Sunday, August 16, 2009

अधरं मधुरं वदनं मधुरं: मधुराष्‍टकम: पंडित जसराज की आवाज़ में

संगीत खोजने की यायावरी में बड़ा आनंद है । इंटरनेट पर खोजें या स्‍वयं घुमक्‍कड़ी करके । अकसर ही ये होता है कि आप खोजने कुछ चलते हैं और हाथ कुछ और लग जाता है । ज़ाहिर है कि जो खोजने चले थे वो धरा-का-धरा रह जाता है और आप इस नये 'हासिल' की ख़ुशी में फूले नहीं समा रहे होते हैं । इस बार भी यही हुआ है । हम कुछ और खोज रहे थे पर कई आवाज़ों में 'मधुराष्‍टकम 'मिल गया । 'मधुराष्‍टकम' की रचना श्री वल्‍लभाचार्य ने की थी । पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में वल्‍लभाचार्य ने कृष्‍ण-भक्ति से परिपूर्ण अपनी रचनाएं
लिखीं । 'मधुराष्‍टकम' उन्‍हीं में से एक है ।


तो आईये पंडित जसराज के स्‍वर में 'मधुराष्‍टकम' सुनते हैं । HD000115
ये रचना जसराज जी के अलबम 'गोविंद माधव माधवेति'
में संकलित है । वैसे अगर आप 'यू-ट्यूब' पर ही खोजें
तो एम.एस.सुब्‍बलक्ष्‍मी, विजय येसुदास, येसुदास से लेकर अन्‍य कई गायकों के स्‍वर में आपको 'मधुराष्‍टकम' मिल जाएगा । सुनिए 'मधुराष्‍टकम' ।





एक और प्‍लेयर ताकि सनद रहे ।





ये रहा मधुराष्‍टकम का संस्‍कृत पाठ एवं उसका अनुवाद । 'डाकसाब' के सौजन्‍य से ।
Madhurashtakam-Eचित्र पर क्लिक करके इसे बड़ा भी किया जा सकता है । राइट क्लिक करके open in a new tab करें बिना असुविधा के आप इस पेज पर रहकर ऑडियो सुन भी सकते हैं और नए पेज पर इसे पढ़ भी सकते हैं । वैसे मुझे स्‍तुतिमंडल पर इसका खूबसूरत अंग्रेज़ी अनुवाद भी मिला है । यहां क्लिक कीजिए ।  


कल अचानक 'रेडियोवाणी' के स्‍टैटकाउंटर पर नज़र पड़ी तो देखा कि आंकड़ा एक लाख एक हज़ार के ऊपर पहुंच चुका है । जे देखिए ।
statc
पता नहीं क्‍यों इस आंकड़े को देखकर अच्‍छा लग रहा है । हालांकि 'रेडियोवाणी' पर हम जाने किस जुनून और किस ख़ब्‍त में बस 'अपने लिए' लिखे चले जा रहे हैं । ये अलग बात है कि 'अपने लिए' हमारा लिखा कभी-कभी आप सबको 'अपने लिये' लिखा लगता है । चलिए अच्‍छा है, हम सब अपने-अपने मुग़ालतों में जीते रहें । शुक्रिया ।

27 comments:

  1. युनुस भाई प्लेयर नहीं चला।

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  2. "हालांकि 'रेडियोवाणी' पर हम जाने किस जुनून और किस ख़ब्‍त में बस 'अपने लिए' लिखे चले जा रहे हैं ।"

    Yunus bhai u r doing a matchless job for the cause of good music. It is not necessary that ur fans should alvez comment , u have a following of a lot of silent admirers like me. In the realm of hindi blogworld very few blogs have a feel of pure 'positivity' and ur blog is one of them . Please continue .......

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  3. दिनेश जी इसे ठीक कर दिया है । दो प्‍लेयर हैं दोनों चल रहे हैं ।

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  4. युनुस जी पहले वाला प्लेयर खूब बज रहा है। दूसरा प्लेयर मेरे यहाँ दिखाई नहीं दे रहा है। रात को फायरफॉक्स अपडेट हुआ है। लगता है उसी के कारण कुछ समस्या आ रही है।

    मधुराष्टक में मधुरता है। यहाँ तक कि शोभा ने इस बीच कॉफी बना कर दी है। उस में भी चीनी दुगनी हो गई है।

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  5. वाह, कहीं से शंकराचार्य का भजगोविन्दम तलाशो मित्र!

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  6. सुन्दर - मधुर पोस्ट .... आभार .....ये "ख़ब्‍त " ही जिलाए है हमारे ब्लाग्स ..वरना कुछ धरा नही है इसमे ....

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  7. और ये भी आप ही कर सकते हैं प्‍लीज प्‍लीज प्‍लीज किशोरी अमोनकर जी के स्‍वर में शिव तांडव स्‍तोत्र सुनवा दीजिये जीवन भर आभारी रहूंगा । एक लाख होने की बधाई ।

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  8. अति सुन्दर, अति मधुर
    खोज रहा हूँ कहीं से डाउनलोड मिल जाये तो आईपॉड में रख लूं
    हिन्दुस्तान में streaming music सुनना थोडा सा कठिन होता है कभी कभी

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  9. मधुराष्टक सुन मन श्रीनाथद्वारा,द्वारिका और वृंदावन की यात्रा कर आया.जय श्रीकृष्ण.

