tag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post8122003695613008405..comments2024-02-21T13:54:06.301+05:30Comments on रेडियो वाणी: शांताराम की फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ ने पूरे किये पचास साल । रेडियोवाणी पर इस फिल्म की बातें और गाने ।Yunus Khanhttp://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comBlogger15125tag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-67164081090656118992018-03-29T19:39:58.858+05:302018-03-29T19:39:58.858+05:30समाज सुधार पर एक मील का पत्थर।गीत संगीत कला की दृष...समाज सुधार पर एक मील का पत्थर।गीत संगीत कला की दृष्टि से उत्कृष्ट कथात्मक फ़िल्म।आनन्द प्रकाश गुप्ताnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-8371356645046636242007-10-26T16:59:00.000+05:302007-10-26T16:59:00.000+05:30'दो आंखें बारह हाथ' दरअसल गांधी जी के दर्शन का ही ...'दो आंखें बारह हाथ' दरअसल गांधी जी के दर्शन का ही फिल्मांकन है . वे कहते थे 'पाप से घृणा करो, पापी से नहीं' . सर्वधर्मसमभाव भी वैष्णव गांधी का ही फ़लसफ़ा था . इसी के तहत वह मशक्कत थी जो शांताराम को 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम' जैसे प्रार्थनागीत के लिए करनी पड़ी . उन्होंने बहुत से भजनों/प्रार्थना गीतों को 'रिजेक्ट' कर इसे लिखवाया और चुना था,ताकि हर मज़हब का व्यक्ति इसे बेखटके पूरी श्रद्धा से गा सके . आप गा कर देखिए कितनी 'सेकुलर',सार्वदेशिक और सार्वकालिक प्रार्थना है -- शुद्ध नैतिकता का गीत है यह . भारी आशावाद का गीत -- अंधेरे समय में उजाले का गीत . मनुष्यता का -- मनुष्य की नैतिक चेतना का,उसकी आशा का,उसकी आस्था का अमरगान .<BR/><BR/>आपने बहुत अच्छा लिखा है . रही-सही कसर चालीसगाव वाले भाई विकास शुक्ल की जुगलबंदी ने पूरी कर दी . दोनों को मेरा धन्यवाद मिले .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-53995051809908810012007-09-28T21:58:00.000+05:302007-09-28T21:58:00.000+05:30प्रसंगवश यह भी बता दूं कि फ़िल्म की नायिका संध्या व...प्रसंगवश यह भी बता दूं कि फ़िल्म की नायिका संध्या वास्तव मॆं शान्ताराम की (तीसरी)पत्नी थीं और फ़िल्म ’नवरंग’ तथा ’ झनक झनक पायल बाजे’ की नायिका भी वही थीं ।<BR/><BR/>(बचपन में देखी हुई इस फ़िल्म की सी०डी० मेरे पास है और संयोग देखिये कि जिस दिन आपका आलेख आया हुम सब बैठे इसे ही देख रहे थे। )<BR/><BR/>-वही<BR/>गंगा किनारे....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-26618818667135939022007-09-28T13:12:00.000+05:302007-09-28T13:12:00.000+05:30युनूसभाई,आपकी प्रतिक्रिया के बारेमे धन्यवाद. चालीस...युनूसभाई,<BR/>आपकी प्रतिक्रिया के बारेमे धन्यवाद. चालीसगाव नामका छोटासा शहर है जो महाराष्ट्र के जलगाव जिले में हैं. मैं वहीपर जन्मा, पढा लिखा, बडा हुवा. और आज भी वहींपर रहता हूं. १९५२ में मेरे पिताजी ने, जो कि पेशेसे वकील थे, यहांपर सिनेमा थिएटर शुरू किया. पहली फिल्म लगी थी ’गुळाचा गणपती’. यह फिल्म मराठीके बेजोड लेखक कै. पु.ल.देशपांडे द्वारा बनाई गई थी. लेखन, दिग्दर्शन, संगीत और अभिनय सब कुछ पु.ल. का था. वे मराठी के <BR/>पी.जी.