मैंने अभी कुछ दिन पहले की अपनी पोस्ट में कहा था कि गीता रॉय की याद कभी भी आ सकती है, वही वाक्य मीना आपा के लिए दोहराना चाहता हूं । मीना कुमारी की याद कभी भी आ सकती है । उनके लिए हम तारीख़ों के मोहताज नहीं । ख़ूबसूरत लोग अपने साथ अपनी पीड़ा लेकर भी आते हैं । दुनिया की लगभग सभी ख़ूबसूरत नायिकाओं और इतर महिलाओं को अपने हिस्से के संत्रास सहने पड़े और मीना आपा भी उनमें से एक हैं । आज अगर वो होतीं तो सतत्तर साल की होतीं और चांदी के रंग वाले बालों में उनका नूर भरा चेहरा कुछ और ही कहानी कहता । पर मीना आपा की जिंदगी बड़ी लेकिन संक्षिप्त होनी
थी । इसीलिए तो महज़ चालीस बरस की उम्र में उनकी कहानी खत्म हो गयी । कुछ कहानियां कभी खत्म नहीं होतीं । मीना आपा की कहानी भी ऐसी ही है ।
परदे पर उनके निभाए किरदारों के बीच भी पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि उनका दुख चुपके से उनके चेहरे पर छलक पड़ता था । उनकी शायरी में उनकी निजी जिंदगी के सख्त अहसास उतर आए हैं । ख़ैयाम ने उनसे उनके ही कुछ अशआर गवाए थे । वैसे गुलज़ार ने उनकी शायरी की डायरी को संपादित करके प्रकाशित किया है ।
भाई शरद कोकास का इसरार है कि मीना आपा के जन्मदिन पर I Write I Recite नामक एलबम वाली पोस्ट को दोबारा प्रकाशित किया जाए । तो मैंने सोचा कि उसी अलबम से कुछ और सुना जाए इस बार । अभी यूट्यूब वीडियो लगा रहा हूं । जो एकाध दिन में मीडिया प्लेयर में बदल दिया जाएगा ।
कोई बताए कि जब मीना आपा गाती हैं तो उन्हें सुनकर मुझे लगता है ....
कोई सफेद लिबास पहने मर्सिया गा रहा है ।
यूं तेरी रहगुज़र से दीवानावार गुज़रे
कांधे पे अपने रखके अपना मज़ार गुज़रे
बैठे हैं रास्ते में दिल का खंडहर सजाकर
शायद इसी तरफ़ से एक दिन बहार गुज़रे
बहती हुई ये नदिया घुलते हुए किनारे
कोई तो पार उतरे कोई तो पार गुज़रे
तूने भी हमको देखा, हमने भी तुझको देखा
तू दिल ही हार गुज़रा हम जान हार गुज़रे
भई,पाते कहाँ से हैं आप इतना कुछ ?
ReplyDeleteकाश ,हमारे हाथ भी लग जाए आप वाली चाभी !
- " वही "
यह ठसक भरी खनकती हुए आवाज़ ...सुबह सुबह ही सुरूर छाने लगा है ..!!
ReplyDeleteशुक्रियाजी इसे सुनवाने के लिये।
ReplyDeletesubah,dophar,sham,raat aur meena kumari.
ReplyDeleteunki ek mukhya gazal ki jamin par maine kuchh sher likhe.apne blog par kabhi unhen pesh kar sakun.tumhare karan unhen aaj unki tanhai men mahsus sake.
शुक्रिया इसे सुनवाने के लिये।मीना जी की लिखी गजल टुकडे-टुकडे दिन बिता और धज्जी-धज्जी रात मिली जिसका जितना आंचल था बस उतनी ही शौगात मिली---अगर हो सके तो अगली बार इसे जरुर सुनवाईयेगा!
ReplyDeleteजिस आवाज में इतना दर्द था उस जिदंगी में सुख किधर होगा। सच आप मोती चुनकर लाते है।
ReplyDeleteवाकई बेमिसाल गीत लाये है निकालकर ....
ReplyDeleteबहुत सुंदर! तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं।
ReplyDeleteउनकी आवाज़ का कण ही अलग था, गोया गले के रूंध जाने का स्थाई भाव.
ReplyDeleteशुक्रिया...
बहुत खूब यूनुस जी. बड़ी पुरानी याद ताज़ा कर दी आपने.
ReplyDeleteहमारे घर में मीना कुमारी जी का एल पुराना एल पी है. अब तो उसे बजाने वाली मशीन चलने का नाम नहीं लेती.
शुक्रिया उनकी आवाज़ में इस नज़्म को सुनाने का !
ReplyDelete