हम उस पीढ़ी से नहीं, जिसे हेमंत दा को साक्षात देखने और सुनने का मौक़ा मिलता।
हां उस पीढ़ी से ज़रूर हैं जिसने हेमंत दो को सुनना सीखा। याद आता है कि दूरदर्शन पर 'रांगोली' में अकसर देव आनंद को देखते थे। ट्रेन के डिब्बे में बदमाशी करते हुए वो गाते--'है अपना दिल तो आवारा'। माउथ-ऑर्गन की इन तरंगों ने हमें इस बाजे की तरफ ला धकेला। (बाद में पता चला कि गाने में ये राहुल देव बर्मन का कमाल था।) लेकिन अपनी किस्मत में बदा नहीं था कि कोई 'बाजा' बजाना सीखें। हां, ये अलग बात है कि हमें भी पता नहीं था कि हम 'बाजे' पर बोलने की तरफ़ धकेले जा रहे हैं। इस गाने में देव साहब के 'कॉलर-अप' हैं। इसे देखकर कभी 'कॉलर-अप' किए तो पापा की डांट खा ली।
माउथ-ऑर्गन तो नहीं सीखा। पर हेमंत दा की आवाज़ मन में बस गई। फिर उनके कई-कई गीत मन में बस गए। ख़ास तौर पर 'राही तू रूक मत जाना'। पता नहीं क्यों ये आवाज़ हमें किसी और ही दुनिया से आती हुई लगती और किसी और ही दुनिया में हमें ख़ुद भी ले जाती। हेमंत दा के जिस गाने से हमें प्यार हुआ वो था—'या दिल की सुनो दुनिया वालो'। फिल्म 'अनुपमा'।
हाई-स्कूल के उन दिनों में बाद में पता चला कि जिस संत सरीखी आवाज़ को हम अटूट प्यार करते रहे, वो तो संगीतकार भी हैं। इंटरनेटी खोजबीन का दौर नहीं था। छोटे शहरों के कैसेट-शॉप वाले बहुत भाव खाते। लिस्ट देखकर 'टिक' और 'क्रॉस' लगाते जाते। और बुदबुदाते---'जे गाना है', 'जे नईं है', 'जे है', 'जे कौन सा है'। ऐसे चिढ़कू दुकानदार हमें अजीब नज़रों से देखते। 'कहां कहां से ले आते हैं गाने'। फिर नब्बे मिनिट का कैसेट तैयार होकर आता। सब गाने हेमंत कुमार के। और फिलिप्स के उस मोनो टेप-रिकॉर्डर पर बजता रहता---'हे हे हे हे, हूं हूं हूं'।
हेमंत दा के बारे में सलिल चौधरी ने कहा था कि अगर ईश्वर कभी गाए तो अपने लिए हेमंत दा की आवाज़ ही चुनेगा। इसके आगे कुछ कहने की गुंजाईश बची नहीं रह जाती। विविध-भारती आने से कुछेक साल पहले ही हमें हेमंत दा के ग़ैर-फिल्मी गानों से भी प्यार हो चला था। ख़ासकर एक गाना--जिसे हम हमेशा अपने साथ रखना चाहेंगे--'कल तेरी तस्वीर को सजदे किए हैं रात भर, हमने तेरी याद के आंसू पिये हैं रात भर'। और ये भी--'भला था कितना अपना बचपन'।
जिंदगी में कभी परेशानियां कम नहीं थीं। बेरोज़गारी के दिनों से लेकर भरपूर रोज़गार के दिनों तक....हमेशा चांद अकेला नज़र आता। रात उदास दिखती। सपनों के चकनाचूर होने का डर हमेशा रहता। प्रेम में पड़े तो उन दिनों भी हेमंत दा ही काम आए। 'याद किया दिल ने कहां हो तुम'। उनकी संगीतकारी काम आई। 'हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम'। वो किस्सा फिर कभी।
हेमंत दा संसार का सबसे ललित स्वर हैं। इंटरनेट आने के बाद जब उनके कुछ कंसर्ट्स की रिकॉर्डिंग देखी तो वो और भी सौम्य लगे। अगर संसार में मंच पर सभ्यता से गाने की मिसालें देखनी हैं तो हेमंत दा और तलत को देखिए और मन्ना दा को भी। मंच पर हारमोनियम लेकर जिस तरह हेमंत दा गाते हैं--यूं लगता है किसी पहाड़ी टीले पर बने मंदिर में अगरबत्ती और धूप की खुश्बू फैल रही है। हमेशा लगता रहा है कि भयंकर भभ्भड़ वाली इस दुनिया से अचकचाए मन को हेमंत दा की पनाह मिलती तो है तो सुकून मिलता है।
इंटरनेटी यायावरी में उनके कुछ वीडियोज़ मिले हैं। जो यू-ट्यूब की माया से यहां टांगे जा रहे हैं। हमारे अपने संग्रह में भी इन्हें रख लिय गया है। जब तक यू-ट्यूब पर ये पत्ते टंगे रहेंगे, यहां भी रौनक रहेगी। वरना हम कुछ करेंगे इंतज़ाम।
इसका ऑडियो ये रहा-
song: kahan le chale ho bata do musafir
singer: hemant kumar version (origionally sung by lata-hemant)
lyrics: rajinder krishan
music: hemant munar
year: 1956.