वुडहाउस माने जाने थे और बेहद लोकप्रिय रहे. आजतक वैसी लोकप्रियता कोई हासिल नही कर सका है. इस फिल्मका एक गीत ग.दि.माडगुळकरजीने लिखा था और पं. भीमसेन जोशी जी ने गाया था जो आजतक कमाल का लोकप्रिय है. शायद आपने भी सुना हो. ’इंद्रायणी काठी, देवाची आळंदी, लागली समाधी, ज्ञानेशाची.’<BR/>मेरा जन्म १९५८ मे हुवा. उसके पहले अनारकली, नागिन आदि हिट फिल्मे हमारेही थिएटरमे प्रदर्शित हुई और रिरन होती गयी. मेरी मा जब उनकी यादे सुनाती थी तब हम बच्चे सुनते रह जाते थे. नागिन के ’मन डोले मेरा तन डोले’ गीतमे जब बीन बजती थी तब लोग पागल हो जाते थे और परदेपर पैसे बरसाते थे. किसी मनोरुग्ण दर्शक के शरीरमें नागदेवता पधारते थे और वो नाग-साप की तरह जमीन पर लोटने लगता था. <BR/>हमारा बचपन तो बस फिल्मे देखते देखते ही गुजरा. कोई भी फिल्म कमसे कम ३-४ हप्ते तो चलती ही थी. हमारी थिएटर के अलावा और २ थिएटर्स थी. हमारीवाली देखकर बोअर हो गये तो वहां चले गये. <BR/>१९८६ मे आंतर धर्मीय विवाह करने के बाद मै परिवारसे अलग हो गया और थिएटरसे संबंध नही रहा. १९९९ मे पिताजी और छोटे भाईकी मृत्यू के बाद फिर थिएटरकी जिंम्मेदारी मुझपर आ गयी. लेकिन तबतक सिंगल स्क्रीन थिएटर्स मृत्यूशैया पर पहुंच चुके थे. स्टेट बॅंक की मेरी नोकरी छोडकर मैने थिएटर का बिजनेस चलानेकी कोशिश की. मगर बिजनेस डूबती नैय्या बन चुका था. सो गत वर्ष उसे हमेशा के लिये बंद कर दिया. <BR/>ग.दि.माडगुळकर जी के बारेमें जी करता है आपको सामने बिठाउं और उनकी मराठी कविताओंका रसपान करवाउं. <BR/>वे इन्स्टंट शायर थे. चुटकी बजाते ही गीत हाजिर कर देते थे. और वो भी कमाल की रचना. आज उनकी बस एकही बात कहुंगा. सी. रामचंद्र जी ने एक मराठी फिल्म बनाई थी. घरकुल. जो मॅन, वुमन ऍण्ड चाइल्ड पे आधारित थी. शेखर कपूर की मासूम भी उसीपर आधारित है. उसका संगीत भी उन्हीने दिया था. इस फिल्ममें माडगुळकरजी की एक कविता का इस्तमाल किया गया था. कविता का नाम था ’जोगिया’ (ये हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक राग है) तवायफ की महफिल खत्म हो जाने के बाद जो माहोल बचता है उसका वर्णन किया गया है इस कविता में. प्रारंभ के बोल है ’कोन्यात झोपली सतार, सरला रंग...पसरली पैंजणे सैल टाकुनी अंग ॥ दुमडला गालिचा तक्के झुकले खाली...तबकात राहिले देठ, लवंगा, साली ॥ (ये गीत फैय्याज जी ने गाया है. फैय्याज उपशास्त्रीय संगीत गाती है और नाट्य कलाकार है.) शब्दोंका मतलब और कविताका भाव शायद आपकी समझ मे आ रहा होगा. ये गीत या ये पूरी कविता अगर मुझे मिली तो मै आपको जरूर सुनाउंगा और हिंदीमे मतलब समझाउंगा. कमाल का गाना है.<BR/> सी.रामचंद्रजी ने कमाल का संगीत दिया है.Voice Artist Vikas Shukla विकासवाणी यूट्यूब चॅनल https://www.blogger.com/profile/15145960154504480814noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-36641722713521470142007-09-28T11:23:00.000+05:302007-09-28T11:23:00.000+05:30यूनुस भाई,यह फिल्म मैंने तीन-चार साल पहले दिल्ली...यूनुस भाई,<BR/>यह फिल्म मैंने तीन-चार साल पहले दिल्ली में किसी फिल्मोत्सव में देखी थी। तब विश्वास नहीं हुआ कि यह इतनी पुरानी फिल्म है, इसकी कहानी और ट्रीटमेंट इतना अद्भुत है और इसकी प्रासंगिकता ज्यों की त्यों बनी हुई है। यह अभी देखने में बिलकुल नई लगती है। यह फिल्म कभी पुरानी नहीं हो सकती। - आनंदआनंदhttps://www.blogger.com/profile/08860991601743144950noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-8036048681267425732007-09-28T00:49:00.000+05:302007-09-28T00:49:00.000+05:30"ऐ मालिक तेरे बँदे हम" लता दीदी के गाये गीतोँ मेँ ..."