Tuesday, November 11, 2008

फिल्‍म 'छोटी सी बात' के गाने--पहला भाग: 'ना जाने क्‍यों होता है ये जिंदगी के साथ'

पिछले कई दिनों से रेडियोवाणी पर खामोशी रही । पर अब दोबारा हम संगीत के इस सिलसिले को शुरू कर रहे हैं । 
कई दिनों से मेरे मन में फिल्‍म 'छोटी सी बात' के गीत गूंज रहे हैं । पिछले दिनों बी.आर.चोपड़ा नहीं रहे । और जब हम उनकी फिल्‍मोग्राफी पर विचार कर रहे थे तो मेरी नज़र कुछ छोटी फिल्‍मों पर पड़ गई । दरअसल सत्‍तर के दशक के उत्‍तरार्द्ध में बी.आर.चोपड़ा का मन बड़ी फिल्‍मों से खिन्‍न सा हो गया था । हुआ ये था कि दिलीप कुमार और शर्मिला टैगोर के अभिनय से सजी बी.आर.चोपड़ा की 'बड़ी' फिल्‍म 'दास्‍तान' फ्लॉप हो गई थी । यही वो दौर था जब चोपड़ा साहब के छोटे भाई यश चोपड़ा अपनी फिल्‍मी महत्‍वाकांक्षाओं के कारण 'अलग' हो गए थे । कहते हैं कि इन घटनाओं ने बी.आर.चोपड़ा जैसी मज़बूत शख्सियत को भी भीतर से हिला दिया था । चोपड़ा साहब को कई महीनों तक नींद की गोलियां खाकर सोना पड़ा था । ये वो दौर था जब बासु चैटर्जी जैसे फिल्‍मकार छोटे बजट में सिनेमा की सुहावनी बयार चला रहे थे । 


बी.आर.चोपड़ा को लगा कि फिल्‍म-निर्माण की ये भी एक शैली हो सकती है । इसलिए उन्‍होंने 'छोटी सी बात' और 'पति पत्‍नी और वो' जैसी फिल्‍मों का निर्माण किया । ये दोनों ही छोटी फिल्‍में थीं और अपने तईं कामयाब भी रही थीं । फिल्‍म 'छोटी सी बात' के संगीतकार थे सलिल चौधरी । जिन्‍होंने बी.आर.फिल्‍म्‍स में सन 1961 में फिल्‍म 'क़ानून' और सन 1969 में 'इत्‍तेफाक' जैसी फिल्‍मों में संगीत दिया था । दिलचस्‍प बात ये है कि ये दोनों ही फिल्‍में गीतविहीन फिल्‍में थीं । और इसके बावजूद सलिल दा के पार्श्‍वसंगीत को सराहा गया था । मैंने हाल ही में 'क़ानून' की सी.डी.ख़रीदी है ताकि किसी दिन फुरसत से बैठकर इसे देखा जाये । बहरहाल आज तो हम बात कर रहे हैं फिल्‍म 'छोटी सी बात' के एक गाने की । योगेश ने इस गाने को कितनी खूबसूरती से लिखा है । मुझे तो इस गाने का मुखड़ा 'किसी के जाने के बाद करे फिर उसकी याद छोटी छोटी सी बात' एक मुहावरे जैसा ही लगता है । 

सलिल चौधरी ने इस छोटी सी फिल्‍म में भव्‍य संगीत दिया है । ये गाना सिम्‍फनी शैली के शानदार सिगनेचर म्‍यूजिक से शुरू होता है । और उसके बाद आती है लता जी की आवाज़ । गिटार के शानदार तरंगें सुनाई देती हैं नेपथ्‍य में । दिलचस्‍प बात ये है कि गाने के संगीत में एक जबर्दस्‍त रिदम है । एक रफ्तार है, तेज़ी है । जबकि लता जी की आवाज़ में एक ठहराव है, गहराई है मिठास है, तरंग है । कई ऐसे लोग हैं जिन्‍हें इस फिल्‍म के गीत ख़ास पसंद नहीं आए । पर पता नहीं क्‍या है इन गानों में कि बरसों बरस से ये गाने मेरे ज़ेहन में गूंज रहे हैं और कभी भी इनको सुनकर मन नहीं भरता । ना ही इस फिल्‍म को देखकर ही जी भरता है । बस यही कहना है कि इस गीत को खूब सुकून से सुनिए, ना सिर्फ बोलों को बल्कि गाने के संगीत संयोजन पर भी ध्‍यान दीजिये और बताईये कि एक महीने की ख़ामोशी को तोड़ने की 'रेडियोवाणी' की ये 'अदा' आपको कैसी लगी ।   


