Thursday, November 1, 2007

एक ही ख्‍वाब कई बार देखा है मैंने- भूपेंद्र, गुलज़ार और आर.डी.बर्मन


रेडियोनामा पर आजकल भूपेंदर सिंग की तरंग चढ़ी हुई है । सर्दीली आवाज़ वाले भूपेंद्र मुझे हमेशा से पसंद रहे हैं । उनकी कुछ ग़ज़लें भी कमाल की हैं । लेकिन हम इस श्रृंखला को नियमित रख सके तो केवल फिल्‍मी गीतों की ही बात करेंगे । हां उनका एक ग़ैरफिल्‍मी गीत है जो मिला तो मैं ज़रूर सुनवाना चाहूंगा । बोल हैं--चौदहवीं रात के इस चांद तले, दूधिया
जोड़े में जो आ जाए तू, बुद्ध का ध्‍यान भी भटक जाए । इसे गुलज़ार ने लिखा है ।

बहरहाल, मैंने पहले ही सोच रखा था कि इस श्रृंखला का दूसरा गीत 'किनारा' का होगा । और कुछ पाठकों ने भी इसकी फ़रमाईश कर डाली है । तो चलिए आज एक और मासूम और नाज़ुक गीत से रूबरू हो जाएं ।

फिल्‍म 'किनारा' 1977 में आई थी । गुलज़ार इसके निर्देशक थे । धर्मेंद्र, जीतेंद्र और हेमामालिनी प्रमुख कलाकार थे । हिंदी सिनेमा की बहुत समझदार फिल्‍मों में इसकी गिनती होती है । इस फिल्‍म में संगीत राहुलदेव बर्मन का था ।

दिलचस्‍प बात ये है कि गुलज़ार और राहुलदेव बर्मन में एक रचनात्‍मक भिड़ंत सदा-सर्वदा चलती रही । उसका कारण था गुलज़ार की लेखनी । पंचम यानी राहुलदेव बर्मन गुलज़ार से कहते थे कि कल को आप एक अख़बार ले आयेंगे और कहेंगे ऐसा करो इस वाली ख़बर को कंपोज़ कर दो । दरअसल गुलज़ार की बीहड़ लेखनी को सुरों में पिरोना वाक़ई जिगर वाले संगीतकारों के ही बस की बात है । और ये गाना भी इसी की मिसाल है ।

फिल्‍म-संसार के बेहद नाज़ुक और बेहद रूमानी गीतों में इस गाने का शुमार होता है ।
आप इसे सुनकर खुद ही ज़ेहन में गुलाबी-गुलाबी सा महसूस करेंगे । इसके संगीत में गिटार का अद्भुत प्रयोग है । यहां आपको ये बता देना ज़रूरी है कि भूपिंदर बरसों बरस गिटार प्‍लेयर के तौर पर काम करते रहे हैं । उन्‍होंने कई मशहूर गीतों में शानदार गिटार बजाया है । जैसे 'हरे रामा हरे कृष्‍णा' का गीत 'दम मारो दम' का आरंभ सुनिए । ये रहा केवल आरंभ ।



इसी तरह 'ज्‍वेल थीफ़' के गीत 'होठों में ऐसी बात' में भी उन्‍होंने गिटार बजाया है । साथ में 'हो शालू' वाली पुकार भी भूपेंद्र की ही है । नाज़ुकी और रूमानियत भूपेंद्र की खासियत है ।
इसलिए उन्‍हें कई ऐसे गीत मिले हैं, जिनमें अकेलापन है, या फिर शिद्दत से प्‍यार करने का जज्‍़बा है । या फिर जिंदगी के ग़मों का नीला समंदर है । इस तरह के कई और गाने रेडियोवाणी पर आपको सुनने मिलेंगे । पर फिलहाल सुनिए, पढि़ये और देखिए--ये गीत

Get this widget | Track details | eSnips Social DNA


एक ही ख्‍वाब कई बार देखा है मैंने
तूने साड़ी में उड़स ली हैं मेरी चाभियां घर की
और चली आई है बस यूं ही मेरा हाथ पकड़ कर
एक ही ख्‍वाब कई बार देखा है मैंने ।

