Tuesday, May 27, 2008

सैंया बिना घर सूना सूना- बप्‍पी लहरी का एक अनमोल गीत ।

बप्‍पी लहरी ( लाहिड़ी ) को आमतौर पर अस्‍सी के दशक के फूहड़ गानों के लिए ही याद किया जाता है और ये दुख की बात है । बहुत समय पहले रवि भाई ने लिखा था कि उन्‍हें अस्‍सी के दशक के झमाझम गाने पसंद आते हैं और उनके घर वाले इस बात पर उनका मज़ाक़ उड़ाते हैं । पिछले दिनों अपने छोटे भाई के साथ मैं भी बचपन के दिनों को याद कर रहा था और हमने हंस हंस कर तोहफा और मवाली जैसी फिल्‍मों के गानों को याद किया ।

सचमुच बेहद हल्‍के और फूहड़ गानों का युग था वो । लेकिन तब वो भी अच्‍छे लगते थे और आज उनमें एक नॉस्‍टेलजिक एलीमेन्‍ट नज़र आता है । तभी तो कहीं से अगर 'तोहफ़ा तोहफ़ा' की तरंग सुनाई देती है तो हम फौरन अस्‍सी के दशक में पहुंच जाते हैं । बहरहाल ....आज मैं ये बात ज़ोर देकर कहना चाहता हूं कि बप्‍पी लहरी को केवल 'अस्‍सी के दशक के फूहड़ गीतों तक' रिड्यूस करना ठीक नहीं है । मैं बप्‍पी दा को बेहद प्रतिभाशाली संगीतकार मानता हूं और इसके तर्क भी हैं मेरे पास ।

इच्‍छा तो ये है कि रेडियोवाणी पर 'अस्‍सी के दशक के फूहड़' गीतों की एक नॉस्‍टेलजिक सीरीज़ भी चलाई जाये और बप्‍पी दा के उत्‍कृष्‍ट गीत भी । ज़ाहिर है कि फिलहाल उत्‍कृष्‍टता पर ही हमारे रिकॉर्ड की सुई टिकी रहे तो अच्‍छा । पर अगर रेडियोवाणी पर आपको 'ता थैया ता थैया हो' सुनाई दे जाये, फिल्‍म 'हिम्‍मतवाला' से....तो बजाय मुंह बिचकाने के, अपने भीतर झांककर सोचिएगा कि उस ज़माने में आप इन गानों को कितना सुनते थे रेडियो पर ।

सन 1979 में एक फिल्‍म आई थी-'आंगन की कली' । मैंने ये फिल्‍म नहीं देखी और ना ही देखने की कोई तमन्‍ना है । पर इस फिल्‍म का ये गाना....सही मायनों में अदभुत है । अगर हम 'हिम्‍मतवाला' , 'तोहफा' और 'जस्टिस bappi चौधरी' के गानों से भप्‍पी दा को आंकें तो ये कहीं से भी उनका गाना नहीं लगता । ग्रुप वायलिन की विकल तरंग के बीच लता जी का गुनगुनाना ......'सैंया बिना घर सूना-सूना' और फिर धीरे से नाज़ुक से रिदम का शुरू होना' । और फिर मुखड़े के बाद बांसुरी....वो भी हल्‍की सी प्रतिध्‍वनि के साथ । दिलचस्‍प बात ये है कि इस गाने में भूपिंदर एकदम आखिरी छोर पर आते हैं तकरीबन तीन मिनिट तिरेपन सेकेन्‍ड पर....और कहते हैं.....'आंसू यूं ना बहाओ, ये मोती ना लुटाओ' । ये गाना किसी ठेठ सामाजिक फिल्‍म का फलसफाई गाना भले हो...पर कहीं ना कहीं हमारे अंतस को छूता है । भप्‍पी दा को सलाम करते हुए ये अर्ज़ करूंगा कि उन्‍होंने सिर्फ सोने के गहने ही नहीं पहने और ना ही सिर्फ पश्चिम के गीतों की नकल करके डिस्‍को लहर चलाई । शास्‍त्रीयता से पगे ऐसे गीत भी बनाए हैं बप्‍पी दा ने कि अचरज होता है ।