ना जाने क्‍यों होता है ये जिंदगी के साथ
अचानक ये मन किसी के जाने के बाद
करे फिर उसकी याद, छोटी छोटी सी बात ।। 
वो अनजान पल, ढल गए कल,
आज वो रंग बदल बदल,मन को मचल मचल
रहे हैं छल वो अनजान पल । 
सजे बिना मेरे नयनों में टूटे रे हाय रे सपनों के महल ।। 
ना जाने क्‍यों ।।
वही है डगर, वही है सफर 
है नहीं, साथ मेरे मगर, अब मेरा हमसफर, इधर उधर ढूंढे नज़र 
कहां गईं शामें मद भरी, वो मेरी, वो मेरे वो दिन गए किधर 
ना जाने क्‍यों ।। 

दो अंतरों वाले इस गाने के लिए हम योगेश को भी नमन करते हैं । एक बेहतरीन गीतकार योगेश इन दिनों गोरेगांव में एक गुमनाम जीवन जी रहे हैं । 
इस गाने को 'यहां' यूट्यूब पर देखा जा सकता है ।  

23 comments:

  1. नवम्‍बर की सुबह आपने गुनगुनी कर दी । धीमी गति से बहता यह गीत नसों में बहते खून के साथ कब घुल-मिल जाता है, पता ही नहीं हो पाता ।

    ReplyDelete
  2. waah sundar geet se subhah ki shuruwat,shukran

    ReplyDelete
  3. मेरा फेवरिट गाना है यह तो.. सुबह अच्छा तो दिन भी अच्छा ही जायेगा.. :)

    ReplyDelete
  4. वाकई मन नहीं भरता, कितनी भी बार सुना जाए यह गीत. सलिल दा का कोरस का प्रयोग हमेशा लाजवाब रहा.

    बाकी जानकारी भी बढ़िया रही.

    ReplyDelete
  5. यूनुस भाई, आपका जवाब नहीं… ठीक सलिल चौधरी की तरह :) :) :)

    ReplyDelete
  6. आप कहीं नहीं गये ! फिर भी छोटी-छोटी सी बातें याद कर ही रहे थे। तबीयत दुरुस्त है,न? सप्रेम.

    ReplyDelete
  7. बहुत दिनो से बहुत अधिक पसंद है मुझे ये गीत....! योगेश जी के गीत सुनो तो ऐसा लगता है कि अमोल जी पर ही फिल्माया गया होगा...योगेश जी, अमोल पालेकर जी और येशु दा मुझे एक दूसरे की याद दिलाते हैं।

    ReplyDelete
  8. गान और फ़िल्म दोनों बहुत पसंद है... अमोल पालेकर तो हैं ही. साथ में कर्नल नागेन्द्र विलियम विल्फ्रेड सिंह (अशोक कुमार) भी. कई बार देखी है यह फ़िल्म.

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छी याद दिलाई इस फिल्म और इस गीत की।
    धन्यवाद यूनुस।

    ReplyDelete
  10. बहुत दि‍नों बाद तशरीफ लाये हुज़ुर, लेकि‍न हमेशा की तरह एक दम झकास प्रस्‍तुति‍....
    योगेश जी, सलि‍ल दा, अमोल पालेकर और लता जी सभी ज़मीन से जुड़े हुए लोग, इसी कारण रचनाऍं कालजयी हो जाया करती हैं, सुनने में अपनी माटी की खुशबू और मि‍ठास मि‍लती है हमेशा की तरह।

    ReplyDelete
  11. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  12. जितनी खूबसूरत फ़िल्म उतना ही खूबसूरत ये गीत है.....जितना सुनो मन नही भरता!

