
अन्नपूर्णा जी ने सावन की याद दिलाई तो हमने अपनी पिछली पोस्ट में आपको सावन के तीन गीत सुनवा डाले ।
लेकिन तीन गीतों से भला मन कहां मानता है । आज ठानकर आए हैं कि आपको गुलाम अली का एक शानदार गीत सुनवाएंगे और आपको ये भी बताएंगे कि ये गीत उनके उपशास्त्रीय गीतों के एलबम ‘शीशमहल’ में मौजूद है । मैं आपको बता दूं कि इसे ‘माहिया’ कहा जाता है । जो शायद पंजाब की लोकसंगीत की एक विधा है । इतना सीधा-सादा गीत है कि क्या कहें । आप पढ़कर ही समझ जायेंगे । लेकिन एक तो वाद्यों के ज़रिए ग़ुलाम अली साहब ने इसका चलन काफी तेज़ रखा है दूसरे उनकी लहरदार आवाज़ ने इस गाने को यादगार बना दिया है । मैं इस तरह के कई गीतों को ‘इन्फेक्शस’ श्रेणी में रखता हूं । संक्रामक गीत हैं ये । बस एक बार सुन लिया कि आपके होठों पर सज गए । आप हो होश हो या नहीं । फिर अचानक आपको लगेगा अरे ये गीत मैं कैसे गुनगुना रहा हूं ।
ज्यादा कुछ नहीं कहना इस गाने के बारे में । बस इतना कहना है कि आपने गुलाम अली की ग़ज़लें तो सुनीं । सबने सुनीं । पर शीशमहल सुनना अब तक छूटा हो तो फटाफट जाईये और ख़रीद डालिए । इस एलबम के अधिकार एच एम वी के पास हैं और इतना दुर्लभ भी नहीं है । पहले से बता दूं कि इस एलबम में कुल चार रचनाएं हैं । जी हां कुल चार केवल चार ।
बालम मोहे छोड़ के ना जा—मिश्र पीलू में ठुमरी
काहे बनाओ झूठी बतियां हमसे—दादरा
तुम बिन ना आवे चैन—ठुमरी मिश्र खमाज
और बागों में पड़े झूल—माहिया ।
अगर हमें पिनक चढ़ गयी तो ये सारे गीत आपको इसी चिट्ठे पर सुनवा दिये जायेंगे । बस हौसला अफ़ज़ाई तो जारी रखिए सरकार ।
तो सुनिए और पढि़ये---
Baagon Main pade j... |
बाग़ों में पड़े झूले
तुम भूल गये हमको
हम तुमको नहीं भूले ।।
सावन का महीना है,
साजन से जुदा रहकर
जीना कोई जीना है ।। बाग़ों में ।।
रावी का किनारा है
हर मौज के होठों पर
अफ़साना हमारा है ।। बाग़ों में ।।
ये रक्स सितारों का
सुन लो कभी अफ़साना
तक़दीर के मारों का ।। बाग़ों में ।।
दिल में हैं तमन्नाएं
डर है कि कहीं हम-तुम
बदनाम ना हो जाएं ।। बाग़ों में ।।
अब और ना तड़पाओ
या हम को बुला भेजो
या आप चले आओ ।। बाग़ों में ।।
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इस श्रृंखला के अन्य भाग--
1.पड़ गये झूले सावन रूत आई और गरजत बरसत सावन आयो रे
2.फिर सावन रूत की पवन चली तुम याद आए ।
आडियो ठीक कीजिए युनुस भाई..फास्ट मोड में बज रहा है।
ReplyDeleteतीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना !
ReplyDeleteअन्नपूर्णा
युनूसभई, हमने आपसे गुजारिश की थी 'बरस बरस बदरी बिखर गयी" इस गीतको ढूँढ निकालने के लिए. क्या आप उसे भूल गए ? या आपने मेरा मेल देखा ही नहीं ?
ReplyDeleteयुनुसजी,
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को बुकमार्क करके रखा था, आज सुना है ।
हो सकता है ये महज मेरा वहम हो लेकिन "राम तेरी गंगा मैली" के गीत "हुस्न पहाडों का" की धुन इस गीत की धुन से बहुत मिलती है । पता नहीं कौन सा गीत की धुन पहले बनी । आप चेक करके बताईये कि धुन मिलती है या नहीं ।