Sunday, August 23, 2009

बारो घी के दीयना : नायाब क़व्‍वाली, जाफ़र हुसैन ख़ां बदायूंनी की आवाज़

रेडियोवाणी पर कल्‍ट-क़व्‍वालियों की श्रृंखला अपने अनियमित तरीक़े से जारी है । इसी सिलसिले में आज हम एक ऐसी क़व्‍वाली लेकर आए हैं जिसे हज़रत पैग़ंबर मोहम्‍मद के जन्‍मदिन के मौक़े पर ख़ासतौर पर गाया जाता है । इसके बारे में सबसे पहले मुझे भाई अनामदास ने बताया था । उसके बाद एक दिन बोधिसत्‍व ने इसका जिक्र किया । इन दोनों का ही कहना है कि बचपन के दिनों में इसे उन्‍होंने बहुत सुना है । 

जाफर हुसैन ख़ां बदायूंनी हिंदुस्‍तान के नामी क़व्‍वाल हैं । और ख़ालिस-क़व्‍वालियों के मामले में उनका दरजा बहुत ऊंचा है । वरना क़व्‍वालियों के नाम पर आजक़ल मुहब्‍बत भरी ग़ज़लें ठेली जा रही हैं । मुझे इस क़व्‍वाली की सबसे बड़ी ख़‍ासियत इसका 'भदेस' होना लगता है । 'बधावा' उत्‍तरप्रदेश में बच्‍चे के पैदा होने के वक्‍त गाया जाता है । शायद ये 'सोहर' का ही एक रूप है । हम 'अज्ञानियों' को कोई 'टॉर्च' दिखाए तो थोड़ा ज्ञान बढ़े । जाफर हुसैन खां बदायूंनी के बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं । उनकी अन्‍य क़व्‍वालियों के रेडियोवाणी पर आने का इंतज़ार कीजिए ।



तो 'रेडियोवाणी' की 'कल्‍ट-क़व्‍वालियों' की तलाश का एक और मरकज़ ।
(नीचे दी इबारत में एक जगह शब्‍द मुझे समझ नहीं आया, वहां ...ख़ाली स्‍थान रख दिया गया है )
qawwali: baro ghee ke diyana
singer: jafar hussain khan badauni
duration: almost 13 minutes



जब हुए पैदा मुहम्‍मद सुबह-सादिक़ वक्‍त था
गोद में लेकर के यूं दाई हलीमा ने कहा--
बारो घी के दीयना बारो घी के दीयना
भइले आमना के ललना रे
अर्श पे 'आहाकार' मची है धरती गाए मल्‍हार
आज मोहम्‍मद पैदा भइले, कहे जिब्रील पुकार


हूरें नाचें छमाछम आज अब्‍दुल्‍ला के आंगनवा
बारो घी के दियना ।।
नबियन की टोली आई है अब्‍दुल मुत्‍तलिब से
हब्‍बा बीवी लाई बधावा मरियम मांगें नेग
हम लगईबे कजरा कौनो मारे नहीं टुनवा 
आदम से ईसा तक आए देवें बधाई सारे
पढ़ते दुरूद फ़रिश्‍ते आए, टिमटिम करते तारे
मां की गोदी ऐसी लागी जैसे मुदरिन में नगिनवा
नाम पे तोरे माला जपत है हर दम तोरा ख़ालिक
याहू की बिनती सुन लीजै, ऐ उम्‍मत के मालिक
तैं दिखाए दियो ना आपन मक्‍का और मदीनवा
बारो घी के दियना ।।



कुछ पाठकों को डिव-शेयर का ऊपर दिया प्‍लेयर दिख नहीं रहा है । हालांकि मैंने इसे क्रोम और एक्‍सप्‍लोरर में देखा । फायरफॉक्‍स में ज़रूर दिक्‍कत हो सकती है । ऐसी स्थिति में पोस्‍ट के शीर्षक पर क्लिक करें । फिर भी दिक्‍कत हो तो में डाउनलोड कड़ी दे रहा हूं । ताकि इसे आप अपने संग्रह में भी रख सकें ।


डाउनलोड कड़ी के लिए यहां क्लिक करें ।

रेडियोवाणी पर कल्‍ट-क़व्‍वालियों के इस सिलसिले में जल्‍दी ही आप देखेंगे शंकर-शंभू और हबीब पेन्‍टर के वीडियो । साथ ही मुंशी रज़ीउद्दीन की आवाज़ में 'रंग' भी होगा । 'कल्‍ट-क़व्‍वालियों' का लंबा line-up है । ये सब कब होगा---'वो ही जाने...अल्‍ला जाने' ।

15 comments:

  1. इसे सुने कैसे? पढ़ने में तो मज़ा आ गया।लाजवाब दस्तावेज़ है भाई। जल्दी से सुनाने की व्यवस्था कीजिए। पोपुलर डिमांड पर। प्लीज़।

