फिल्म-संगीत का संसार सचमुच बड़ा ही निराला है । इस सागर में जितना गहरा ग़ोता लगाएं उतने ही अनमोल मोती सामने आते हैं । आप किसी भी गाने को कई स्तरों पर सुनते हैं । गाना अपने बोलों ज़रिए आपके जज़्बात जगा देता है । गाने वाले की आवाज़ दिल पर गहरा असर करती है । फिर संगीत पर भी आपका ध्यान जाता है....कुछ लोगों का ध्यान तो जाता है और जाना भी चाहिए । यहां संगीत का मतलब सिर्फ गाने की धुन या गाने के बीच बज रहे वाद्य नहीं हैं । बल्कि ये तो एक अलग ही दुनिया है । हमारे पियूष मेहता जैसे कुछ लोग ऐसे हैं--जो इसी दुनिया में खोए हुए हैं ।
किस गाने में कौन-सा वाद्य बजा, किसने बजाया, बजाने वाले व्यक्ति ने किन-किन फिल्मों में किन-किन संगीतकारों के साथ और किस-किस गाने में क्या-क्या बजाया । इसका कोई ख़ास लिखित ब्यौरा नहीं मिलता । हां कुछ कहानियां, कुछ किस्से और कुछ मिथक हैं जो चले आ रहे हैं । और एक समुदाय है जो इन्हें खोजता और जिंदा रखता है ।
दरअसल फिल्म-संसार में ऐसे कई साजिंदे और अरेन्जर रहे हैं जिन्हें unsung heroes कहा जा सकता है । क्योंकि गाने तो हम सभी सुनते हैं पर इन लोगों के बारे में सबको पता नहीं होता, ना ही सबका ध्यान इस बात पर जाता है । मनोहारी सिंह, मिलन गुप्ता, ब्लास्को मॉन्सोरेट, फ़्रैन्को वाज़, होमी मुल्लां, रन्जीत गज़मर, सुरेश यादव, केरसी लॉर्ड, इनॉक डैनियल्स, बासु चक्रवर्ती, किशोर देसाई, दत्ता नाईक, भानु गुप्ता, किशोर सोढा, श्यामराज, रमेश अय्यर, सुनील कौशिक , प्रदीप्तो सेनगुप्ता, नूर सज्जाद...उफ़ कितनी लंबी फेहरिस्त है उन लोगों की जिन्हें दुनिया 'साजिन्दे' कहती है । फिल्म-संगीत-जगत में इनमें से कुछ 'अरेन्जर' भी रहे हैं । पर एक गाने की रचना में इनका योगदान ग़ज़ब का होता है । लेकिन ज्यादातर 'अनकहा', 'अनुसुना', 'अनजाना' ही रह गया है ।
इसलिए हमने समय-समय पर 'रेडियोवाणी' पर ये मुद्दा उठाया है । आज जो पहेली आपके सामने रखी जा रही है, उसके ज़रिए सामने आने वाला है ऐसे ही एक ग़ज़ब
के instrumentalist का नाम । पहले ज़रा इस ऑडियो-क्लिप को सुन लीजिए ।
और ये रहे पहेली के सवाल--
1. गिटार को छोडिए, ये मुख्य-वाद्य कौन सा है ?
2. इसे किसने बजाया होगा ?
3. ये कौन-सा गाना है, फिल्म का नाम भी बताएं ?
इस पहेली को हम दो दिन के लिए टांग रहे हैं ।
गुरूवार को इसका जवाब दे दिया जाएगा ।
और अब सबसे मुख्य-बात । ये पहेली हमारे मित्र 'डाक-साब' के सौजन्य से ।
ये भी बता दें कि हम इस पहेली से उनके हाथों चारों ख़ाने चित्त हो चुके हैं ।
वैसे रेडियोवाणी पर संगीत की तरंगित बातों और इंस्ट्रूमेन्टल पहेली का अनियमित सिलसिला आगे भी जारी रहेगा ।
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छोटे मियाँ के चाहने वालों के लिये बहुत आसान पहेली है
ReplyDeleteहमारी पहेली दुनिया से पूछी भी,तो आधी-अधूरी ?