आज महानायकों और सफल व्‍यक्तित्‍वों के तिलस्‍म को टूटते हुए देख रहे हैं हम । शायद ये सिलसिला अस्‍सी में ही शुरू हो गया था जब 'चलते चलते' जैसे गाने बनाने वाले बप्‍पी दा ने डिस्‍को की राह पकड़ी थी । बीच बीच में उन्‍होंने कैसे खुद को साबित किया....ये जानने के लिए और बहसियाने के लिए रेडियोवाणी पर आते रहिएगा । फिलहाल तो--सैंयां बिना घर सूना सूना ।



शैलेंद्र के सुपुत्र शैली शैलेंद्र की रचना है ये । शैली मार्च 2007 में एक गुमनाम मृत्‍यु को प्राप्‍त हुए हैं ।

लता: सैंयाँ बिना घर सूना, सूना
सैंयाँ बिना घर सूना
राही बिना जैसे सूनी गलियाँ
बिन खुशबू जैसे सूनी कलियाँ
सैंयाँ बिना घर सूना
सूना दिन काली रतियां
असुवन से भीगी पतियां
हर आहट पे डरी डरी
राह तके मेरी अँखियाँ
चाँद बिना जैसे सूनी रतिया
फूल बिना जैसे सूनी बगिया
सैंयाँ बिना घर सूना ...
अंधियारे बादल छाये
कुछ भी ना मन को भाये
देख अकेली घेरे मुझे
यादों के साये साये
चाँद बिना जैसे सूनी रतिया
फूल बिना जैसे सूनी बगिया सैंयाँ
बिना घर सूना ...
भूपिन्दर: आँसू यूँ ना बहाओ
ये मोती न लुटाओ
रुकती नहीं हैं वक़्त की धारा
पल पल बदले जग ये सारा

जैसे ढलेगी रात अँधेरी
मुस्कायेगा सूरज प्यारा
सुख के लिए पड़े दुःख भी सहना
अब ना कभी फिर तुम ये कहना.

चाँद बिना जैसे सूनी रतिया
फूल बिना जैसे सूनी बगिया
सैंयाँ बिना घर सूना !

16 comments:

  1. मैं आपसे पूरा इत्तफाक रखता हूँ यूनुस भाई, उस Nostalgia की जो बात आपने की है. बात रही इस गीत की, ये तो अद्भुत है.

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  2. यूनुस जी,
    बहुत मधुर गीत, ये पहले कभी नहीं सुना था | बप्पी दा के हर गाने के पंखे, कूलर और ऐसी हैं हम, और जिन गानों में प्रभुजी हों उनकी तो बात ही अलग है | कभी लोकल गीतों की लड़ी भी लगाइये रेडियोवाणी पर, आपके पक्के ग्राहक कहीं नहीं जायेंगे, नए बनेंगे सो अलग... :-)

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  3. अब आप भी गाईये.. तोहफ़ा तोहफ़ा.. लाया.. लाया..
    :)
    क्या मस्त गाने का तोहफ़ा लेकर आये हैं साहब.. हम भी कभी कभी उन गानों को याद करके हंसते हैं.. मगर उन गानों में कुछ तो बात थी ही जो हम अभी भी उन्हें याद करते हैं..

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  4. यूनुस जी, वाकई आपने हमें दिया - तोहफ़ा तोहफ़ा तोहफ़ा

    आंगन की कली फ़िल्म और यह गीत कभी हमारी चर्चा का विषय हुआ करते थे। इस गीत को हमने विविध भारती पर बहुत बार सुना। फ़िल्म में यह गीत बहुत ही भावुक बन पड़ा है।

    आपने लिखा कि यह फ़िल्म न आपने देखी और न ही देखने की तमन्ना है - मैं नहीं जानती ऐसा आपने क्यों लिखा पर इतना कहूँगी कि आपने बहुत ग़लत लिखा।

    यह कोई सामाजिक फलसफ़े की फ़िल्म नहीं है। यह फ़िल्म बहुत ही संवेदनशील है। इसमें नायिका को हृदय रोग होता है उसका नायक से विवाह हो जाता है, एक ओर जीने की तमन्ना दूसरी ओर मौत, बहुत ही भावुक फ़िल्म है।

    मैनें यह फ़िल्म सबसे पहले दूरदर्शन पर देखी थी और यह गीत भी चित्रहार में बहुत बार देखा था। हो सके तो यह फ़िल्म आप एक बार ज़रूर देखिए, आपको बहुत पसन्द आएगी और फ़िल्म देखने के बाद यह गीत और अधिक पसन्द आएगा।

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  5. अन्‍नपूर्णा जी, मुझे लगा कि ये उस दौर की टसुए बहाऊ फिल्‍म होगी । :( पर आपने ज्ञान दिया है तो अब खोजना होगा इसे । मुझे इस फिल्‍म के गाने बेहद पसंद हैं । :P

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  6. sach kaha annapurna ji ne ye geet chitrahaar me bahut aata tha...! abhi kal hi gunguna rahinthi mai ye geet.

