| सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते वरना इतने तो मरासिम* थे कि आते-जाते रिश्ते इतना आसां था तेरे हिज्र में मरना जानां फिर भी इक उम्र लगी है जान से जाते-जाते सिलसिला-ए-ज़ुल्मते शब* से तो कहीं बेहतर था रात के अंधेरे का सिलसिला अपने हिस्से की कोई शम्मां जलाते जाते उसकी वो जाने, उसे पास-ए-वफा* था के ना था क़द्र तुम ‘फ़राज़’ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते ।। |
Tuesday, August 25, 2009
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते : अहमद फ़राज़ की याद में
आज नामचीन शायर अहमद फ़राज़ की याद का दिन है । पिछले बरस आज ही के दिन फ़राज़ इस दुनिया से रूख़सत हुए थे । फ़राज़ एक बिंदास शायर थे । सारी दुनिया में उनके चाहने वालों का कारवां फैला है । कविता-कोश पर आप फ़राज़ के अशआर यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं । अहमद फ़राज़ को गायकों ने ख़ूब गाया है । मेहदी हसन की आवाज़ में उनकी कई मशहूर ग़ज़लें हैं । आज रेडियोवाणी पर हम उनको खिराजे-अकीदत पेश करते हुए ग़ुलाम अली की गाई ये ग़ज़ल सुनवा रहे हैं ।
क्या कहने! गुलाम अली साहब की आवाज और फ़राज़ का कलाम. लाजवाब. लेकिन पहले सुनी नहीं ये गज़ल. किस एलबम से है?
ReplyDeleteBahut khub janab...mere blog par ane ka shukriya.
ReplyDelete...Sure, Ap use kar sakte hain, par mujhe bhi samay bata dijiyega. Taki main bhi isaka anand le sakun.
Bahut pyari gajal hai.
ReplyDeleteवैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।
उसकी वो जाने, उसे पास-ए-वफा* था के ना था
ReplyDeleteतुम ‘फ़राज़’ अपनी तरफ़ से तो निभाते जाते ।।
bahut khoob....!!
Faraz sahab ko shraddhanjali...!
यूनुस भाई कहाँ से ले आते हो ये मोती। सच दिल खुश हो जाता है।
ReplyDeleteपर आप ये सिलसिला जोड़े रखना ,मेरे पति मेहंदी हसन जी की गायी हुई कई गजलें मुझे सुना चुके हैं ,मैं कोई कव्वाली सुनना चाहती हूँ कैसे संभव है
ReplyDeleteअहमद फराज साहब को श्रद्धांजलि -आप भी कैसी कैसी नायब चीजें ढूंढ लाते हैं !
ReplyDeleteहम तो सही में आपके अच्छे सिलेक्शन के कायल हो गये!!
ReplyDeleteयूनुस साहब,
ReplyDeleteफ़राज़ साहब की शख्शियत उस उचाई को छु चुकी है जिसका लोग ख्वाब में ख्वाब देखते है
आज के दिन आपका फ़राज़ साहब को याद करना मुझे बहुत अच्छा लगा
बहुत सुन्दर अभिवयक्ति, हार्दिक बधाई
वीनस केसरी
शुक्रिया यूनुस भाई। इतनी खूबसूरत ग़ज़ल को सुनवाने के लिये। यूट्यूब पर फ़राज़ साहब की अपनी आवाज़ में भी उपलब्ध है ये गज़ल।
ReplyDeleteHello from Gurgaon Yunus.
ReplyDeleteEchoing Mansiji's suggestion,do listen to this poem recited by Faraaz himself. Thanks for remembering the poet.
भाई घोस्ट-बस्टर ये ग़ज़ल अलबम 'लम्हा-लम्हा' से है । मुझे पता है कि आप इसे खोजेंगे । इसलिए परेशान ना हों । यहां क्लिक करें ।
ReplyDeleteअलका जी मेहदी हसन ग़ज़ल गायक हैं । भला उनकी क़व्वालियां कहां से मिलेंगी । अगर हों भी तो मुझे अज्ञानी ने तो नहीं सुनीं ।
मानसी और खुश्बू बड़ी जबर्दस्त इच्छा हो रही थी कि फ़राज़ साहब के वीडियो प्रेजेन्टेशन लगाए जाएं । पर खुद को रोक लिया । आगे यू-टयूब और ऑडियो फाइल बनाकर ये चीजें एक अलग पोस्ट में पेश करने का इरादा है ।
उसकी वो जाने उसे पास-ए-वफ़ा था कि न था
ReplyDeleteतुम 'फ़राज़' अपनी तरफ से तो निभाते जाते
छा गए हैं यूनुस भाई ... अहमद फ़राज़ की कुछ ग़ज़लें अब मेरी तरफ से भी .............
main udas rasta hoon sham ka
ReplyDeleteteri aahton ki talash hai
ye sitare sab hain bujhe bujhe
mujhe jugnuon ki talash hai
Bhai wah maza aa gaya.. padh ke. Yunus sahab aisi behtarin rachna padhwane ke liye shukriya
behad khoobsoorat gazal...aaj pahli baar suni. aapka bahut shukriya :)
ReplyDelete