Sunday, August 2, 2009

रफ़ी साहब का एक अनमोल प्राइवेट गीत- मैंने सोचा था अगर मौत से पहले-पहले

मैं 'रेडियोवाणी' पर हमेशा कहता हूं कि महान कलाकारों की याद के लिए हम तारीख़ों के मोहताज नहीं होते । उनकी याद तो किसी भी वक्‍त और किसी भी बहाने से आ सकती
है । पिछले तकरीबन एक महीने से रफ़ी साहब के गाने सुनने का मन करता रहा है और मैंने कुछ ऐसे गीत ख़ासतौर पर खोजकर सुने हैं जो कम सुने जाते हैं । अब मन कर रहा है कि इस envialble फेहरिस्‍त को आपको भी दिखाया जाए ।

शायद इसकी वजह ये है कि मुझे लगता है, रफ़ी साहब की याद के बहाने ज़माना वही 'मनMohammed_Rafi तड़पत हरि दरशन', 'ओ दुनिया के रखवाले' और 'आज पुरानी राहों से कोई मुझे आवाज़ ना दे' ही सुनकर तसल्‍ली करता रहा है । जबकि
रफ़ी का संगीत-संसार इतना विस्‍तृत है कि उसमें 'सल्‍ले-अला ज़ुल्‍फ़ काली-काली' जैसी नातें और हम्‍द शामिल हैं तो दूसरी तरफ़
'पैंया पड़ूं तोरे श्‍याम बिरज में लौट चलो' जैसी मार्मिक भक्ति-रचनाएं भी हैं । रफ़ी एक तरफ मेहबूबा को रिझा रहे किसी 'थर्ड ग्रेड' फिल्‍म के हीरो को भी आवाज़ देते नज़र आते हैं तो दूसरी तरफ़ हेलीकॉप्‍टर के होंठों पर सजा लटके शम्‍मी कपूर को 'आसमान से आया फ़रिश्‍ता' जैसा गीत भी बन जाते हैं । इसलिए हमें रफ़ी साहब को हर बार एक नए रंग में सुनना चाहिए । चलिए मेरी फेहरस्ति से आपको गुज़ारा जाए । ये वो गाने हैं जिनके साथ जिंदगी आराम से गुज़ारी जा सकती है ।

ख़ामोश ज़माना है-हीर
क्‍या रात सुहानी है--अलिफ लैला
ले गई एक हसीना दिल मेरा-बेनज़ीर
मुहब्‍बत की बस इतनी दास्‍तां है-बारादरी
तेरी तस्‍वीर भी-किनारे किनारे
तुम बिन सजन बरसे नयन-गबन
दिल मेरा तुम्‍हारी अदाएं ले गयीं-गौरी
मेरी मेहबूब मेरे साथ ही चलना है तुझे-ग्‍यारह हज़ार लड़कियां
माना मेरे हसीं सनम तू रश्‍क-ए-माहताब है-the adventure of robinhood
ये दिन नहीं है कि जिसके सहारे जीते हैं-आबरू
इक झूठ है जिसका दुनिया ने रखा है मुहब्‍बत नाम-जादू
जाता हूं मैं मुझे अब ना बुलाना-दादी मां

ये फेहरिस्‍त शायद envialble है....पता नहीं क्‍यों मुझे अंग्रेज़ी के इस शब्‍द का बेहतर हिंदी विकल्‍प नहीं मिलता । हां 'रश्‍क करना' उर्दू का बेहतरीन जुमला है । फिलहाल आपको इतना ही बताना है कि ये सारे गाने वैसे तो आपके आसपास आसानी से उपलब्‍ध हैं पर आज और अगले रविवार को रात दस बजे प्रसारित होने वाले 'छायागीत' में मैंने इन्‍हें विशेष रूप से शामिल किया है ।

बहरहाल...अब आज की पेशकश पर आया जाए । न्‍याय शर्मा फिल्‍म-जगत के कम चर्चित गीतकार रहे हैं । उनके बारे में ज्‍यादा कुछ पता नहीं है । उनके लिखे कुछ गीतों की सूची यहां है । समय-समय पर यहां भी उनके गीत आपको सुनवाए जाते रहेंगे । वैसे न्‍याय शर्मा की सबसे चर्चित फिल्‍म रही है 'किनारे किनारे' और इस फिल्‍म के गानों की सूची ये रही । इस फिल्‍म में मुकेश का चर्चित गीत था-'जब ग़म-ए-इश्‍क़ सताता है तो हंस लेता हूं' और तलत महमूद का भी....'देख ली तेरी ख़ुदाई अब मेरा दिल भर गया' । इन्‍हीं न्‍याय शर्मा का एक बेहद पेचीदा और मार्मिक प्राइवेट-गीत रफी साहब ने गाया है । इस गाने को मैंने इसके बोलों और जज़्बात के लिए पेचीदा कहा है । हो सकता है कि पहली बार में ये गीत अपने मायने आप तक ना पहुंचा सके....पर इसे सुनने में आपको आनंद आए । लेकिन बार-बार सुनने पर ये गीत ज़ेहन पर एकदम छप ही जाता है ।

