
अंतरा चौधरी जाने-माने संगीतकार सलिल चौधरी की बेटी हैं ।
अंतरा से फिल्म-संगीत के क़द्रदानों का पहला परिचय फिल्म 'मीनू' के ज़रिए हुआ था । ये फिल्म सन 1972 में आई थी ।
योगेश ने इस फिल्म के गीत लिखे थे और संगीत था सलिल चौधरी का । इस फिल्म का ई.पी.रिकॉर्ड जारी हुआ था । मैंने फिल्म मीनू दूरदर्शन के ज़माने में देखी थी जब रविवार की कोई अच्छी सी फिल्म एक आयोजन की तरह होती थी । और मुझे याद है कि हम इस फिल्म को देखकर काफी भावुक हो गये थे ।
बहरहाल फिल्म मीनू की याद मुझे मेरे मित्र राजेश ने दिलाई है । शनिवार को हम बैठ कर गप्पें मार रहे थे, तभी उसने इस फिल्म का जिक्र किया । तो मुझे लगा कि क्यों ना कहीं से खोज-खाजकर आपके लिए मीनू फिल्म के गीत लाए जाएं ।
दरअसल मैं खोज रहा था दूसरा गीत । जिसके बोल हैं -'काली रे काली रे तू तो काली काली है' । इसकी व्यवस्था फिलहाल नहीं हो सकी । लेकिन यक़ीन मानिए, रेडियोवाणी पर हम किसी गीत की खोज में निकलते हैं तो पूरे जी-जान से निकलते हैं तो जब तक ये गीत नहीं मिलेगा, हम चैन से नहीं बैठेंगे । यानी एक दिन जल्दी ही रेडियोवाणी पर आप 'काली रे काली रे तू तो काली काली है' ज़रूर सुनेंगे ।
फिलहाल हमें इस गाने से ही संतोष करना है । जिसके बोल हैं 'तेरी गलियों में हम आए' ।
मन्ना दा और अंतरा ने इस गाने को गाया है । अंतरा की आवाज़ में इत्ती मासूमियत है कि क्या कहें । ऐसा लगता है जैसे कच्चे नारियल सी दूधिया आवाज़ हो । एकदम सरल, सहज और गबदुल्ली सी आवाज़ । अद्भुत है ये गीत । सुनिए और पढि़ये ।
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तेरी गलियों में हम आये
दिल ये अरमानों भरा लाये ।
हमपे हो जाये करम हाय जो तेरा
अपनी किस्मत भी संवर जाए ज़रा ।
जिंदगी तेरी बहारों में मुस्काए सदा
तेरे दामन को ना छू पाए ग़म की हवा ।
हम ग़रीबों की लगे तुझको दुआ ।।
तेरी गलियों में हम आए ।।
हमको शिकवा है किसी से ना हमें कोई गिला
जो ना दे उसका भला जो दे उसका भला ।
जिसने जो चाहा कहां उसको मिला ।
तेरी गलियों में हम आए ।।
जैसे मजबूर हैं हम कोई मजबूर ना हो
किसी मन का महल ऐसे चूर ना हो ।
ऐसे खुशियों से कोई दूर ना हो ।।
तेरी गलियों में हम आए ।।
सुना आपने अंतरा चौधरी का ये प्यारा सा, मासूम सा गीत ।
आज अंतरा चौधरी के बहाने आपसे कुछ और बातें कहनी हैं अपने मन की । लेकिन पहले जिक्र कर लिया जाए अंतरा के चार पांच साल पहले आये अलबम 'मधुर स्मृति' का । ये एलबम अंतरा ने सलिल दा की याद में निकाला था । ख़ासियत ये थी कि इसमें सलिल दा के स्वरबद्ध किये गये बांगला गीतों को हिंदी में अनुवाद करवा के बिल्कुल उसी धुन और उसी ऑरकेस्ट्रा पर गाया गया था । मेरे संग्रह में ये कैसेट है । इसलिए इसे आप तक पहुंचाने में देर लग रही है । कैसेट से कंप्यूटर पर ट्रांस्फर झंझट का काम है ना । पर ये कई मायनों में एक अनोखा और महत्त्वपूर्ण अलबम है ।
दूसरी बात जो अंतरा चौधरी के बहाने कहनी है वो ये, कि सलिल दा ने अंतरा की प्रतिभा को बचपन में ही पहचान लिया था । और जो महत्त्वपूर्ण काम उन्होंने किया, वो था अंतरा से बांगला में बच्चों के गीत गवाने का काम । मुझे ई स्निप्स पर अंतरा के कई नर्सरी-गीत मिले हैं । उनमें से कुछ आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूं । ये गाने उतने ही मासूम और प्यारे हैं जितना कि फिल्म मीनू का ये गीत । आपको बता दूं कि मुझे बांगला भाषा नहीं आती, लेकिन इससे इन गीतों के आनंद में कोई कमी नहीं आती । हां ये ख़लिश ज़रूर रह जाती है कि हमारे यहां हिंदी में कभी किसी ने बच्चों के लिए ऐसे गीत बनाने की क्यों नहीं सोची । क्या इसे हम हिंदी संगीत जगत की दरिद्रता नहीं मानेंगे ?
