कुमार गंधर्व को सुनना तो उसके बाद भी जारी रहा । एक दिन दादर के 'कोहीनूर म्यूजिक स्टोर' में भटक रहा था कि तभी कुमार जी की आवाज़ में 'कबीर' मिल गए । यानी कुमार गंधर्व को सुनना जारी रहा । हमारे मोबाइल पर 'उड़ जायेगा हंस अकेला' कभी रिंगटोन की तो कभी एम.पी.3 की शक्ल में बजता रहा है । ज़बर्दस्ती दूसरों को सुनवाया भी जाता रहा है । ट्रांस्फर भी किया जाता रहा है । यानी हम कुमार गंधर्व के मुरीदों की क़तार में बीच में कहीं खड़े हुए हैं । एक दिन 'रेडियोवाणी' पर लगे 'सी.बॉक्स' में किन्हीं रविकांत जी का संदेश मिला---'कभी निर्गुण सुनवाएं' । तो जैसे एक साथ कई यादें ताज़ा हो गईं । कुमार गंधर्व को सुनना किसी सौभाग्य से कम नहीं होता । उपमाएं कम पड़ जाती हैं और शब्द हमारी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए पूरे नहीं पड़ते । नए शब्दों को गढ़ने की ज़रूरत है कुमार जी के निर्गुण से गुज़रने के अहसास को बयान करने के लिए । आईये आज से रेडियोवाणी में कुमार गंधर्व को सुनने की अनियमित श्रृंखला शुरू करें । और कबीर की ये रचना सुनें ।
( स्वर कुमार गंधर्व और वसुंधरा कोमकली के )
अवधि- 4.14
चिट्ठाजगत Tags: निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा , कबीर , कुमार गंधर्व , निर्गुण भजन , nirbhay nirgun gun re gaunga , kabir , kabeer , nirgun bhajan , kumar gandharva , vasundhara komkali
आज तो आनंद कर गए आप!
ReplyDeleteआनन्द - आनन्द !
ReplyDeleteहमने यह कुमार गन्धर्व के शिष्य और वरिष्ट गांधीवादी एस.एन सुब्बाराव से सुना है । ’धुन सुन के मनवा मगन हुआ जी’- कुमार गन्धर्व का सुनवा दीजिए ना ।
यूनुस जी , शानदार प्रस्तुति । सुनकर अच्छा लगा ।
ReplyDeleteयूनुस जी, बहुत-बहुत आभार। मन तो जैसे किसी और लोक में पहुँच गया। निर्गुण और वो भी कबीर का और फ़िर ये दिव्य स्वर...इसके आगे कहने को क्या बचता है। कबीर साहब का ही एक लोक में प्रचलित निर्गुन है-" साधो, नैया बीच नदी डूबल जाय" जिसे सुनना स्वर्गिक आनंद की अनुभुति कराता है।
ReplyDeleteयूनुस भाई ,
ReplyDeleteबहुत आनँद भया आज तो !
यूँ ही सुँदर गीत सुनवाते रहीयेगा .
स स्नेह,
- लावण्या
अनहद नाद यही तो है ! वाह !
ReplyDeleteकुमार गन्धर्व जो को सुनना हर बार ख़ास होता है. क्यों, यह समझने की कोशिश कर रहा हूँ.
ReplyDeleteबहुत बाड़िया, सुनकर आनंद हुआ../ आप कौनसी हिन्दी टाइपिंग टूल यूज़ करते हे..? मे रीसेंट्ली यूज़र फ्रेंड्ली इंडियन लॅंग्वेज टाइपिंग टूल केलिए सर्च कर रहा था तो मूज़े मिला.... " क्विलपॅड " / ये बहुत आसान हे और यूज़र फ्रेंड्ली भी हे / इसमे तो 9 भारतीया भाषा हे और रिच टेक्स्ट एडिटर भी हे / आप " क्विलपॅड " यूज़ करते हे क्या...?
ReplyDeleteमैं इंडिक से लिखता हूं जी अनाम जी
ReplyDeleteदेर से पहुँचा आपकी इस पोस्ट पर। अति उत्तम इसे सुनकर वाकई आपने ये दिन बना दिया।
ReplyDeleteअब इसे गुनगुनाना कुछ दिन ज़ारी रहेगा।
बेहद सुरीली पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत खूब.. एक अलौकिक अनूभूति हुई।
ReplyDeleteयुनूस भाई साहब कुमार साहब की आवाज आैर कबीर का उलटबंसिया जैसे सोने में सुहागा। अति अद्भभुत । मेरा भी पुराना निवेदन अभी भी लंबित है। जब तक आप पूरा नहीं करेंगे निवेदन करना जारी रखूंगा। आपको स्मरण तो होगा ही नहीं तो ईमेल द्वारा पुन: स्मरण करा दूंगा। रात भर का है डेरा रे सवेरे जाना है0000
ReplyDeleteआनंद!
ReplyDeleteमै तो खो गया।
ReplyDeleteअप्रतिम , अद्भुत !
ReplyDeleteI wish I could type all that in Hindi but being so far away in US for all these years made me feel I lost touch only to listen to this bhajan and I could immediately reconnect.
Younus ji when I read your commentary and listened to Kumar Ghandharva I could imagine how it would have felt listening to it in those beautiful old days.
I wish I could listen to all those bhajan's by Kumar Ghandarva.
अप्रतिम , अद्भुत !
ReplyDeleteI wish I could type all that in Hindi but being so far away in US for all these years made me feel I lost touch only to listen to this bhajan and I could immediately reconnect.
Younus ji when I read your commentary and listened to Kumar Ghandharva I could imagine how it would have felt listening to it in those beautiful old days.
I wish I could listen to all those bhajan's by Kumar Ghandarva.