Sunday, September 2, 2007

आज सुनिए एक तूफानी राजस्थानी गीत—अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले । ज्ञानदत्त जी सुन रहे हैं ना ।


आज मैं आपको राजस्थान का एक लोकगीत सुनवा रहा हूं । इसे पूरी तरह से लोकगीत की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता क्योंकि इसे किसी व्यक्ति ने लिखा है, और किसी खा़स व्यक्ति ने स्वरबद्ध किया है । चूंकि मेरा ताल्लुक राजस्थान से नहीं है, इसलिए मैं नहीं जानता कि वहां की लोकसंस्कृति में इस तरह का कोई गीत प्रचलित है या नहीं । मुझे ये भी नहीं पता कि क्‍या किसी अन्य खांटी लोकगीत की प्रेरणा से इसे लिखा गया है ।

बहरहाल, ये गीत
रवि रतलामी की फ़रमाईश पर सुनवाया जा रहा है । रवि रतलामी को मैं अपना गुरू कहता हूं । बहुत सारे और लोग भी कहते हैं । बहरहाल मुद्दा ये है कि इस बार रवि जी ने एक फ़रमाईश की और गुरू की फ़रमाईश हम भला कैसे टाल सकते हैं । सो थोड़ा-सा समय मांगकर फ़रमाईश पूरी करने की जुगत भिड़ाने लगे । आईये आपको पूरा का पूरा प्रसंग समझा दें । आपको बता दें कि रवि भाई डी.टी.एच. सेवा पर विविध-भारती सुनते हैं । तो हुआ यूं कि किसी रविवार को उन्होंने मेरा एक कार्यक्रम सुन लिया । इस कार्यक्रम में ये गीत बजाया गया था । उन्हें पसंद आया । और उन्होंने कहा कि ये तो ज्ञानदत्त जी के लिए आदर्श गीत है । उनके ब्लॉग का संकेत गीत है ये । सही कहा । रेलगाड़ी वाले ज्ञान जी जब इस गीत को सुनेंगे तो उछल ही पड़ेंगे ।

कुछ गीत ऐसे होते हैं जो अपनी सादगी से हमारा दिल जीत लेते हैं । ये ऐसा ही गीत है । इस गीत में कोई क्रांति नहीं है । ना तो गायिका रेहान मिर्ज़ा उत्कृष्ट और प्रशिक्षित गायिका है और ना ही गीत में कोई तीर मारा गया है । हां छोटे छोटे ग्रामीण अहसास हैं । और सबसे बड़ी बात धुन कमाल की है । इत्ती् जल्दी खत्म हो जाता है ये गीत कि प्‍यास अधूरी रह जाती है । यक़ीन मानिए इस गीत को आप एक बार सुनकर संतुष्टि नहीं होंगे । बल्कि बार बार सुनेंगे । मैंने इस गीत की इबारत भी आपके लिए तैयार कर दी है । चूंकि मैं इस बोली से परिचित नहीं हूं तो हो सकता है कि हिज्जे की गड़बड़ी हो । उम्मीद है कि आपमें से कोई इन गलतियों को बताकर सुधरवा देगा ।

यहां पढि़ये--
अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।
बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो
बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
चला चला रे ।।
डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।।
चला चला रे ।।
बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।।
चला चला रे ।।
जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।।
चला चला रे ।।

शब्दार्थ: डलेवर= ड्राईवर गाबा: गाने लगना डूंगर= पहाड़ नंदी= नदी ढांडा= जानवर जद= जब ( जदी,जर और जण भी कहा जाता है) असी= ऐसा, इतना

इस इबारत में सुधार और शब्‍दार्थ भाई सागर चंद नाहर के सौजन्‍य से ।




यहां सुनिए--



तो सुनिए ये गीत और बताईये कि ये कैसा लगा आपको । जल्दी ही आपके लिए मैं लेकर आ रहा हूं उत्तरप्रदेश का एक शानदार लोकगीत । इंतज़ार कीजिए ।




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27 comments:

  1. मजा आ गया यूनूस भाई बरसों बाद यह गाना सुना। राजस्थान के बच्चे बच्चे के मुंह पर यह गाना होता है।

    गाने के बोल में एक दो गलतियां है
    १. बाबा लाग्यो हो जा टांको छोरो नहीं गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ( वह जाट का लड़का गाने लगा)
    २.बीजड़ी को पंखो नहीं बीजळी को पंखो ( बिजली)
    ३.जणखोरो नहीं जण भोरो (जण =जब) भोरो शब्द में संशय है
    ४. जयपुर टेसन से गाड़ी नहीं जयपुर से जद गाड़ी चाली ( जयपुर से जब गाड़ी चली)
    ५.बैठी थी सूंटी नहीं बैठी थी सूधी ( मैं सीधी बैठी और ऐसा जोर का धक्का लगा कि मैं उल्टी गिर गई।