बहरहाल ये रहे अंतरा के गाये कुछ बांगला गीत--
एका नोरी काने कोरी तेतुल पारे छोरी छोरी--
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केउ कोकुने ठीक दोपुरे
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ओ शोना बैंग ओ कोला बैंग
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सुनो भाई एस्काबोनेर
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बुलबुल पाखी मोयना ती
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अंतरा चौधरी अब बड़ी हो चुकी हैं और अब उनकी मासूम आवाज़ कुछ ऐसी बन चुकी है ।
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अंतरा चौधरी के नर्सरी-गीतों का पूरा संग्रह सुनने के लिए यहां क्लिक कीजिए ।
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भाई बहुत अच्छा. आज दिन की बडी ही ख़ुशनुमा शुरुआत हुई. अंतरा चौधरी का मुखड़ा अगर दिखाना चाहें तो ये लिन्क दें--http://tooteehueebikhreehuee.blogspot.com/2007/06/blog-post_5915.html
ReplyDeleteयूनुस भाई, आप भी क्या उपमा देते हैं, कच्चे नारियल सी दूधिया आवाज़, बहुत खूब. बाहरहाल काफी अच्छी प्रस्तुति रही. और हाँ जब आपने ठान लिया है कि दूसरा गाना सुनवायेंगे ही तो हम तो आश्वस्त हैं ही.
ReplyDeleteवाह क्या बचपन याद दिलाया युनूसजी .'" काली रे काली रे तू तो काली काली है,गोरा सा एक भैया माँ अब लाने वाली है ... भइया होगा प्यारा प्यारा चाँद सरीखा ..." इसी तरह के कुछ शब्द हैं दूसरे गीत .. मैं छोटी थी और हम इसको खूब गाया करते थे .अंतरा चौधरी की आवाज़ में गज़ब की मासूमियत है.
ReplyDelete"अंतरा चौधरी के नर्सरी-गीतों का पूरा संग्रह सुनने के लिए यहां क्लिक कीजिए।"
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हमारे काम की चीज सबसे अंत में और लिंक में! नर्सरी गीत ही सुनवाओ यूनुस एक बार कस के। 8-10 एक ही पोस्ट में।
और यह बांगला सुनने में तो बहुत मधुर है, पर समझ में नहीं आ रही है!
ReplyDeleteआनन्द आ गया हमेशा की तरह. अंतरा चौधारी का गीत बहुत दिनों बाद सुना. अब नर्सरी गीत सुनते हैं. आभार.
ReplyDeleteइरफान भाई के उलट मेरी रात अच्छी शुरू हुई इन गानों से ...बधाई
ReplyDeleteवाह युनूसभाई,
ReplyDeleteबहुतही मासूमियत है अंतरा की आवाजमें. सुनकर ’नानी तेरी मोरनी को मोर ले गये’ इस गीतकी याद आ गयी. और एक गीत याद आया, काबुलीवाला फिल्म का स्वप्न दृश्य ’काबुलीवाला आया काबुल कंदाहारसे’. इस फिल्मका संगीत भी सलील दा का ही था. मगर आवाज शायद हेमंतकुमार की बेटी रानो मुखर्जी की है. (कहा गयी वो?) शायद किसी फिल्मके टायटल ट्रॅक में(कारवां या चोर चोर) आर. डी. बर्मन साब ने उनकी आवाज का उपयोग किया था.
अब अंतरा जी कहां है और क्या करती है?
bahot aacha geet hai
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