आपको बता दें कि मूल रूप से ये गाना लता-हेमंत की आवाज़ों में है। वो तो कंसर्ट में हेमंत दा ने इसे गा दिया तो हमें ये संस्करण नसीब हो गया।
हेमंत कुमार के कुछ और लाइव-वीडियोज़ भी हैं।
ये रहे लिंक--
1. 'जिंदगी कितनी खूबसूरत है'
2. 'ना तुम हमें जानो'
3. ये रात ये चांदनी फिर कहां।
4. जाग दर्दे-इश्क़ जाग
-----
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हां उस पीढ़ी से ज़रूर हैं जिसने हेमंत दो को सुनना सीखा। याद आता है कि दूरदर्शन पर 'रांगोली' में अकसर देव आनंद को देखते थे। ट्रेन के डिब्बे में बदमाशी करते हुए वो गाते--'है अपना दिल तो आवारा'। माउथ-ऑर्गन की इन तरंगों ने हमें इस बाजे की तरफ ला धकेला। (बाद में पता चला कि गाने में ये राहुल देव बर्मन का कमाल था।) लेकिन अपनी किस्मत में बदा नहीं था कि कोई 'बाजा' बजाना सीखें। हां, ये अलग बात है कि हमें भी पता नहीं था कि हम 'बाजे' पर बोलने की तरफ़ धकेले जा रहे हैं। इस गाने में देव साहब के 'कॉलर-अप' हैं। इसे देखकर कभी 'कॉलर-अप' किए तो पापा की डांट खा ली।
माउथ-ऑर्गन तो नहीं सीखा। पर हेमंत दा की आवाज़ मन में बस गई। फिर उनके कई-कई गीत मन में बस गए। ख़ास तौर पर 'राही तू रूक मत जाना'। पता नहीं क्यों ये आवाज़ हमें किसी और ही दुनिया से आती हुई लगती और किसी और ही दुनिया में हमें ख़ुद भी ले जाती। हेमंत दा के जिस गाने से हमें प्यार हुआ वो था—'या दिल की सुनो दुनिया वालो'। फिल्म 'अनुपमा'।
हाई-स्कूल के उन दिनों में बाद में पता चला कि जिस संत सरीखी आवाज़ को हम अटूट प्यार करते रहे, वो तो संगीतकार भी हैं। इंटरनेटी खोजबीन का दौर नहीं था। छोटे शहरों के कैसेट-शॉप वाले बहुत भाव खाते। लिस्ट देखकर 'टिक' और 'क्रॉस' लगाते जाते। और बुदबुदाते---'जे गाना है', 'जे नईं है', 'जे है', 'जे कौन सा है'। ऐसे चिढ़कू दुकानदार हमें अजीब नज़रों से देखते। 'कहां कहां से ले आते हैं गाने'। फिर नब्बे मिनिट का कैसेट तैयार होकर आता। सब गाने हेमंत कुमार के। और फिलिप्स के उस मोनो टेप-रिकॉर्डर पर बजता रहता---'हे हे हे हे, हूं हूं हूं'।
हेमंत दा के बारे में सलिल चौधरी ने कहा था कि अगर ईश्वर कभी गाए तो अपने लिए हेमंत दा की आवाज़ ही चुनेगा। इसके आगे कुछ कहने की गुंजाईश बची नहीं रह जाती। विविध-भारती आने से कुछेक साल पहले ही हमें हेमंत दा के ग़ैर-फिल्मी गानों से भी प्यार हो चला था। ख़ासकर एक गाना--जिसे हम हमेशा अपने साथ रखना चाहेंगे--'कल तेरी तस्वीर को सजदे किए हैं रात भर, हमने तेरी याद के आंसू पिये हैं रात भर'। और ये भी--'भला था कितना अपना बचपन'।
