उफ़ वो दिन……जब फिल्म 'काला-आदमी' में पुलिस से भागते सुनील दत्त बच्चे से अचानक बड़े हो जाते हैं । जब 'विक्टोरिया नंबर 203' में विक्टोरिया और हीरों का रहस्य गहराता चला जाता है । जब 'दीवार' में इंटरवल के वक्त एक भाई एक दिशा में और दूसरा दूसरी दिशा में जाता है और स्क्रीन पर बीच में एक लकीर आ जाती है । जब सत्यजीत रे और दे सीका की फिल्में देर रात आती हैं दूरदर्शन पर । जब रांगोली और चित्रहार जीवन का हिस्सा हैं । जब पढ़ाई और संडे की फिल्म के बीच संतुलन बनाना बेहद ज़रूरी लगता है ।
उन्हीं दिनों रविवार को सबेरे एक कार्यक्रम आता था—गुरबानी । हो सकता है कि उसका नाम 'सरब-सांझी-गुरबानी' रहा हो । ठीक से याद नहीं । लेकिन उसकी शुरूआत होती थी एक शबद से--'कोई बोले राम राम कोई खुदाय' । ये तो याद नहीं कि किसकी आवाज़ हुआ करती थी । पर इंटरनेटी-यायावरी में जो संस्करण मिले उनमें यही अच्छा लगा । जिसे यहां सुनवाया जा रहा है । ये 'शबद' दूरदर्शन के उन यादगार दिनों के नाम !
sabad: koi bole ram ram
duration: 5-42
artist:bhai jaswinder singh and party
कोई बोले राम राम कोई खुदाय,
कोई सेवे गुसैयां कोई अल्लाह
कारण करण करीम कृपा धार रहीम ।
कोई नावे तीर्थ कोई हज जाई
कोई करे पूजा कोई सिर नवाय ।
कोई पढ़े बेद कोई कथेब
कोई औढ़े नील कोई सफेद ।
कोई कहाये तुर्क कोई कहे हिन्दू
कोई बशाई भीसथ कोई सुरगी धू ।
कहू नानक जिन हुकम पसाथा
प्रभ साहिब का तिन भेद जाथा ।
भाई विक्षुब्ध सागर की टिप्पणी में पता चला कि ये सबद 'सरब सांझी गुरबानी' में भाई जसविंदर सिंह और साथियों ने गाया था । इसकी यूट्यूब विन्डो भी यहां लगाई जा रही है ।
सिंह बंधु
ReplyDeleteबचपन की यादे ताज़ी हो गयी . वह दूरदर्शन वह हम लोग , यह जो है जिन्दगी ,मशहूर महल ,रामायण
ReplyDeleteकर्णप्रिय गायन!
ReplyDeleteवाह! मधुर शबद के लिए आभार। बचपन भर बहुत शबद सुने हैं। और भी सुनवाइएगा।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
un sunahare dino kee yaad taaja kar di aapne.
ReplyDeleteaabhaar
वाकई दूरदर्शन के दिनों की बात ही कुछ और थी. तब एक ही चैनल था और सभी के लिए प्रोग्राम, मगर आज इतने सारे चैनल हैं और एक के लिए भी प्रोग्राम नहीं.
ReplyDeleteज़ेहन में कई यादें ताज़ा कर दी... अब तो ये गीत भी पास में रख कर सुनने जैसा है.
ReplyDeleteसुरिन्दर सिंह और तेजपाल सिंह जिन्हें हम सिंह बन्धु के नाम से जानते हैं। सुरिन्दर सिंह जी प्रसिद्ध लेखिका और कवियत्री पद्मा सचदेव जी के हमसफ़र भी हैं।
ReplyDeleteसिंह बन्धु नियमित रूप से रविवार सुबह 8 या 8.30 पर आते थे। उसके आसपास कार्टून सीरीज़ आती थी, उनमे से एक थी गायब आया!
सही याद किया, बड्डे...मजा आ गया!