ऐ मालिक तेरे बँदे हम" लता दीदी के गाये गीतोँ मेँ से मेरा बडा प्रिय गीत है.<BR/>व्ही. शाँताराम जी की सभी फिल्मोँ मेँ उनकी एक अलग छाप रहती थी जो साफ दीखाई देती थी जैसे श्री राज कपूर की फिल्मेँ भी अक्सर आर्. के. का स्टेम्प लिये रहतीँ हैँ.<BR/>ग. दी. माडगूळकर जी के बारे मेँ विकास जी ने सही बतलाया है ~ ज्ञानदेव पर बनी हिन्दी और मराठी फिल्म "सँत जनाबाई " के हिन्दी भजन मेरे पापा जी ने लिखे थे और मराठी गीत श्री माडगूलकर जी ने पर सँगीत तो सुधीर फडके जी का ही रहा ! ~~ <BR/>स ~ स्नेह, लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-9981642539984774872007-09-27T23:39:00.000+05:302007-09-27T23:39:00.000+05:30अच्छा लगा सारी जानकारी पढ़्कर. अब यह फिल्म तो देखी ...अच्छा लगा सारी जानकारी पढ़्कर. अब यह फिल्म तो देखी नहीं है मगर लगता है पहले मौके पर अब देख ली जायेगी.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-75535346893028387542007-09-27T21:18:00.000+05:302007-09-27T21:18:00.000+05:30युनूस भाईअगर मुझसे कोई अगर पूचे कि आपकी दस पसंदीदा...युनूस भाई<BR/>अगर मुझसे कोई अगर पूचे कि आपकी दस पसंदीदा फिल्मों के नाम बताईये तो पहला नाम दो आँखे का ही होगा, दूसरा सीमा का और तीसरा दो बीघा जमीन का। <BR/>व्ही शांताराम की झनक झनक पायल बाजे, तीन बत्ती चार रास्ता, सेहरा, नवरंग और दो आँखे मैने कम से कम बीस बीस बार देखी होगी। डॉ कोटनीस की अमर कहानी भी मुझे बहुत पसन्द आई।<BR/>सैरन्ध्री नामकी एक फिल्म को देखने की बड़ी तमन्ना थी/है पर उसका कहीं कोई प्रिंट उपल्ब्ध नहीं है , क्यों कि सुना है कि बड़ी मेहनत और उम्दा विषय को लेकर बनी फिल्म जब फ्लॉप रही थो शांताराम जी ने उसके सारे प्रिंट को जला दिया था। <BR/>फिलहाल गीत सुनवाने और फिल्म की समीक्षा करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-64321660048213780152007-09-27T20:22:00.000+05:302007-09-27T20:22:00.000+05:30ज्ञान जी बड़ा आसान है जिज्ञासा को शांत करना । यत्र...ज्ञान जी बड़ा आसान है जिज्ञासा को शांत करना । यत्र तत्र सर्वत्र उपलब्ध है इसकी डी वी डी । <BR/><BR/>ममता जी वीडियो फिर से चेक किया, चल रहा है । आप भी दोबारा कोशिश करें ।<BR/><BR/>विकास भाई अदभुत रही आपकी जानकारी । एक तो ये जानना है कि क्या आप लोग थियेटर के मालिक थे । और क्या यादें हैं उस वक्त की । दूसरी बात ये कि ग दि माडगुलकर के बारे में और ज्यादा बतायें चाहें तो ई मेल कर दें ताकि इस लेख की दूसरी कड़ी में उसका समावेश किया जा सके ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-69036351266923882272007-09-27T20:09:00.000+05:302007-09-27T20:09:00.000+05:30युनूसभाई,आप बडे ही रोचक और दिलचस्प विषय निकाल लाते...युनूसभाई,<BR/>आप बडे ही रोचक और दिलचस्प विषय निकाल लाते है. <BR/>ये फिल्म हमारेही थिएटर में लगी थी और खूब चली थी. मै तब छोटा था मगर इसे रोज देखता था. इस फिल्मके सारे गीत मुझे याद हो गये थे जो अब तक याद है. <BR/>इस फिल्मके कहानीकारका नाम आपने थोडासा गलत लिखा है. आपको मराठी साहित्य के बारेमें जादा जानकारी होना वैसे भी असंभव है. उनका नाम था " ग. दि. माडगूळकर".