ कहां *नाम और वंश आशिक़ तो किसी का नाम नहीं, कुछ इश्क़ किसी की ज़ात नहीं जिस धज से कोई मक्तल* में गया, वो शान सलामत रहती है *फांसी या बलि देने की जगह ये जान तो आनी-जानी है, इस जां की तो कोई बात नहीं गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है, जो चाहे लगा दो डर कैसा गर जीत गए तो क्या कहना, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं |
इस ग़ज़ल से जुडी इंटरनेटी खोजबीन में कुछ और चीज़ें मिली हैं । ये एक वीडियो प्रेजेन्टेशन है जिसे किसी ने इस ग़ज़ल को यू-ट्यूब पर उपलब्ध करवाने के लिए बनाया है ।
और ये है इसी ग़ज़ल का एक और संस्करण जिसे उस्ताद नुसरत फ़तेह अली ख़ां साहब ने गाया है । ये भी यूट्यूब से कबाड़ा गया है ।
इस नायाब चीज़ से परिचय का आभार.
ReplyDelete{ Treasurer-T & S }
बिल्कुल पहली बार ही सुना ख़ैयाम को.…साथ ही नुसरत फ़तेह अली ख़ां वाला संस्करण भी बहुत पसंद आया …
ReplyDelete"कब याद में तेरा साथ नहीं, कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
सद-शुक्र* के अपनी रातों में अब हिज्र की कोई रात नहीं "
"गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है, जो चाहे लगा दो डर कैसा
गर जीत गए तो क्या कहना, हारे भी तो बाज़ी मात नहीं" …
वाह वाह वाह !! मस्त कर दिया यूनुस भाई. एक मुद्दत के बाद सुना ये गीत. इसी फ़िल्म का शबाना आज़मी का गाया ........"मैं राह कब से ......." कहीं से जुगाड़ कर सुनवाइये न .....
ReplyDeleteyunus bhaaee namaskaar,
ReplyDeletedopahar se hi yah geet sun rahaa hun... bahot majaa aayaa baad me niche khaan dada ki aawaz me aur bhi nayaapan liye hai ... bahot majaa aayaaa bahot bahot badhaayee aur abhaar
arsh
Shukriya ise sunwane ka.. khayyam sahab jab akele gate hain tabhi unka swar sahi sunayi deta hai jabki yugal swar mein unki aawaaz jagjit ki aawaaz mein dab jati hai.
ReplyDeleteअंजुमन फिल्म में शबाना आज़मी ने भी अपनी आवाज़ में गाने गाये हैं...मेरे पास इस फिल्म का केसेट था...
ReplyDeleteनीरज
पहली बार सुना है इसे, बहुत सुकून देता गीत, शुक्रिया
ReplyDeletebeautiful.....nice...
ReplyDeleteशुक्रिया दोस्त ...मन खुश कर दिया आपने ...ये शब्द और इन्हें लिखने/गाने वाले इंसानियत को ताकत देते हैं ...हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeletenice blog for music lovers... great job..
ReplyDeleteWork from home
बहुत जखीरा है ऑडियो-वीडियो इण्टरनेट पर। बस भारत में उससे खेलने को न पर्याप्त बैण्डविड्थ है न सस्ताई।
ReplyDeleteआपके इन लिंक्स के लिये धन्यवाद।
युनुस भाई , नमस्कार .
ReplyDeleteखयाम साहब की आवाज़ में ग़ज़ल सुन कर
बहुत लुत्फ़ और सुकून हासिल हुआ ....
आपको दैनिक भास्कर में हर ब्रहस्पतिवार पढता रहता हूँ
आपके पास फिल्मों से वाबस्ता भरपूर खजाना है ...
एक गीत सुनने की ख्वाहिश है ....
"मेरे नैना सावन भादों ....."
( यकीनन फिल्म "महबूबा" वाला नहीं )
लेकिन गया लताजी ने ही है ....फिल्म कुछ (विद्या) या (विद्यापति) ...शायद....
इसके इलावा एस डी बातिश और क्रिशन गोयल की आवाज़ में भी कुछ नगमें होंगे
आपके पास ..!!
मुन्तजिर .....
---मुफलिस---
भाई युनूश,
ReplyDeleteशुक्रिया खय्याम साहब की आवाज़ के किये.
अल्लाह आप के वक़्त में बरकत दे की आप ऐसी चीजों से हम सब को रू-ब-रू करते रहें.