ReplyDeletePriceless time
ReplyDeleteबिलकुल वह सरब सांझी गुरबानी ही थी युनूस भाई. और उसके शुरू होने के पहले वह वॉइस ओवर कि टेक्सला टीवी बणावल वालें दी पेशकश सरब साँझी गुरबानी.....रविवार को सुबह नौ बजे का वक़्त होता था और उसके बाद नमूदार होते थे विनोद दुआ अपना रंगतदार शो लेकर.सब कुछ बड़ा सुक़ून भरा था युनूस भाई...ज़िन्दगी,कारोबार,सड़कें,संगीत और बिला शक टीवी भी. पहले लगता था टीवी से हम कुछ ले रहे हैं...और अब टीवी हमारा कुछ ले रहा है...हमारे घरों की शामें, गप्पा-गोष्ठियाँ,बतकही,कहानिया,अंताक्षरियाँ,कॉलोनियों में घूमने के सिलसिले और और तो और किसी मोहल्ले में हुई ग़मी के बावजूद हम शोर करता टीवी सेट चलाते अति-प्रसन्न हैं...कैसी तहज़ीब है ये और कैसी ज़िन्दगी....लाहौल-विला-कुव्वत.
ReplyDelete'कोई बोले राम' यूँ तो बहुतेरे गायकों ने गाया है लेकिन शायद इसे सिंह बंधुओ ने तो नही ही गाया है !
ReplyDeleteइस कार्यक्र्म "सरब सांझी गुरबानी " में प्रयोग किया गया 'शबद' भाई जसविंदर सिंह जी ने अपनी मंडली के साथ गया था ....और इससे पहले का वॉइस ओवर दिया था शम्मी नारंग ने !
भाग्यवश मैं उन दिनों उसी स्टूडियो के साथ जुड़ा हुआ था जहाँ इसकी रिकार्डिंग की जाती थी ! टेक्सला टी वी के मालिक सरदार राजा सिंह की व्यक्तिगत देखरेख में इस कार्यक्र्म का निर्माण जनाब ज़ुबैर ईमान के स्टूडियो 'एयर-विज़न ' में हुआ करता था !
आह ....किस सुनहरे कल की यादें ताज़ा कर दी आपने !!!!!!
यह सशक्त बात है:
ReplyDeleteबाद में तो टी.वी. बहुत ही प्रेडिक्टेबिल हो गया । इसलिए वो मज़ा जाता रहा ।
:(
शुक्रिया विक्षुब्ध जी । आपकी जानकारियों से इस पोस्ट का नया आयाम सामने आया है । इसके बाद मुझे भाई जसविंदर सिंह का गाया संस्करण भी मिल गया । सभी पाठकों के लिए उसका लिंक ये रहा
ReplyDeletehttp://www.youtube.com/watch?v=ygvoWkMAeDo
आपके साथ-साथ पवन व संजय पटेल जी पता नहीं यादों की किन गलियों में ले गए
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
बी एस पाबला
अचानक चली बात से एक और बात का ध्यान आ गया ! आज बहुत से लोग - यहाँ तक की मिडिया / रेडियो -टीवी, वाले भी यही समझते मानते आ रहे हैं कि 'हम लोग' हमारे देश का पहला प्रायोजित कार्यक्रम है ( sponsored programme ), जबकि ऐसा है नहीं ! वस्तुतः दूरदर्शन पर पहले प्रायोजित कार्यक्रम होने का गर्व इसी कार्यक्रम "सरब सांझी गुरबानी " को प्राप्त है !
ReplyDeleteअब आपने यादों के जंगल में धकेल ही दिया है तो अपनी अलमारी के किन्ही भूले बिसरे कोनो में मुझे इसके टेप्स ढूँढने पड़ेंगे !
युनुस भाई , शुक्रिया ना कहूं तो गुस्ताखी होगी ! बहुत बहुत शुक्रिया !!
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ReplyDeleteयुनुस भाई और सागर जी आप दोनों लोगो को बहुत बहुत साधुवाद पुरानी यादो को जीवंत करने के लिए |
ReplyDeleteमुझे तो आज भी दूरदर्शनी टीवी का दौर ही पसंद है। उस दौर ने क्या क्या नायाब चीज़ें रची थीं। सब कुछ स्तरीय....पता नहीं उस दौर में भी दूरदर्शन की सदाचारी, नैतिकतावादी धीमी रफ्तार को कोसनेवाले लोग आज के दौर के टीवी से कदमताल मिला पा रहे हैं या नहीं, मगर हमें तो तब भी वह पसंद था।
ReplyDeleteकभी भारत एक खोज में दिया वनराज भाटिया का म्यूजिक सुनवाइये। वसंत देव के किए वैदिक ऋचाओं के अनुवाद और भाटिया जी का संगीत।
-बैठी हैं पोखर में, भैंसे पगुराए....
आह, क्या समवेत गान होता था जो सदियों पार अतीत के आंगन में उतार देता था।