जिंदगी में कभी परेशानियां कम नहीं थीं। बेरोज़गारी के दिनों से लेकर भरपूर रोज़गार के दिनों तक....हमेशा चांद अकेला नज़र आता। रात उदास दिखती। सपनों के चकनाचूर होने का डर हमेशा रहता। प्रेम में पड़े तो उन दिनों भी हेमंत दा ही काम आए। 'याद किया दिल ने कहां हो तुम'। उनकी संगीतकारी काम आई। 'हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम'। वो किस्सा फिर कभी।
हेमंत दा संसार का सबसे ललित स्वर हैं। इंटरनेट आने के बाद जब उनके कुछ कंसर्ट्स की रिकॉर्डिंग देखी तो वो और भी सौम्य लगे। अगर संसार में मंच पर सभ्यता से गाने की मिसालें देखनी हैं तो हेमंत दा और तलत को देखिए और मन्ना दा को भी। मंच पर हारमोनियम लेकर जिस तरह हेमंत दा गाते हैं--यूं लगता है किसी पहाड़ी टीले पर बने मंदिर में अगरबत्ती और धूप की खुश्बू फैल रही है। हमेशा लगता रहा है कि भयंकर भभ्भड़ वाली इस दुनिया से अचकचाए मन को हेमंत दा की पनाह मिलती तो है तो सुकून मिलता है।
इंटरनेटी यायावरी में उनके कुछ वीडियोज़ मिले हैं। जो यू-ट्यूब की माया से यहां टांगे जा रहे हैं। हमारे अपने संग्रह में भी इन्हें रख लिय गया है। जब तक यू-ट्यूब पर ये पत्ते टंगे रहेंगे, यहां भी रौनक रहेगी। वरना हम कुछ करेंगे इंतज़ाम।
इसका ऑडियो ये रहा-
song: kahan le chale ho bata do musafir
singer: hemant kumar version (origionally sung by lata-hemant)
lyrics: rajinder krishan
music: hemant munar
year: 1956.
आपको बता दें कि मूल रूप से ये गाना लता-हेमंत की आवाज़ों में है। वो तो कंसर्ट में हेमंत दा ने इसे गा दिया तो हमें ये संस्करण नसीब हो गया।
हेमंत कुमार के कुछ और लाइव-वीडियोज़ भी हैं।
ये रहे लिंक--
1. 'जिंदगी कितनी खूबसूरत है'
2. 'ना तुम हमें जानो'
3. ये रात ये चांदनी फिर कहां।
4. जाग दर्दे-इश्क़ जाग
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अगर आप चाहते हैं कि 'रेडियोवाणी' की पोस्ट्स आपको नियमित रूप से अपने इनबॉक्स में मिलें, तो दाहिनी तरफ 'रेडियोवाणी की नियमित खुराक' वाले बॉक्स में अपना ईमेल एड्रेस भरें और इनबॉक्स में जाकर वेरीफाई करें।
बेहतरीन पोस्ट। बचपन की यादों से जोड़ती हेमंत कुमार के गाए सुनहरे गीतों पर आपकी ये पेशकश पसंद आयी। हेमंत दा के गीतों में मुझे ये नयन डरे डरे , ना हम तुम्हें जानें, तुम्हारा इंतज़ार है बहुत बहुत पसंद हैं।
ReplyDelete"सितारों से आगे , ये कैसा जहाँ है..."