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  7. सच में यह गीत तो बहुधा सुनने का मन करता है। अब डाउनलोड कर लेते हैं!

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  8. भप्पी दा की प्रतिभा को सही आंकलन नहीं मिला क्योंकि उनपर डिस्को किंग होने का ठप्पा लग गया. अगर अच्छे से ढूँढा जाए तो उनके कई यादगार गीत मिलते हैं.

    ये गीत भी शानदार है. लेकिन भूपेन्द्र हमें ये पंक्तियाँ गाते सुनाई दिए:

    आँसू यूँ ना बहाओ
    ये मोती न लुटाओ
    रुकती नहीं हैं वक़्त की धारा
    पल पल बदले जग ये सारा
    जैसे ढलेगी रात अँधेरी
    मुस्कायेगा सूरज प्यारा
    सुख के लिए पड़े दुःख भी सहना
    अब ना कभी फिर तुम ये कहना.


    कृपया जोड़ लें.

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  9. शुक्रिया प्रेतविनाशक ।
    मिसिंग लाइन्‍स के लिए ।
    :D
    आते रहिए

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  10. तोहफा और मवाली जैसी फिल्मों के आने के बाद कुछ सालों तक हमने फिल्में देखना ही छोड़ दिया था।

    वैसे आँगन की कली इतनी बुरी फ़िल्म भी नही थी. और लक्ष्मी (जूली फेम वाली ) ने काफ़ी अच्छी एक्टिंग की थी. ये गाना सुनने मे पहले भी अच्छा लगता था और अब भी लगा। अन्नपूर्णा जी की कहानी और थोडी बढ़ा देते है इसमे हिरोइन को बच्चे नही थे और वो एक बच्ची को गोद लेती है।कुछ ऐसी ही कहानी थी।

    और हाँ युनुस भाई हेमंत कुमार की आवाज मे गोअई संगीत जरुर सुनवाइये। इंतजार रहेगा।

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  11. पहली बार सुना ये गीत, अच्छा लगा... बप्पी लहरी की छवि तो है ही अलग पर कई सारे संजीदा गीत भी तो हैं उनके. जैसे चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, प्यार माँगा है तुम्ही से.. इत्यादी.

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  12. युनूस भाई,
    बेहतरीन गीत सुनवानाया - शुक्रिया हमने तो सहगल साहब और लतादी दोनोँ के लिन्क एक साथ सुने ..
    तो मज़ा आ गया!
    - लावण्या

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  13. इसमें कोई शक नहीं कि ये गीत बप्पी दा के मधुर गीतों में से एक है। बप्पी दा की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है कि उन्होंने अपने फूहड़ संगीत की वजह से हिंदुस्तानी जनमानस का ध्यान गज़लों और भजनों की ओर मोड़ा। बहुत पहले मैंने इन्ही फिल्मों का नाम लेकर इस विषय पर अपने विचार लिखे थे।


    http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2006/08/blog-post_115682622196537105.html

    खैर अगर आप झोपड़ी में चार बाई, साड़ी हवा हो गई.. सरीखे गीतों को नोस्टॉल्जिया के तौर पर लाना चाहते हैं तो मेरे हिसाब से इस शब्द का गलत इस्तेमाल होगा। :)

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  14. अनमोल,सुंदर गीत। शैली शैलेंद्र के शब्द सरल पर असरदार :’सूनेपन’ को परिभाषित कर जाते हैं ।

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  16. युनूसभाई,
    बहुत दिनोंबाद आपके ब्लोग पर दस्तक दे रहा हूं. आशा है आप अभीतक मुझे भूल न गये हो.
    इस गीतके गीतकार के बारेमें एक जानकारी देना चाहता हू. उनका नाम शेली था, न की शैली. उनके पिता शैलेंद्र जी ने अपने इस बेटेका नाम आंग्ल भाषा के महान कवी 'शेली' इनकी यादमे रखा था. राज कपूरकी फिल्म मेरा नाम जोकर के 'जीना यहां मरना यहां' ये शायद उनके द्वारा लिखा हुवा पहला गीत था.
    विकास शुक्ल

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