Wednesday, August 27, 2014

जि़हाले-मिस्‍कीन मकुन तग़ाफ़ुल...मुकेश और सुधा मल्‍होत्रा की आवाज़ें..

कैलेन्‍डर का पन्‍ना देखें तो तारीख़ें कोरी-सी नज़र आती हैं। वो अपने आप कुछ नहीं कहतीं। ये तो हम हैं कि तारीख़ों से कुछ यादों को जोड़ लेते हैं और वो ख़ास बन जाती हैं। सत्‍ताईस अगस्‍त यूं तो एक कोरी तारीख़ है। लेकिन सन 1976 में आज ही के दिन अमेरिका में डेट्रॉइट मिशिगन में मुकेश का‍ निधन हो गया था। इसलिए ये तारीख़ मुकेश की याद की तारीख़ बन गयी।

मुकेश आम-जनों के गायक हैं। आप पायेंगे कि हर तरफ़ मुकेश के दीवाने हैं। हर तरफ़ मुकेशMukesh के 'क्‍लोन' मौजूद हैं। बहरहाल.....मुकेश की याद में उनका एक अनमोल गीत। ये हज़रत अमीर ख़ुसरो की रचना है। आपको बता दें कि सन 1960 में संगीतकार मुरली मनोहर स्‍वरूप ने एक अलबम बनाया था, जिसका नाम था 'अमीर ख़ुसरो'। इस अलबम में फिल्‍म-संसार के बड़े गायक-गायिकाओं ने हज़रत अमीर ख़ुसरो की रचनाओं को गाया था। संगीतकार थे मुरली मनोहर स्‍वरूप। खुशी की बात ये है कि ये अलबम यू-ट्यूब पर बाक़ायदा उपलब्‍ध है।


तो चलिए सुनते हैं ये रचना। यहां ये जिक्र करता चलूं कि मैंने 'रेडियोवाणी' पर 'जिहाले मिस्‍कीं' एक बार और सुनवाया है। वो मुजफ्फर अली के अलबम 'हुस्‍न-ए-जानां' से था। और छाया गांगुली की आवाज़ थी। इस लिंक पर जाकर आप वो रचना भी सुन सकते हैं।

Song: Zihale miskin makun taghaful
Singer: Mukesh, sudha malhotra
Music: Murli Manohar swaroop
Duratio: about 5 min. 





ये रहे इस रचना के बोल

"जिहाल-ए-मिस्कीं मकुन तगाफुल, दुराय नैना बनाय बतियाँ।
किताबे हिज्राँ, न दारम ऐ जाँ, न लेहु काहे लगाय छतियाँ।।
शबाने हिज्राँ दराज चूँ जुल्फ बरोजे वसलत चूँ उम्र कोताह।
सखी पिया को जो मैं न देखूँ तो कैसे काटूँ अँधेरी रतियाँ।
यकायक अज़दिल दू चश्मे जादू बसद फरेबम बवुर्द तस्कीं।
किसे पड़ी है जो जा सुनावे पियारे पी को हमारी बतियाँ
चूँ शम्आ सोजाँ, चूँ जर्रा हैराँ, हमेशा गिरियाँ ब इश्के आँ माह।
न नींद नैंना, न अंग चैना, न आप आये न भेजे पतियाँ।।
बहक्के रोजे विसाले दिलबर के दाद मारा फरेब खुसरो।
सपीत मन के दराये राखूँ जो जाय पाऊँ पिया की खतियाँ।।
या (दुराय राखो समेत साजन जो करने पाऊँ दो बोल-बतियाँ।)

अर्थात मुझ गरीब मिस्कीन की हालत से यूँ बेख़बर न बनो। आँखें मिलाते हो, आँखें चुराते हो और बातें बनाते हो। जुदाई की रातें तुम्हारी कारी जुल्फ़ों की तरह लंबी व घनी है। और मिलने के दिन उम्र की तरह छोटे। शमा की मिसाल मैं सुलग रहा हूँ, जल रहा हूँ और ज़र्रे की तरह हैरान हूँ। उस चाँद की लगन में आ मेरी ये हालत हो गई कि न आँखों को नींद है न बदन को चैन, न आप आते हैं न ख़त लिखते हैं ।
यू-ट्यूब पर ये रचना। ताकि आप इस अलबम की बाक़ी रचनाएं खोज सकें।





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4 comments:

  1. कीर्ति सांधेलियाAugust 28, 2014 at 6:06 PM

    यूनुस भाई,

    १० अगस्त २००७ से लगभग रोज सुबह बिला नाग "रेडियोवाणी" पर आता हूँ. अब भी, जब वो मुखरित नहीं रही,

    ऐसे ही रतन यदा कदा लुटाते रहिये,

    सादर,

    कीर्ति सांधेलिया

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  2. Sir, The link which you wish to search is available here.
    http://www.saregama.com/album/the-multifaceted-genious-of-ameer-khusaru_85051

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  3. Dear Sir,
    I am giving here the link of this CD/LP.
    http://www.saregama.com/album/the-multifaceted-genious-of-ameer-khusaru_85051
    Regards.

    Jeeban Mishra

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  4. I am fan of the legend "Mukesh ji". I like all of the songs sung by him.

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if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/