ऐसे दिनों में 'आब-ए-हयात' फिल्म का ये गीत अचानक सुनाई दिया । तो पाया कि परदे पर प्रेमनाथ घोड़े पर चले जा रहे हैं । चूंकि पहली बार ये गाना सुना था तो इसकी जन्म-कुंडली पता नहीं थी । फिल्म का नाम आख्रिरी में आया तो समझ नहीं आया कि ये 'आबे-हयात' क्या बला है । फिर बहुत बात में पता चला कि ये तो वो जल है जो व्यक्ति को अमर करता है । अंग्रेज़ी में कहें तो mortal waters.
बहरहाल आईये 'आबे-हयात' के इस गाने पर लौटें । फिल्मिस्तान प्रोडक्शन्स की ये फिल्म सन 1955 में आई थी । रमण लाल देसाई इसके निर्देशक थे । मुख्य-कलाकार थे प्रेमनाथ, अमिता, शशिकला, प्राण, हेलेन, मुबारक । मैं आपको बता दूं कि इससे पहले सन 1933 में भी आब-ए-हयात बन चुकी थी और उसमें मलिका-ए-तरन्नुम नूरजहां ने काम किया था ।
इस गाने के सही-स्टार हैं हेमंत कुमार । उनकी आवाज़ में ऐसा जोशीला
विविध भारती में मुझे इस फिल्म के संगीतकार सरदार मलिक से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । लेकिन एक ही दिक्कत थी कि संगीतकार अन्नू मलिक के पिता होने की वजह से वे इतने गौरवांवित थे कि अपने बारे में ना तो वे कुछ ज्यादा याद कर पाये और ना ही ख़ास दिलचस्प बातें ही बता पाए । उनकी हर कहानी अन्नू से शुरू होकर अन्नू पर ही खत्म हो गयी । जबकि सरदार मलिक स्वयं अपने जमाने में सारंगा, मेरा घर मेरे बच्चे, बचपन और आबे हयात जैसी फिल्में में संगीत देकर एक महत्त्वपूर्ण संगीतकार का दर्जा हासिल कर चुके थे । उम्र ने भी उन पर अपना असर दिखाया था और कुछ अन्नू की सफलता उनकी सफलता से बड़ी थी, इसका भी असर रहा होगा । बहरहाल इस गाने के ज़रिए हम सरदार मलिक की प्रतिभा को सलाम करते हैं ।
इस गाने को सुनिए और बताईये कि कैसा लगा आपको ।
मैं गरीबों का दिल, हूं वतन की ज़बां
बेकसों के लिए प्यार का आसमां ।।
मैं जो गाता चलूं साथ महफिल चले
मैं जो बढ़ता चलूं साथ मंजिल चले
मुझे राहें दिखाती चलें बिजलियां
मैं ग़रीबों का दिल हूं, वतन की ज़बां ।।
हुस्न भी देखकर मुझको हैरान है
इश्क़ को मुझसे मिलने का अरमान है
अपनी दुनिया का, हूं मैं हसीं नौजवां
मैं ग़रीबों का दिल, हूं वतन की ज़बां ।।
कारवां जिंदगानी का रूकता नहीं
बादशाहों के आगे मैं झुकता नहीं
चांद तारों से आगे मेरा आशियां
मैं ग़रीबों का दिल, हूं वतन की ज़बां ।।
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मैं जो बढ़ता चलूं साथ मंजिल चले
ReplyDeleteमुझे राहें दिखाती चलें बिजलियां -
- बहुत अच्छा लगा, वैसे बडे साफ शब्दों में आपने सरदार मलिक से हुए अनुभव को बयान किया कि उनकी बाते अन्नू से शूरू और अन्नू से खत्म होती थी,- बेबाक लिखा है, अच्छा लगा, आजकल ऐसी राय और खुले विचार कम देखने में आते हैं।
पहली मर्तबा इक मित्र के ब्लॉग के ज़रिये इधर आया तो बिना प्रभावित हुए न रह सका (ये बात इसलिए भी चूँकि मुझे लगता है कि ब्लोगिंग की दुनिया में आजकल बहुतियात कुकुर्मुत्तें जैसे ब्लोगों की भी है...इसके लिए क्षमा चाहूंगा कि आप रेडियो पर होने के वाबजूद मैं आपसे महरूम रहा...बहरहाल मेरे शगल में गीत और ग़ज़लें उस खुशबू की तरह हैं, जिनके बिना कोई भी फूल अधूरा है...खासियत में आप अपने अनुभवों के साथ गीत का ब्यौरा भी देंते हैं, ये आकर्षण उम्दा है. लव इत्. मैं चाहूंगा आप हमेशा जारी रहेंग. शुभकामनाएं व् शुक्रिया.