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  2. रवीश जी दरअसल इसे मैंने डिव शेयर पर चढ़ाया है, मुमकिन है कि क्रोम या मोजिल्‍ला फायरफॉक्‍स से देखने पर आपको प्‍लेयर ना दिखे । एक्‍सप्‍लोरर पर दिख रहा है । फिर भी मैं डिवशेयर का लिंक भी दे रहा हूं । ताकि समस्‍या होने पर इसे सुना और डाउनलोड किया जा सके ।

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  3. सुन लिया दोस्त। बहुत बहुत शुक्रिया।

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  4. युनुस जी, जहां आपने खाली छोड़ा है वहां ऐसा लग रहा है-

    मां की गोदी ऐसी लागी जैसे मुदरिन मा नगिनवा
    (मां की गोद ऐसे लग रही है जैसे अंगुठी में नगीना, मुद्रिका अंगुठी को कहते हैं)

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  5. सुन लिया बहुत बहुत शुक्रिया

    श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभ कामनाएं

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  6. बहुत बहुत शुक्रिया यूनुस भाई एक नायाब पेशकश के लिए।
    जहां आपने खाली स्थान छोड़ा है वहां है---जैसे मुदरिन मां नगिनवा---भाव यही है कि जैसे मुद्रिका अर्थात अंगूठी में नगीना महफूज़ रहता है और शोभित नज़र आता है वही नज़ारा नवजात का अपनी मां की गोद में है।

    एक अन्य लिप्यंतरण त्रुटि की और ध्यान दिलाना चाहूंगा---आदम तेरी सादत आए -

    के स्थान पर - आदम से ईसा तक आए....कर लें।

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  7. यूनुस जी हमने सुन भी लिया और डाऊनलोड भी कर लिया। दिल को छू गई ये कव्वाली। शुक्रिया जी।

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  8. रविकांत और अजीत भाई शुक्रिया ।
    दोनों ही त्रुटियां दूर कर ली हैं ।
    :)

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  9. एकदम लगा सुबह हुई ....सोहर हो बधावा हो....क्या फर्क ?... अद्भुत ,सुने जा रहे हैं ...आभार

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  10. यह मुझे तो क्रोम में भी दिखाई नहीं दिया।

    खैर डाउनलोड करके सुनेंगे।

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  11. म्यूज़िक टुडे का निकाला ज़फ़र बदायूंनी एन्ड पार्टी का यह डबल कैसेट अल्बम कोई छः-सात साल पहले तक मेरे पास बचा हुआ था. बाद में किन्हीं पारकर साहब की नज़र में आ गया. तब से इसे मिस कर रहा था लगातार.

    इतने दिनों बाद आपने वही सुनवा दिया और डाउनलोड की सुविधा भी दे दी.

    वाह यूनुस भाई!. बधाई और शुक्रिया!

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  12. वाह युनुस जी, आनंद आ गया.
    मै फायरफॉक्स में प्लेयर देख रहा हूँ और सुन भी. फिर भी, डाउनलोड कड़ी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

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  13. वाकई धरोहर है यह कव्वाली, मगर शायद बफरिंग की समस्या की वजह से निरंतरता नहीं रह पाई.

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  14. क्या कहूं, पांच साल पहले पटना इप्टा के एक कार्यक्रम में सुना था इसे- भजन संध्या में. गाया इसे था इप्टा के कलाकारों ने ही. इसे रिकॉर्ड भी किया था. लेकिन रिकॉर्डर के साथ कैसेट भी चोरी चला गया और तरस गया. दो साल पहले टोरेंट की मदद से भारत-पाक के सैकड़ों (4.5 जीबी एमपी3) मशहूर गीत एक साथ डाउनलोड किए तो उस भंडार में यह गीत भी था. लेकिन वह डीवीडी भी पटना में रह गई है.
    अभी दिल्ली में अपने दफ्तर में काम करते हुए इसे आपके ब्लॉग पर सुना तो फिर रोमांचित हो उठा. इस कव्वाली में बातें जरूर एक धार्मिक व्यक्ति के बारे में है, लेकिन इसमें जिस मुहम्मद का जिक्र है, वह एसा नहीं लगता कि अरब के किसी आदमी के बारे में कहा जा रहा है. यह मेरे गांव के आसपास के किसी आदमी की बात लगती है. यूपी-बिहार में में पैगंबर मुहम्मद की तारीफ में जो मिलादें कही जाती हैं, उनमें भी इसी तरह जिक्र किया जाता है.

    प्रेमचंद रंगशाला में हुए उस कार्यक्रम में विंध्यवासिनी देवी भी थीं और पहली बार उन्हें सामने से सुन रहा था- एक कजरी.

    शुक्रिया युनुस भाई.

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