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  10. आनन्द आ गया । बधाई हेतु शब्द नहीं हैं युनुष जी ।

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  11. यूनुस भाई, लखपति होने की बधाई. कामना है कि आप शीग्र ही करोड़पति, अरबपति हों.
    पण्डित जसराज जी की तो बात ही अलग है. मेरे पास इसी रचना की बहुत खूबसूरत वीडियो रिकॉर्डिंग है.

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  12. "डाकसाब"August 16, 2009 at 4:32 PM

    "कहीं से शंकराचार्य का भजगोविन्दम तलाशो मित्र!" - ज्ञानदत्त पाण्डेय
    ____________________________________
    मूल संस्कृत-पाठ और हिन्दी अनुवाद तो ख़ैर हम भी दे सकते हैं । बकिया इसका ऑडियो-वीडियो वग़ैरह ढूँढने के लिये आपने एकदम सही मुर्गे को पकड़ा है ।

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  13. बहुत-२ शुक्रिया यूनस भाई , मंत्रमुग्ध कर दिया आपने !!

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  14. पहले तो एक लाख के आंकड़े को छूने की हार्दिक बधाई। दरअसल ये मुकाम एक संतोष दिलाते हैं कि हम सही राह पे हैं। पंडित जसराज की यह भक्ति रचना सुनवाने का आभार।

    और अंत में हमारी एक सलाह या यूँ कहिए की हुक्म मानिए। आपने अपने चिट्ठे पर पिछली पोस्ट पर जाने वाला जुगाड़ हटाया क्यूँ है भाई। अरे ब्लागर ने Archive यूँ ही डिफाल्ट में नहीं रखा और आपने तो उसे भी उड़ा दिया। अब फुरसत में आदमी दो तीन पोस्ट एक साथ पढ़ने की इच्छा रखे तो क्या करे ?

    बहरहाल अगली पोस्ट तक इस आदेश की तामील हो जानी चाहिए वर्ना..

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  15. aapki post, jasaraj ji ki aawaaz aur bhaav, aur shree vallabhacharya ji ki lekhan shaili...

    akhilam madhuram...

    dhanyavaad...

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  16. वाह वाह! आपकी घुमक्कडी तलाश ऐसे ही अनमोल रत्नों को निकालती रहे।

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  17. मधुराष्टक का आभार । संतोष होता है इन्हें सुनकर ।

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  18. वाह युनूस भाई! आनंद आ गया मधुराष्टम सुनकर। लखपति होने की बधाई हो। वैसे भी ये मधुर है आैर पंडित की आवाज का क्या कहना आैर जन्माष्टमी अभी ताजी ताजी गई ही है। प्रस्तुति पूर्णतया सामयिक है। भजगोविन्दम के चाहने वालों में मेरा भी नंबर है।
    शाम ढले जमना किनारे00000का अभी तक कुछ नहीं हुआ है उसे भी फुर्सत में देखियेगा।

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  19. ज्ञानदत्त पाण्डेय जी यह रही एम एस सुब्बलक्ष्मी के स्वर में भजगोविन्दम् -
    http://www.youtube.com/watch?v=r4FUQxn4CnY

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  20. रात एक बजकर बयालीस मिनट हुए हैं। आनन्‍द की सीमा का बखान नहीं किया जा सकता । मधुराधिकपति का अखिल मधुर है। हृदय से आभार युनुस भाई।

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  21. "डाकसाब"August 19, 2009 at 9:15 PM

    कमेन्ट्स/टिप्पणियों का स्टैटकाउन्टर भी देख लें ज़रा !
    हमारा यह वाला तेईसवाँ है ।

    इससे ऊपर आज तक और किस-किस पोस्ट में गया है , चेक करके हम लोगों को भी तो बताएँ; "ताकि सनद रहे" ।

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  22. एक लाख की बधाई ।

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  23. my email id is imjoshig@gmail.com


    क्‍या आप मुझे मधुराष्‍टकम डाउनलोड के लिए उपलब्‍ध करा सकते हैं। कोई लिंक भी हो तो मेल कर दें।

    आभारी रहूंगा।

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  24. "डाकसाब"August 20, 2009 at 7:06 AM

    ("क्‍या आप मुझे मधुराष्‍टकम उपलब्‍ध करा सकते हैं।" - सिद्धार्थ जोशी )
    ***********************
    अपना मेल बॉक्स चेक करें जरा !

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  25. "मधुराष्टकम्" मेरी पसंदीदा संस्कृत-रचनाओं में से है और पण्डितजी की जादुई आवाज़ में इसे सुनना वाक़ई मंत्रमुग्ध करने वाला अनुभव है। इस उम्दा प्रस्तुति और साथ में मतलब भी देने के लिए शुक्रिया।

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http://www.google.com/transliterate/indic/