Monday, January 11, 2010

कोई बोले राम राम कोई ख़ुदाय- दूरदर्शन के सुहाने दिनों का वो शबद

ब्‍लैक एंड व्‍हाईट वाले दूरदर्शनी दौर की यादें ताज़ा हैं ज़ेहन में अब तक । इतने दिन गुज़र गए लेकिन टी.वी. देखने का वो रोमांच दोबारा नसीब नहीं हो सका । बाद में तो टी.वी. बहुत ही प्रेडिक्‍टेबिल हो गया । इसलिए वो मज़ा जाता रहा ।

उफ़ वो दिन……जब फिल्‍म 'काला-आदमी' में पुलिस से भागते सुनील दत्‍त बच्‍चे से अचानक बड़े हो जाते हैं । जब 'विक्‍टोरिया नंबर 203' में विक्‍टोरिया और हीरों का रहस्‍य गहराता चला जाता है । जब 'दीवार' में इंटरवल के वक्‍त एक भाई एक दिशा में और दूसरा दूसरी दिशा में जाता है और स्‍क्रीन पर बीच में एक लकीर आ जाती है । जब सत्‍यजीत रे और दे सीका की फिल्‍में देर रात आती हैं दूरदर्शन पर । जब रांगोली और चित्रहार जीवन का हिस्‍सा हैं । जब पढ़ाई और संडे की फिल्‍म के बीच संतुलन बनाना बेहद ज़रूरी लगता है ।

उन्‍हीं दिनों रविवार को सबेरे एक कार्यक्रम आता था—गुरबानी । हो सकता है कि उसका नाम 'सरब-सांझी-गुरबानी' रहा हो । ठीक से याद नहीं । लेकिन उसकी शुरूआत होती थी एक शबद से--'कोई बोले राम राम कोई खुदाय' । ये तो याद नहीं कि किसकी आवाज़ हुआ करती थी । पर इंटरनेटी-यायावरी में जो संस्‍करण मिले उनमें यही अच्‍छा लगा । जिसे यहां सुनवाया जा रहा है । ये 'शबद' दूरदर्शन के उन यादगार दिनों के नाम !

sabad: koi bole ram ram
duration: 5-42
artist:bhai jaswinder singh and party





कोई बोले राम राम कोई खुदाय,
कोई सेवे गुसैयां कोई अल्लाह
कारण करण करीम कृपा धार रहीम ।
कोई नावे तीर्थ कोई हज जाई
कोई करे पूजा कोई सिर नवाय ।
कोई पढ़े बेद कोई कथेब
कोई औढ़े नील कोई सफेद ।
कोई कहाये तुर्क कोई कहे हिन्दू
कोई बशाई भीसथ कोई सुरगी धू ।
कहू नानक जिन हुकम पसाथा
प्रभ साहिब का तिन भेद जाथा


भाई विक्षुब्‍ध सागर की टिप्‍पणी में पता चला कि ये सबद 'सरब सांझी गुरबानी' में भाई जसविंदर सिंह और साथियों ने गाया था । इसकी यूट्यूब विन्‍डो भी यहां लगाई जा रही है ।



19 comments:

  1. बचपन की यादे ताज़ी हो गयी . वह दूरदर्शन वह हम लोग , यह जो है जिन्दगी ,मशहूर महल ,रामायण

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  2. वाह! मधुर शबद के लिए आभार। बचपन भर बहुत शबद सुने हैं। और भी सुनवाइएगा।
    घुघूती बासूती

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  3. un sunahare dino kee yaad taaja kar di aapne.

    aabhaar

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  4. वाकई दूरदर्शन के दिनों की बात ही कुछ और थी. तब एक ही चैनल था और सभी के लिए प्रोग्राम, मगर आज इतने सारे चैनल हैं और एक के लिए भी प्रोग्राम नहीं.

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  5. ज़ेहन में कई यादें ताज़ा कर दी... अब तो ये गीत भी पास में रख कर सुनने जैसा है.

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  6. सुरिन्दर सिंह और तेजपाल सिंह जिन्हें हम सिंह बन्धु के नाम से जानते हैं। सुरिन्दर सिंह जी प्रसिद्ध लेखिका और कवियत्री पद्मा सचदेव जी के हमसफ़र भी हैं।
    सिंह बन्धु नियमित रूप से रविवार सुबह 8 या 8.30 पर आते थे। उसके आसपास कार्टून सीरीज़ आती थी, उनमे से एक थी गायब आया!

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  7. सही याद किया, बड्डे...मजा आ गया!