मेज़ पर फूल सजाते हुए देखा है कई बार
और बिस्‍तर से कई बार जगाया है तुझको
चलते-फिरते तेरे क़दमों की वो आहट भी सुनी है
एक ही ख्‍वाब कई बार देखा है मैंने ।

क्‍यों । चिट्ठी है या कविता ।
अभी तक तो कविता है । ( सुलक्षणा पंडित का नाज़ुक आलाप )

गुनगुनाती हुई निकली है नहाके जब भी
और, अपने भीगे हुए बालों से टपकता पानी
मेरे चेहरे पे छिटक देती है तू टीकू की बच्‍ची
एक ही ख्‍वाब कई बार देखा है मैंने ।

ताश के पत्‍तों पे लड़ती है कभी-कभी खेल में मुझसे
और लड़ती है ऐसे कि बस खेल रही है मुझसे
और आग़ोश में नन्‍हे को लिए
will you shut up?

और जानती है टीकू, जब तुम्‍हारा ये ख्‍वाब देखा था ।
अपने बिस्‍तर पे मैं उस वक्‍त पड़ा जाग रहा था ।।



Technorati tags:
, ,,फिल्‍म किनारा ,,,,,,,

चिट्ठाजगत पर सम्बन्धित: भूपिंदर-सिंह, भूपेंद्र-सिंह, गुलज़ार, आर.डी.बर्मन, फिल्‍म-किनारा, एक-ही-ख्‍वाब-कई-बार-देखा-है-मैंने, भूपेंद्र-मिताली, ek-hi-khwab, bhupinder, bhupendra, gulzar, R.D.Burman,

7 comments:

  1. waah yunus bhaai kya gaana sunyaa hai aapne subah subah aanad aa gaya thanks

    ReplyDelete
  2. पहली बार यू ट्यूब पर देखा...आनन्द आ गया:

    एक ही ख्‍वाब कई बार देखा है मैंने
    तूने साड़ी में उड़स ली हैं मेरी चाभियां घर की


    आभार पेश करने के लिये.

    ReplyDelete
  3. यूनुस भाई , सच कहूं मैं गाने को देखने से ज्यादा सुनना पसंद करता हूँ. पर इस गाने को मैंने देखा. गुलज़ार साहब उम्दा शायर तो हैं ही पर इस गाने में तो उन्होंने परदे पर एक कविता ही रच दी है. हालांकि मैंने इस फ़िल्म को कभी देखा नहीं था, पर गाने को सुना था. कल जहाँ मैं उस गाने को बार बार सुन रहा था आज इस गीत को भूपीजी की आवाज़ के साथ देख कर गुलज़ार साहब की जादूगरी में खोता जा रहा हूँ. पुनश्च आपका इस प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.

    ReplyDelete
  4. गुलज़ार के फोरम पर भूपेंद्र के इस गीत पर एक बार काफी कुछ लिखा गया था। तभी इसे सुना था.. अलग तरह का feel है इस गीत में।
    पंचम दा ने अखबार वाली टिप्पणी इजाजत के मेरा कुछ सामान के लिए की थी पर बाद में इतनी वेहतर धुन तैयार की राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हो गए।

    ReplyDelete
  5. यूनुस भाई, आज रविवार को बैठकर आराम से यह गीत सुना और देखा। इसमें ऐसा अद्भुत प्रभाव है कि मैं तुम्‍हें बता नहीं सकता। मैंने अब तक इस फिल्‍म को नहीं देखा है, पर अब देखने की इच्‍छा हो रही है। धन्‍यवाद, जो तुमने ऐसे गीत, ऐसे गायक, ऐसे संगीतकार, ऐसी फिल्‍म से परिचय कराया वरना मैं मेरी यह जिंदगी इस गीत से वंचित रह जाती। सचमुच तुम्‍हारा लेख पढ़कर सुनने या देखने का एक सेंस जाग जाता है और नए प्रकार का फ़ील मिलता है। - आनंद

    ReplyDelete
  6. o maaa....itney din aapkey blog per aa nahi paayi..kitna kuch miss kiya mainey.........yunus ji bahut bahut shukriya bhupindar ke chunin_daa gaaney sun vaaney ke liye

    ReplyDelete

if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/