ReplyDelete---
उल्टा तीर भी इक बार जरुर विसिट करें.
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उल्टा तीर
bahut sundar geet. bahut dinon baad suna. is peshkash ka shukriya.
ReplyDeleteयुनुस जी पता नही क्यों ये गीत मुझे कभी पसंद नही आया :) कोई कैसे अपनी इतनी तारीफ कर सकता है बात समझ से बाहर है, वैसे हेमंत दा मेरे सबसे पसंदीदा हैं पर ये गीत ......आपने सही कहा ये बहतीं कोरस में से एक है....संगीत भी अच्छा है....
ReplyDeleteयूनुस भाई, पता नहीं आप कौन सी टेलीपैथी का इस्तेमाल करते हैं कि जो गाना मैं पिछले दिन पता नहीं कितने सालों बाद सुन रहा होता हूं, वह ज़्यादातर अगले रोज़ आपके यहां शान से दमक रहा होता है. सच कह रहा हूं. इस गीत के साथ भी यही हुआ.
ReplyDeleteबेहतरीन पेशकश आपकी. हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका ब्लॉग अलग इस लिये नज़र आता है कि आपकी हर पोस्ट बहुत मेहनत और प्यार से तैयार की गई होती है और वह दिखाई भी देता है.
बने रहें साहब!
तो आप रहे युनूस जी !!
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
पहली बार आपके द्वार पर आगमन हुआ । मुझे यह जानकर खुशी हुई कि आपका भी ब्लाग दौड़ रहा है ।
आपसे काफ़ी कुछ सीखा है ,पहले (2002-2006)विविध भारती बहुत सुनता था वही से हिन्दी लिखने की रूचि जगी ।
आपके वे शब्द नही भूलते " हाज़िर है आपका दोस्त युनूस खान लेकर …"
पहले पत्र लिखता था लेकिन अब सब छोड़ दिया सुनना और लिखना दोनों ।
अब तो सबको यही खोजता हूं शायद मिल जाये ।
क्या अमीन अंकल भी ब्लाग लिखते है और ममता जी और निम्मी जी ???
अगर हो सके तो विविध भारती से जुड़े सभी लोगो के ब्लाग एड्रेस दे दीजियेगा ।
आज आपके गाने नही सुना लेकिन हां आप मिले तो दिल के तार अपने आप बज उठे ।
समीर जी के बाद आप से मिलना मेरा सौभाग्य है
:)
Yunusbhai
ReplyDeleteOne of the best songs of Hemantda. I have heard this song several times, but watching it has multiplied my joy.
Thank you for a lovely presentation.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
शुक्रिया युनूस जी इस गीत के लिए
ReplyDeleteशुक्रिया इस कालजयी गीत के लिए.
ReplyDeleteThanks for this song. Hemant Kumar giving playback for "Robinhood" Premnath. That certainly made my day. I have heard this song, but I was not aware of the history of this song.
ReplyDeleteaaj pahli baar aapke blog par aana hua...man khush ho gaya. lajawaab geeton ka khazana hai aapka blog...yah geet bhi bahut khoob hai.
ReplyDeleteजै जै यूनुस भाई,
ReplyDeleteअशोक जी के लफ्ज़ हैं मेरे पास भी।
हेमंतदा के यूं तो सभी गीत पसंद हैं, पर ये कुछ खास है। धनबाद है।
हो सके तो हेमंतदा का ही- ओ जाने जां, इक बार ज़रा फिर कह दो....भी सुनवा सकें तो शुक्रगुज़ार रहूंगा।