ReplyDeleteअरे भई,हमने तो इस गाने में बजाये गये दो मुख्य वाद्यों के बारे में पूछा था,पर आपने एक ही सुनवाया और बस उसी के बारे में पूछा । कोई बात नहीं; रेडियोवाणी के श्रोता भी कोई कम तो हैं नहीं । जब गाना पहचान लेंगे,तो दूसरा वाद्य भी ख़ुद-ब-ख़ुद सुन (और पहचान) ही लेंगे । उनके जवाब का इन्तज़ार हमें भी है ।
काफी कठीन है. सरजी फिर भी में कोशिश करूंगा.
ReplyDeleteअभी तो थोडा सा समय भी है.
न !
ReplyDeleteबस गिटार भर समझ में आता है लेकिन वो होगा नहीं ! पहेली मुश्किल है ! बहरहाल, आपकी संगीत पहेली बेहतरीन दर्ज़े की है और हम इसी के सहारे अपने मामूली से ज्ञान में कुछ इज़ाफ़ा करते रहेंगे ।
पिलयर कुठे आहे?
ReplyDeleteमोज़िला में नहीं दिखा, क्रोम में दिख रहा है पिलयर।
ReplyDeleteभई हमें तो ये दो पत्थरों को उंगलियों मे दबा कर जो बच्चे बजाते हैं ट्रेन में वही लग रहा है.. फ़िल्म और गाना .. हारी!
i think it may be mandolin played by manohari singh
ReplyDeleteor its piyano
पियुष महेता जी
ReplyDeleteदिलीप कवठेकर जी
चिदम्बर काकतकर जी
सागर नाहर जी
केदार जी
उड़न-तश्तरी जी
और जहाजी कउवा जी,आप भी;
कहाँ गये आप सब के सब ?
"अब जनि कोउ माखै भट मानी ।
बीर बिहीन मही मैं जानी ॥"
डाक-साब की बात सही है । पियूष भाई का तो फोन भी आया था सुराग़ लेने के लिए । हम तो सोच रहे थे कि आज इस पहेली का उत्तर टांग देंगे । अब कल तक मुल्तवी कर रहे हैं ।
ReplyDeleteपहेली कुछ ज्यादा ही भारी हो गयी लगती है ।
डाक साहब और युनूसजी,
ReplyDeleteमूझे सीधा जवाब तो नहीं चाहीए था पर ये कहने के लिये फोन किया था कि मूझे लगा था कि आपने डाक साहब की पहलीमें परिवर्तन तो जरूर किया है । जब विविध भारती पर सिने पहेली कार्यक्रम आता था तो मेरा एक उसूल रहा था कि कम से कम तीन जवाब तो अपनी निजी कोशिश से ही पाने होते थे पर एक का हल हम राजकोट के मधोसूदन भट्ट से कभी पूछ लेते थे या सच्चाई की तसल्ली कर लेते थे और बादमें चन्दीगढ के यसकूमार वर्मा और बादमें उनके दोस्त मनिमांजरा के ऋषिकूमार गोगोना शामिल ते थे कभी कभी । उनकी दिक्क्तत ये थी कि वे मेरी तरह मुम्बई से नझदीक नहीं पर काफ़ी दूरी पर रहते हुए उनके पत्र ज्यादातर 10 दिन के बाद पहोंच पाते थे । युनूसजी को मैंनें इतना बताया था कि यह गाना राहुल देव बर्मन साहब की धून का तो पक्का लगता है, जो उनके एक दूसरे गाने मनोरंजन फिल्म के आया हूँ मैं तुजको ले जाउँगा से काफ़ी नझदीक है, जिसकी एक धून श्री चरणजीत सिंह की ट्रांसीकोड और क्लेवायोलीन पर मेरे पास है ।
पियुष महेता ।
सुरत-395001.
डाक साहब क्या आप अपनी असली पहचान देंगे ? आप के तख़ल्लूस पर चटका लगा कर आपके बारेमें जानने की कोशिश की थी हाल भी और पहेले भी ।
ReplyDeleteपियुष महेता ।
सुरत-395001.
"डाक साहब क्या आप अपनी असली पहचान देंगे ?" - पियुष महेता
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परदे में रहने दो,परदा ना उठाओ
परदा जो उठ गया तो........
वैसे असली जवाब तो रफ़ी साहब के गाये इस गाने में है :
मैं जो हूँ बस वही हूँ
मैं जो हूँ बस वही हूँ
...और फिर ये किसने कहा कि यूनुस जी की दी हुई पहचान नकली है ?
ReplyDeleteसच तो ये है कि ये भी एकदमै असली है - सोलहो आने !