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  8. बिलकुल वह सरब सांझी गुरबानी ही थी युनूस भाई. और उसके शुरू होने के पहले वह वॉइस ओवर कि टेक्सला टीवी बणावल वालें दी पेशकश सरब साँझी गुरबानी.....रविवार को सुबह नौ बजे का वक़्त होता था और उसके बाद नमूदार होते थे विनोद दुआ अपना रंगतदार शो लेकर.सब कुछ बड़ा सुक़ून भरा था युनूस भाई...ज़िन्दगी,कारोबार,सड़कें,संगीत और बिला शक टीवी भी. पहले लगता था टीवी से हम कुछ ले रहे हैं...और अब टीवी हमारा कुछ ले रहा है...हमारे घरों की शामें, गप्पा-गोष्ठियाँ,बतकही,कहानिया,अंताक्षरियाँ,कॉलोनियों में घूमने के सिलसिले और और तो और किसी मोहल्ले में हुई ग़मी के बावजूद हम शोर करता टीवी सेट चलाते अति-प्रसन्न हैं...कैसी तहज़ीब है ये और कैसी ज़िन्दगी....लाहौल-विला-कुव्वत.

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  9. 'कोई बोले राम' यूँ तो बहुतेरे गायकों ने गाया है लेकिन शायद इसे सिंह बंधुओ ने तो नही ही गाया है !
    इस कार्यक्र्म "सरब सांझी गुरबानी " में प्रयोग किया गया 'शबद' भाई जसविंदर सिंह जी ने अपनी मंडली के साथ गया था ....और इससे पहले का वॉइस ओवर दिया था शम्मी नारंग ने !
    भाग्यवश मैं उन दिनों उसी स्टूडियो के साथ जुड़ा हुआ था जहाँ इसकी रिकार्डिंग की जाती थी ! टेक्सला टी वी के मालिक सरदार राजा सिंह की व्यक्तिगत देखरेख में इस कार्यक्र्म का निर्माण जनाब ज़ुबैर ईमान के स्टूडियो 'एयर-विज़न ' में हुआ करता था !

    आह ....किस सुनहरे कल की यादें ताज़ा कर दी आपने !!!!!!

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  10. यह सशक्त बात है:
    बाद में तो टी.वी. बहुत ही प्रेडिक्‍टेबिल हो गया । इसलिए वो मज़ा जाता रहा ।

    :(

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  11. शुक्रिया विक्षुब्‍ध जी । आपकी जानकारियों से इस पोस्‍ट का नया आयाम सामने आया है । इसके बाद मुझे भाई जसविंदर सिंह का गाया संस्‍करण भी मिल गया । सभी पाठकों के लिए उसका लिंक ये रहा
    http://www.youtube.com/watch?v=ygvoWkMAeDo

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  12. आपके साथ-साथ पवन व संजय पटेल जी पता नहीं यादों की किन गलियों में ले गए

    बहुत बहुत आभार आपका

    बी एस पाबला

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  13. अचानक चली बात से एक और बात का ध्यान आ गया ! आज बहुत से लोग - यहाँ तक की मिडिया / रेडियो -टीवी, वाले भी यही समझते मानते आ रहे हैं कि 'हम लोग' हमारे देश का पहला प्रायोजित कार्यक्रम है ( sponsored programme ), जबकि ऐसा है नहीं ! वस्तुतः दूरदर्शन पर पहले प्रायोजित कार्यक्रम होने का गर्व इसी कार्यक्रम "सरब सांझी गुरबानी " को प्राप्त है !

    अब आपने यादों के जंगल में धकेल ही दिया है तो अपनी अलमारी के किन्ही भूले बिसरे कोनो में मुझे इसके टेप्स ढूँढने पड़ेंगे !

    युनुस भाई , शुक्रिया ना कहूं तो गुस्ताखी होगी ! बहुत बहुत शुक्रिया !!

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  15. युनुस भाई और सागर जी आप दोनों लोगो को बहुत बहुत साधुवाद पुरानी यादो को जीवंत करने के लिए |

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  16. मुझे तो आज भी दूरदर्शनी टीवी का दौर ही पसंद है। उस दौर ने क्या क्या नायाब चीज़ें रची थीं। सब कुछ स्तरीय....पता नहीं उस दौर में भी दूरदर्शन की सदाचारी, नैतिकतावादी धीमी रफ्तार को कोसनेवाले लोग आज के दौर के टीवी से कदमताल मिला पा रहे हैं या नहीं, मगर हमें तो तब भी वह पसंद था।

    कभी भारत एक खोज में दिया वनराज भाटिया का म्यूजिक सुनवाइये। वसंत देव के किए वैदिक ऋचाओं के अनुवाद और भाटिया जी का संगीत।
    -बैठी हैं पोखर में, भैंसे पगुराए....
    आह, क्या समवेत गान होता था जो सदियों पार अतीत के आंगन में उतार देता था।

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