    ReplyDelete
  13. बेहतरीन गाने के साथ लौटे..बधाई.

    ReplyDelete
  14. आइए आइए कहां थे इतने दिन्…:)
    बहुत ही खूबसूरत गीत है, मेरे जमाने का है, स्वभाविक है कि मेरा पसंदीदा गीत है। योगेश जी ने जो भी गाने लिखे सीधे दिल में उतरे। जंजीर फ़िल्म का लिखा 'दिवाने है दिवानों को न घर चाहिए' आज भी सुनते नहीं अघाते। आशा है उस गीत की भी आप जल्द ही चर्चा करेगें ।
    अरे अगर योगेश जी गोरेगांव में ही हैं तो उनके साथ कुछ बातचीत का मजा दिलवाइए कुछ पुराने दिनों की याद ताजा कीजिए , कुछ ज्यादा मांग गयी क्या?……:)

    ReplyDelete
  15. खूबसूरत गीत ! सुनवाने के लिये शुक्रिया/

    ReplyDelete
  16. बहुत ही प्यारा गाना है.. साथ में चाँद लाइनें लिख के आपने पूरा माहौल बना दिया...

    ReplyDelete
  17. ye movie rishikesh da ki shaili ki hai, halki phulki film kitna hi dekh lo. geet-sangeet dono sunder.

    vidya sinha in dono hi films me lead role me thi, ek me amol palekar ke sath dusri me sanjeev kumar

    ReplyDelete
  18. अदा तो अच्छी लगी। पर अगर आप ये सोच रहे है कि आप कुछ समय ग़ायब रहे और इसीलिए… किसी के जाने के बाद करे फिर उसकी याद छोटी छोटी सी बात… अरे नहीं हमें आपकी ऐसी याद नहीं आती :) :) :)

    ReplyDelete
  19. bahut pyara geet hai ye humesha se raha hai dil ka kareeb.

    radiovani ki khamoshi ki wazah kya rahi yunus bhai?

    ReplyDelete
  20. गीत तो अच्छा सुनवाया ही है उसका परिचय और भी सुंदर है | Presentation के ढंग से गीत को चार चाँद लग गए हैं |
    कैसे कोई गीत अच्छा है, तो क्यों है : इसे अनोखे शब्दों में बाँधना यूनुस सिर्फ़ आप ही की शैली है |
    बी आर चोपड़ा के योगदान को भी आपकी कलम एक नई नज़र से देखती है|
    पढ़कर आनन्द आया |

    ReplyDelete
  21. सभी मित्रों का शुक्रिया टिप्‍पणी के लिए । अनीता जी योगेश जी से जल्‍दी ही बात की जायेगी । वैसे विविध भारती आने पर पहला इंटरव्‍यू मैंने योगेश जी का ही लिया था । एक भूल सुधार करना चाहता हूं । ज़ंजीर का गीत 'दीवाने हैं' गुलशन बावरा का है योगेश का नहीं । गुलशन भी एक मस्‍त गीतकार हैं ।

    ReplyDelete
  22. oh yes! thanks for correcting me....janjir ka gana gulshan bawra ka tha, lag rahaa hai budhapa teji se duadaa chalaa aa rahaa hai....:)

    ReplyDelete
  23. युनूस भाई,
    बिला शक छोटी सी बात एक ऐसी फ़िल्म थी जिसने भारतीय मध्यम वर्ग के दिल को छुआ. आज जिस पॉज़िटिव थिंकिंग की बात चारों ओर हो रही है उसे इस फ़िल्म ने शानदार तरीक़े से उठाया था.छोटी से बात और आनंद का संगीत मुझे सलिल दा के पूरे संगीत सफ़र का सुनहरा सफ़ा प्रतीत होता है.

    आपकी वापसी को ख़ुशामदीद कहता हूँ.

    ReplyDelete

if you want to comment in hindi here is the link for google indic transliteration
http://www.google.com/transliterate/indic/