    शब्दार्थ:
    डलेवर= ड्राईवर
    गाबा: गाने लगना
    डूंगर= पहाड़
    नंदी= नदी
    ढांडा= जानवर
    जद= जब ( जदी,जर और जण भी कहा जाता है)
    असी= ऐसा, इतना

    बहुत जल्दी आपको राजस्थाण का लोकगीत घूमर सुनवाते हैं।

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  2. बहुत अच्छा. इस गाने पर तो मेरी बिटिया ने स्कूल में डांस भी किया था. मेरी पत्नीजी तो सुन कर बहुत मगन हो रही हैं.
    बहुत बहुत धन्यवाद!

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  3. मज़ा आ गया..इस तूफानी रेलगाडी सा चलता जानदार शानदार लोक गीत सुनकर -
    इसे सुनवाने का बहोत बहोत शुक्रिया युनूस भाई
    स स्नेह
    -- लावण्या

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  4. सागर भाई मुझे मालूम था कि मेरी गलतियां आप ही सुधार सकेंगे । बहुत बहुत शुक्रिया ।
    ज्ञान जी आप कहें तो ये गीत ई मेल पर भेज दूं । आपके ब्लॉग की संकेत धुन हो जाएगी ।

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  5. धन्यवाद यूनुस भाई..अपना भी पसंदीदा गान है ये।
    एक बार बचपन में स्टेज पर भी गा चुका हूं ;)

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  6. ज्ञानदत्त जी तो सुन चुके. क्या मैं भी थोड़ा सा सुन सकता हूँ? बहुत मन कर रहा है.

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  7. यूनुस भाई आपको बहुत -2 धन्यवाद.:)

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  8. बहुत मस्त गीत है !

    मज़ा आ गया ।

    अन्नपूर्णा

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  9. राजस्थान से होने के नाते मैं कहना चाहूगा की वहां की लोकसंस्कृति मे यह गीत तो नही हैं लेकिन काफी लोकप्रिय जरूर हैं

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  10. बचपन में राजस्थान के विभिन्न कस्बों में पढते हुए बहुत बार यह गीत सुना . इसमें एक प्रवाह और मस्ती और थिरकन लाने वाला अद्भुत तत्व है . कई बार गाने वाले इसके बोल में मौका-मुनासिब थोड़ी-बहुत जोड़-तोड़ और फेरबदल भी कर लेते हैं .

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  11. यूनूस भाई , यह क्या गडबड घोटाला है , कोई पासवर्ड तो आपने सागर जी और ज्ञानद्द्त जी को नही दिया :) , गाने का लिंक तो कहीं दिख नही रहा है , किस पर किल्क करें , सिर्फ़ लाल रंग की पट्टी लगी है जो काम नही कर रही ?

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  12. डॉ साहब एक बार पेज को रिफ्रेश कर देखें क्यों कि हमें तो यह साफ दिख रहा है और साफ बज भी रहा है।

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  13. सब कुछ करके देख लिया , पहले मौजिला फ़ायरफ़ाक्स पर देखा , नही दिखा अब IE पर देख रहा हूँ , वहाँ भी नही दिख रहा है , R.C.Misra जी मुझे आनलाइन मिल गये , वह कहने लगे कि शायद adobe shockwave मेरे कम्पयूटर मे नही पडा होगा , उसको भी इन्सटाल किया लेकिन नही लिंक की जगह सिर्फ़ एक लाल रंग की पट्टी नजर आ रही है ।

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  14. भाई यूनुस,
    क्या याद दिला दी आपने. अन्जन की सिटी में म्हारो मन डोले. यह गीत हमारे जयपुर के ही साथी इक़रम राजस्थानी ने लिखा था और इसे गाया था जयपुर की ही रेहाना मिर्ज़ा ने.
    भाई इक़रम आकाशवाणी के केन्द्र निदेशक पद से अवकाश पाया है. वे बताते है कि इस गीत का रिकॉर्ड एच एम वी ने निकाला था. गीत को संगीत दिया था चरणजीत ने.

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  15. यह गाना कस्बों और गावों, और वहाँ के लोगों, की सरलता दिखाता है | हम शहर-वासीयों को रेल का सफर भले ही unremarkable लगता हो, मगर ग्रामवासी रेलगाडी की यात्रा का बड़ा आनंद उठातें हैं |

    इस गाने में वही मिठास है, जो सखी-सहेली कार्यक्रम में शामिल होकर टूटी-फूटी हिन्दी में बोलने वाली महिलाओं की बातचीत में है.