उन्हे मराठी का वाल्मिकी कहा जाता था. उनकी लिखी और सुधीर फडके द्वारा संगीत देकर गायी गयी "गीतरामायण " ये रामायण पर आधारित गीतोंकी शृंखला महाराष्ट्र मे गजब की लोकप्रिय थी और गीतरामायण के रिकार्ड का सेट अपने घरमे रखना एक प्रतिष्ठा की वस्तू मानी जाती थी. <BR/>मराठी फिल्मोंके इतिहासमें ग.दी. माडगूळकर, राजा परांजपे और सुधीर फडके इन तीनोंने मिलके बडी लंबी इनिंग खेली है और बडी यादगार फिल्मे दी है.Voice Artist Vikas Shukla विकासवाणी यूट्यूब चॅनल https://www.blogger.com/profile/15145960154504480814noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-40442910831107678372007-09-27T17:40:00.000+05:302007-09-27T17:40:00.000+05:30मेरे पिता जी की ये चहेती फिल्म है। इसके बारे में ज...मेरे पिता जी की ये चहेती फिल्म है। इसके बारे में जानकारी देने का शुक्रिया !Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-55579390192870220432007-09-27T16:51:00.000+05:302007-09-27T16:51:00.000+05:30हमने तो ये फ़िल्म दो-तीन बार देखी है और जब भी देखी...हमने तो ये फ़िल्म दो-तीन बार देखी है और जब भी देखी अच्छी लगी. भला कौन भूल सकता है उन खतरनाक से दिखने वाले कैदियों को,शांत जेलर को और खिलौने बेचने वाली संध्या को. पर यहाँ विडियो नही दिख रहा है.mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-72828082320926706402007-09-27T15:24:00.000+05:302007-09-27T15:24:00.000+05:30बहुत अच्छी फ़िल्म । हमारे पूरे परिवार को यह फ़िल्म ब...बहुत अच्छी फ़िल्म । हमारे पूरे परिवार को यह फ़िल्म बेहद पसन्द है।<BR/><BR/>यहां आपने इतनी जानकारी दी कि जिन्होंनें फ़िल्म नहीं देखी उन्होंनें इस फ़िल्म की झलक आपकी कलम से देख ली।annapurnahttps://www.blogger.com/profile/05503119475056620777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-36348251665367556662007-09-27T14:59:00.000+05:302007-09-27T14:59:00.000+05:30फिल्म का कथानक आदर्शवादी प्रतीत होता है. हीरो जेलर...फिल्म का कथानक आदर्शवादी प्रतीत होता है. हीरो जेलर हो और कैदियों की सुधार प्रक्रिया चलाये, तो वह सफल अवश्य रहा होगा. <BR/>मैने फिल्म नहीं देखी है, पर पूरा कथानक जानने की उत्सुकता अवश्य आ गयी है. कभी न कभी शांत अवश्य होगी!Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8367368115959607647.post-37182375537963602172007-09-27T11:03:00.000+05:302007-09-27T11:03:00.000+05:30वाह क्या बात है !!!! मज़ा आ गया. इस फ़िल्म को मैने ब...वाह क्या बात है !!!! मज़ा आ गया. इस फ़िल्म को मैने बचपन में एक क्लब मे देखा था और वो भी नीचे बिछे गद्दे पर लेट कार देखा था.. उसी समय की देखी थी ये फ़िल्म पर आपने इस फ़िल्म का ज़िक्र छेड्कर आनन्दित कर दिया..कुछ गानो में बहुत कम वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल बड़ी खूबसूरती से किया गया जो मस्त हैं अब ये बात कहना अजीब लगता है पर कहना पड़ रहा है कि आपने पूरानी यादों को ताज़ा कर दिया.. पर सूचनाएं अच्छी लगीं ।VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.com