Sunday, May 3, 2009

नैन घट घट तन एक घरी--फिर कुमार गंधर्व और वसुंधरा के स्‍वर

रेडियोवाणी पर छह अप्रैल को आपको कुमार गंधर्व की आवाज़ में 'कबीर' सुनवाए गए थे । इस एक प्रस्‍तुति के बहाने कितनी कितनी यादें ताज़ा हो गई थीं । कुमार गंधर्व सही मायनों में 'स्‍वर-गंधर्व' हैं । गर्मियों के इन सड़े और कड़े दिनों में कुमार जी का स्‍वर साथ हो तो सारे 'दुख' दूर हो जाते हैं । आज कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली के 'सांद्र' स्‍वरों में आपके लिए लेकर आया हूं सूरदास की रचना । 'नैन घट घट तन एक घड़ी' । इंटरनेटी खोजबीन में इसके बार में 'दिल्‍ली-दरभंगा' पर एक बड़ा आत्‍मीय लेख मिला । लेकिन ऑडियो तो वहां ग़ायब ही है । कुमार गंधर्व के स्‍वर से मेरी जो यादें जुड़ी हैं उनका जिक्र इससे पहले वाली इस प्रस्‍तुति में किया ही जा चुका है । कहना बस इतना ही है कि उनके सामने बैठकर उन्‍हें सुनने का सपना अधूरा ही रह गया । अब तो बस कुछ दूरदर्शनी वीडियोज़ रह गये हैं जिनमें कुमार गंधर्व की प्रस्‍तुतियां देखी जा सकती हैं । क्‍या आपमें से किसी के पास कोई ऐसी (डिजिटल) 'खिड़की' है, जिसमें झांकें तो कुमार गंधर्व गाते हुए नज़र आएं ।
panditkumargandharva
फिलहाल 'सूरदास' की रचना ।
आवाज़ें कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली ।
अवधि--बस साढ़े तीन मिनिट ।
डाउनलोड कड़ी--ये रही






नैन घट घट तन एक घरी
कबहूँ न सदा पावस ब्रिज, लागीं रहत झरी ।
विरह इन्द्र बरसत निसि बासर, इह अति अधिक करी ।
ऊरध उसास समीर तेज जल, उर भुवि उमंग भरी ।
सब रितु मिटी एक भई ब्रजमाही, यह विधि उलटि घरी ।
मिटी एक भई ब्रजमाही, यह विधि उलटि घरी ।
सूरदास प्रभु तुम्हारे बिछरे, मेटि मरयादा टरी ।

6 comments:

  1. पारूल जी कोई तकनीकी ख़राबी थी जिसके तहत ये रचना फायरफॉक्‍स और एक्‍सप्‍लोरर पर नहीं बज रही थी । इसका निदान अब कर दिया है ।

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  2. युनुस जी ,आप सच ही ऐसी गर्मी (मौसमी और चुनावी)में शीतल और मधुर रचनाएँ सुनवाकर सराहनीय काम कर रहें हैं ,धन्यवाद !

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  3. मधुर , मधुरतम सुरों की फ़ुआरें ..

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  4. pichli baar yahan aakar bhi nahin sun paya tha. Nirgun ne to pehle hi mast kar rakha tha.. ye bhi pasand aaya. inki aawaaz mein jo madhurta aur prawaah hai ki man bilkul shaant ho jata hai..sangeet mein poori tarah man leen ho jata hai

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