    यूनुस, इतना अच्छा गाना सुनाने के लिए धन्यवाद |

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  16. युनूसभाई,
    विविध भारतीपर शाम ६-४५ से ७-०० के बीचमे जो लोकसंगीत कार्यक्रम आता था उसमें ये गाना मैंने कई बार सुना है और हमेशा उसे पसंद किया है. लोकसंगीत कार्यक्रम बंद होनेके बाद उसे सुननेके लिये मन तरस रहा था सो अच्छा हुवा आपने उसे यहां सुना दिया. इस गानेका जो ताल है उसी तालपर पाकिस्तानी गायिका नैयरा नूर का एक गाना है "जले तो जलाओ गोरी, प्रीतका अलाव गोरी". अगर आपको पॉसिबल हो तो जरुर सुनियेगा और अपने श्रोताओंको भी सुनाइयेगा.

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  17. यूनूस भाई , तिबारा आपके ब्लाग पर आया हूँ और कामयाबी के साथ , घर मे तो चला नही लेकिन हाँ यहाँ क्लीनिक मे चल गया । बहुत ही बढिया !!! सुनाने के लिये धन्यवाद !!!

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  18. यूनुस भाई,
    गाने का अन्तिम अंतरा आने से पहले ही आपके बाजे पर गाना ख़त्म हो जाता है. अपडेट किजीये ना .

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  19. यूनुस भाई,
    आपने तो राखी पर होली का मजा दे दिया । बहुत खूब ।
    एक बहुत ही पुराना राजस्‍थानी गीत है -
    ढोला ढोल मजीरा बाजे रे,
    काली छींट रो घाघरो, नजारां मारे रे ।
    यह गीत 'कोलम्बिया' के रेकार्ड पर था ।
    मुमकिन हो तो सुनवाइएगा ।
    शुक्रिया ।

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  20. भाई यूनुस,
    इक़राम राजस्थानी ने आपको सलाम कहा है. अन्जन वाले गाने के इस गीतकार का कहना है कि इसकी रेकॉर्डिंग दिल्ली के दरियागंज इलाक़े मे एच एम वी के स्टूडियो में हुई थी. सत्तर के दशक के शुरुआत क़ी बात है. गीत के बीच में आप जो साँसें सुनते है वे गायिका रेहाना क़ी नहीं है. काफ़ी कोशिश के बाद भी जब गायिका बीच में साँस का एफेक्ट नहीं दे सकी तो संगीतकार चरणजीत और ख़ुद इक़राम राजस्थानी ने ये साँसें भरी.
    इक़राम भाई बहुत ख़ुश हैं कि उनका गीत आज भी चर्चा में है. आपके ब्लॉग से जुड़े पाठकों के भी वे शुक्रगुज़ार हैं जिन्हें आज भी इस गीत को सुनने में मज़ा आता है. उनके ऐसे ही और भी कई लोकप्रिया गीत है जिन्हें लोग लोक गीत ही समज़ते हैं. एक बार उन पर छपे लेख का हेडिंग था "चूड़ी चढ़े लोकप्रिया कलाकार." 78 क्योंकि उनके लिखे राजस्थानी गीतों के रेकॉर्डों क़ी तब धूम थी. आर पी एम विनाइल रेकॉर्ड को राजस्थान में चूड़ी कहते थे और ग्रामोफ़ोन को चूड़ी बाजा. क्या दिन थे वे.

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  21. डाक्टर प्रभात जी ने हमे यहाँ गाना सुनने के लिए भेजा. गाना सुनने मी भुत अच्छा लगा मगर समझ मी कुछ नही आया :डी अच्छ गाना है :)

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  22. शानदार कर्णप्रिय मस्ती भरा गीत

    खुशदीप सहगल की पोस्ट पर प्रशांत के केमेंट से यहाँ तक पहुँचा

    वाह वाह

    बी एस पाबला

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  23. मजा आया सुन कर, युनुस भाई..

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  24. Lajawaab geet aapko bahut bahut dhanyawaad...aapane mujhe bachapan me pahucha diya, ek baar school me isi geet par dance kiya tha mujhe bahut pasand hai yah!!
    Dil se aabhar!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  25. आज दोबारा फिर से सुनने का मन हुआ, मगर यहां से यह गीत गायब है जी
    अब क्या करें

    कृप्या दोबारा लगा देवें

    प्रणाम

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  26. comments ko scroll karte karte soch raha tha ki iqram rajasthani bhaai ki baat mujhe hi likhni padegi, lekin yah baat aa gayi...achchha laga...aascharya unus ji ...iqraam bhaai jaipur ke stn. director se retire hue hain...aapse kabhi sampark hi nahi huaa...

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  27. क्या बात है दिल खुश हो गया ये गाना सुन के 6 साल बाद सुनने को मिला है - धन्यवाद् रहेगा आप लोगों का .

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