हम शास्त्रीय-संगीत के 'ज्ञाता' नहीं है, रेडियो में हम 'कानसेन' और 'तानसेन' के मुहावरे कहते रहे हैं । अगर इस 'तकनीकी' शब्दावली में कहें तो अपन 'कानसेन' की श्रेणी में आते हैं । स्कूल के ज़माने में गिटार सीखने का जो सपना था, वो अभी तक ‘to do’ लिस्ट में अंकित है और मुल्तवी होता रहा है । हां कभी-कभी B.X.FURTADO & SONS जैसी दुकानों के सामने से निकलें तो बड़ी तमन्ना से गिब्सन के 'स्पेनिश गिटार' को निहार कर ख़ुश हो लेते हैं । एकाध बार भीतर जाकर 'इन्स्ट्रूमेन्ट्स' को हाथ में लेकर आज़मा लेते हैं और चले आते हैं । दरअसल अपने जेब में समय के 'पर्स' में केवल थोड़ी बहुत 'चिल्लर' ही है फिलहाल, ज़्यादा कुछ है नहीं ।
बहरहाल...ये कमी हम संगीत सुनकर पूरी करते हैं । रेडियोवाणी पर कभी-कभार शास्त्रीय रचनाएं 'चढ़ाई' जाती रही हैं । पर अब संभवत: ये सिलसिला
| गंगा-रेती में बंगला छबा मोरी राजा आवै लहर जमुने की । कोई अच्छा-सा खिड़की कटा मोरे राजा, आवै लहर जुमने की ।। खिड़की कटाया, मोरे मन भाया कोई छोटी-सी बगिया लगा मोरे राजा आवै महक फूलों की ।। |
इसी तरह का गीत फिल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में आया था । इसे भी सुनिए ।
फिल्म-मिर्ज़ा ग़ालिब (1954)
गीत:शकील बदायूंनी / संगीत:नौशाद/ आवाज़:सुधा मल्होत्रा
बोल अक्षरमाला से साभार
हो ओ गंगा की रेती पे
गंगा की रेती पे बंगला छवाय दे
सैंया तेरी ख़ैर होगी, बलमा तेरी ख़ैर हो
खिरकी की ओर कोई बगिया लगाय दे
फूलों की सैर होगी, बलमा तेरी ख़ैर हो
ओ ओ नैनों से नैन मिले
बातें हो प्यार की
पायल के साथ बजे बंसी बहार की
इक तुम हो इक मैं कोई न और हो
सैंया तेरी ख़ैर होगी बलमा तेरी ख़ैर हो
गंगा की रेती पे बंगला छवाय दे
सैंया तेरी ख़ैर होगी बलमा तेरी ख़ैर हो
ये गीत यूट्यूब पर देखिए
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शानदार गीत सुनाने का शुक्रिया रही बात गिटार की तो आप कभी भी आकर हमसे कोई भी यंत्र बजाना सीख सकते है . हम काफ़ी सारे यंत्रो जैसे हारमोनियम गिटार सितार इत्ता बजा चुके है कि अब वो बजना भी भूल चुके है . याद रखे हम से सीखने के बाद सारे यंत्र जिसे भी आप हाथ लगायेगे याद रखेगे कि किस महान आतमा से पाला पडा है
ReplyDeleteएक और मोती खोज कर ले आये आप -आभार ! गिरिजा देवी की आवाज सचमुच दिक्काल और विमाओं के पार ले जा पहुंचाती है ! वे खुद तो बहुत ही लौकिक जीवन जीती हैं (अभी उसी दिन उन्हें रिक्शे पर जाते देखा ! ) मगर आवाज का जादू ऐसा की पारलौकिक अनुभव दिला देती हैं -दादरा के बोल और भाव दोनों सचमुच बेखुद करने वाले हैं ! पुनः आभार !
ReplyDeleteअच्छी जानकारी, इतने सुन्दर और सटीक लेखन के लिये। बहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteगंगा-जमुनी संस्कृति के लिये इससे बढ़िया कोई गीत और स्वर नहीं हो सकता। बहुत धन्यवाद सुनाने के लिये।
ReplyDeleteइस बेहतरीन गीत को सुनवाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteजिस तरह आपकी गिटार सीखने की तमन्ना अदूरी रह गयी, उसी तरह हमारी तमन्ना रही थी शास्त्रीय संगीत सीखें, और छोटा, बडा खयाल, इस नायाब चीज़ की तरह रचनायें, ठुमरी, दादरा, आदि गा पाते.
ReplyDeleteमगर यहां सुन कर तसल्ली तो हो गयी. तानसेन नही तो कानसेन तो बन ही गये है.
धन्यवाद आपके, जो आज रविवार को सुकून भरा बना दिया. उधर संजय भाई की सुर पेटी पर मेहदी साहब के सुर कानों में उतार कर आया हूं.
अब आप दोनो, और सागर जी के साथ की जुगलबंदी का बिरादरी पर इंतेज़ार रहेगा.
बहुत हई उम्दा भाई! बहुत उम्दा!
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ReplyDeleteIs durlabh prastuti ke liye dhanyavad aur badhai.
ReplyDeleteशानदार...
ReplyDeleteहजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले। बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिरभी कम निकले॥
ReplyDeleteभाई,आपको गिटार मिल जाता तो यह गीत आप तब भी हमें सुनाते जरूर। आपका ब्लॉग भाई अनिल जनविजय ने भेज़ा है। आप दोनों का जितना शुक्रिया अदा किया जाए, कम है। इन मोतियों को ढूँढ़ने के लिए संगीत के सागर में कितने गहरे उतरना पड़ा होगा, यह आप जानो; बहरहाल हम अपने भाग्य को सराह रहे हैं कि अपनी इसी जिन्दगी में हमने इन्हें सुना।
वाह ! गिरिजा देवी जी को तो खूब सुनता हूं लेकिन इस तरह ..सुधा मल्होत्रा ...मिर्ज़ा गालिब....! वाअह !
ReplyDeleteGirija jImko jab bhi suna hai achchha laga hai..! aur aaj bhi
ReplyDeleteभाई साहेब आप इतना अच्छा गीत संगीत इसी लिए सुनवा पाते हैं कि "सभी" लोग नहीं गा बजा रहे हैं. अगर सभी लोग गाने बजाने लगेंगे तो आपको हमारे लिए अच्छा संगीत ढूढने में दिक्कत आएगी. आप गिटार बजाने का शौक बेशक पूरा ना कर पाए हो, हमारे "सुनने" का शौक आपकी वजह से जरूर पूरा हो रहा है.
ReplyDeletehuzoor ! jo bhi sunaa...nayaab.
ReplyDeleteyooN lagaa
jaise ziyarat ho gyi
abhinandan.
---MUFLIS---
मधुर गीत के लिये आभार आप कहाँ हो आजकल ? :)
ReplyDeleteहमारे राजा बाबा और ममता जी को
स स्नेह आशिष
- लावण्या
गिरिजा जी का जवाब नहीं।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
श्री युनूसजी,
ReplyDeleteबहोत ही अच्छा लेख़ । पर एक सुधार जरूर करने की गुस्ताख़ी करूँगा । नौशाद के स्थान पर गुलाम महम्मद होना चाहिए ।
पियुष महेता ।
नानपूरा-सुरत ।
इतने मीठे गीतों को सुनवाने के लिए धन्यवाद।
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