ReplyDeleteबिलकुल इसी तरह का अहसास हुआ हेमंत दा की
मधुर आवाज़ में इस गीत को सुन कर ....
उनका गाया हुआ "ये नयन डरे डरे " हर बार ही नया-सा लगता है
विस्तृत जानकारी के लिए शुक्रिया .
और वो वाला भी … तुम्हारे नयन देखकर सुना है लोग जोगी हो गये …
ReplyDelete"अगर ईश्वर कभी गाए तो अपने लिए हेमंत दा की आवाज़ ही चुनेगा " - निःसंदेह. हेमंत दा मेरे भी पसंदीदा गायक / संगीतकार रहे हैं, और जब देव साहब भी साथ हों तब तो बात ही कुछ और है.
ReplyDeleteक्या गाने याद दिलाये हैं! सचमुच हेमंत दा की आवाज़ का असर बहुत लम्बे समय तक रहता है! तस्वीर बनाता हूँ...दुखी मन मेरे.. जाने वो कैसे लोग थे जिनके... उफ़ न जाने कितने गाने याद आते जा रहे हैं!
ReplyDeleteहेमंत कुमार की आवाज़ में जादू ही है ...आजकल मोहित को सुनते हुए उनके गीत बहुत याद आते हैं ...
ReplyDelete" तुम पुकार लो , तुम्हारा इन्तजार है " भी उनके बेहद खूबसूरत गीतों में से है 1
:) बढ़िया..
ReplyDeleteबस एक बात याद रखियेगा.. जब भी अगली दफे आपसे बात होगी तो आपसे मैं आगे की कहानी जरूर पूछूँगा.. :)
अभी हाल ही में यूट्यूब पर 'नील आकाशेर नीचे' देखी. उसके बाद से हेमंत दा का 'ओ नोदी रे' कई कई बार सुना.
ReplyDeleteइस गीत के लिए शुक्रिया.
भारत भूषण आपने एक सुंदर गाने की याद दिलाई। इसे यू-ट्यूब पर हमारे साथी यहां http://www.youtube.com/watch?v=cGyK9fH9aoc&feature=fvwrel सुन सकते हैं। और रही बात 'ओ रे नोदी' की...तो संदर्भ के लिए बता दें कि फिल्म कोहरा का गाना--'ओ बेक़रार दिल' इसी धुन पर आधारित है। दोनों को एक साथ सुनकर देखिए। अगली पोस्ट इसी मु्द्दे पर।
ReplyDeleteबन्धुवर ,
ReplyDeleteमैं तो उन गीतों की दुनिया से निकल ही नहीं पाता
निकलना चाहता भी नहीं
आह क्या गीत थे
राहगीर के
जनम से बंजारा हो बन्धु जनम जनम बंजारा
शबाब का
चन्दन का पलना रेशम की डोरी
और एक बार तो हेमंत दा की आवाज़ में
मुझे पहली बार रविन्द्र संगीत सुनने का मौका लगा
गीत के बोल थे
कृष्ण कलि आमी तारेई बोली
रेडियो पर मैं पहली बार सुन रहा था
और आँखों से अविरल आँसुओं की धारा बही जा रही थी
मैं Trance में था
फिर तो जब कलकत्ता गया थो वह कैसेट खोज कर लाया और जी भर कर सुना
उस दुनियाँ में पुनः ले चलने के लिए आपको धन्यवाद्
मित्र को मेरे प्रणाम !
यूनुस भाई, हेमंत दा पर इतनी अच्छी पोस्ट के लिये आपको साधुवाद. अपने पुराने दिनों को याद कर आपने हमें भी अपने बीते दिनों की उन गलियों मे विचरने का एक मौका दे दिया जब रेडियो पर हम सुना करते थे... तुम पुकार लो.. ये नैन डरे डरे.. या दिल की सुनो दुनियावालो.. मगर लगता है कुछ ऐसा..
ReplyDeleteजाने कितने सारे गीत ....
घना बढिया काम कर रहे हो, आप तो, ऐसे ही करते रहो,
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