ये गाना सितार की तान से शुरू होता है, फिर रफ़ी साहब की गाढ़ी और शीरीं आवाज़ पर सवार होकर इस गाने के बोल ज़ेहन में उतरते जाते हैं । इसके बोल और बनावट देखकर ही आप समझ सकते हैं कि इसे धुन में पिरोना कितना मुश्किल काम रहा होगा । बाबुल ने इसकी धुन बनाई है । आईये ये गाना सुनें ( और डाउनलोड करके दूसरों को सुनवाएं )



 

मैंने सोचा था अगर मौत-से पहले-पहले
मैंने सोचा था अगर दुनिया के वीरानों में
मैंने सोचा था अगर हस्‍ती की शमशानों में


किसी इंसान को बस एक भी इंसान की 'गर
सच्‍ची बेलाग मोहब्‍बत कहीं हो जाए नसीब
वो ही साहिल जो बहुत दूर नज़र आता है
खु़द-ब-ख़ुद खिंचता चला आता है कश्‍ती के क़रीब

मैंने सोचा था यूं ही दिल के कंवल खिलते हैं
मैंने सोचा था  यूं ही सब्रो-सुकूं मिलते हैं
मैंने सोचा था यूं ही ज़ख्‍़मे-जिगर सिलते हैं

लेकिन......
सोचने ही से मुरादें तो नहीं मिल जातीं 
ऐसा होता तो हरेक दिल की तमन्‍ना खिलती
कोशिशें लाख सही बात नहीं बनती है
ऐसा होता तो हरेक राही को मंजिल मिलती
मैंने सोचा था कि इंसान की किस्‍मत अकसर



फूट जाती है बिखरती है संभल जाती है
अप्‍सरा चांद की बदली से निकल जाती है
पर मेरे वक्‍त की गर्दिश का तो कुछ अंत नहीं
खुश्‍क धरती भी तो मंझधार बनी जाती है
क्‍या मुक़द्दर से शिकायत क्‍या ज़माने से गिला
ख़ुद मेरी सांस ही तलवार बनी जाती है

हाय......फिर भी सोचता हूं.....
रात की स्‍याही में तारों के दिये जलते हैं
ख़ून जब रोता है दिल, गीत तभी जलते हैं
जिनको जीना है वो मरने से नहीं डरते हैं
इसलिए....
मेरा प्‍याला है जो ख़ाली तो ख़ाली ही सही
मुझको होठों से लगाने दो, यूं ही पीने दो
जिंदगी मेरी हरेक मोड़ पे नाकाम सही
फिर भी उम्‍मीदों को पल भर के लिए जीनो दो ।

9 comments:

  1. ग़ज़ब ग़ज़ब युनुस भाई. दिन बना दिया आप ने ..... ये गाना सिर्फ़ रफ़ी के बस का था. किस तरह शुक्रिया अदा हो ? अभी तो जैसे रफ़ी साहब गुफ्तगू कर रहे हैं ..... उसी में खोया हूँ ....

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  2. न्याय शर्मा का जिक्र अभी हाल में गीत जब गमे इश्क़ सताता है.. पर आवाज़ में हुआ था। आज आपने उनका लिखा एक और मोती सुना दिया।
    लबेलुबाब यही कहूँगा कि रफ़ी साहब ने पूरी तरह न्याय किया है इस गीत के बोलों के साथ :)

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  3. Wahh Wahh Yunus BHai...ab tak kareeb dus baar to main ye geet rotation mein sun chuka hoon...par dil hai ki bharta nahin...bahut shukriyaa jo aapne aise anjaane geet se pehchaan karayi...

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  4. बस,अब बहुत हो गया !
    बन्द कीजिये अपना ये ब्लॉग !!

    यूँ ही ऐसे-ऐसे गाने चुन-चुन कर लाते रहे,तो (कम से कम हमारे जैसा )आदमी सब छोड़-छाड़ कर दिन भर बैठा बस यही सब सुनता रहेगा( Toonfactory जी दस बार सुन ही चुके हैं );काम-धन्धा कुछ कर नहीं पायेगा( बीबी से झगड़ा जो होगा,सो अलग;जिसमें कुछ भी टूट सकता है-कम्प्यूटर से लेकर आपका सर तक )

    अब रहम कीजिये और बख़्शिये हम ग़रीबों को ।

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  5. शुक्रिया , यूनुस जी , एक बेहद ही बढियां गीत सुनवा कर एक और एहसान कर दिया.

    ये गीत सन २००० में मेरे एक श्रद्धांजली कार्यक्रम में संजय भाई नें सुनवाया था,मात्र एक शमा जल रही थी स्टेज पर, और गीत के खत्म होते ही सामिईन चुपचाप हॊल से खामोशी से निकल गये.

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  6. yeh bahut alag kism ka geet hai. aisa pahele kabhi suna nahi tha. main apka shukriya ada karta hoon.kyoki mere list mein rafi sahab ki ek aur nazm aa gayi.aapke lekh ki pahale line bilkul sateek hai ki MAHAN KALAKAROON KI YAAD KE LIYE HUM TARIKOON KE MOHTAZ NAHI HOTE.

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  7. वाह, आनन्दम्, आनन्दम्। आभार।
    देखिए आपके दिए गीत सुनते सुनते बहुत समय से रुका ब्लॉग प्रवाह भी पुनः बह पड़ा। आखिर कुछ लिख भी लिया।
    घुघूती बासूती

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