Thursday, June 26, 2008

मन्‍ना दा का गाया गीत ऊपर गगन विशाल ।। 58 साल पुराना नग़मा

अहमदाबाद की यात्रा की वजह से रेडियोवाणी पर पिछले कई दिनों से कुछ जारी नहीं किया जा सका । अब गीतों का सिलसिला दोबारा शुरू किया जा mannaरहा है । पिछले कुछ दिनों से मैं मन्‍ना दा के गीत सुन रहा हूं । शायद  रेडियोवाणी पर पहले भी बताया है कि मन्‍ना दा को सुनने का शौक़ बचपन से ही लग गया था । वो पहले गायक थे जिनके गाने हम सभी मित्र ढूंढ ढूंढकर सुनते थे । और इसी खोज में मन्‍ना डे की गायी 'मधुशाला' हासिल हुई और बहुत आगे चलकर मिले मन्‍ना दा के गाये ग़ैर-फिल्‍मी गीत और ग़ज़लें । फिर मन्‍ना दा के गाए बांगला गीत भी मिले और एक पूरा ख़ज़ाना हमारे सामने आ गया ।

आज जो गीत रेडियोवाणी के ज़रिए आप तक पहुंचाया जा रहा है ये मन्‍ना दा का पहला हिट गीत था ।

आप जानते होंगे कि मन्‍ना डे का असली नाम था प्रबोधचंद्र डे । वो अपने ज़माने के प्रख्‍यात गायक के.सी.डे के भतीजे थे । सन 1940 में जब के.सी.डे बंबई आए तो मन्‍ना डे भी उनके साथ चले आये । और संगीतकार एच पी दास के सहायक बन गये । फिल्‍म 'रामराज्‍य' में उन्‍होंने अपना पहला गीत गाया और उसके बाद उन्‍हें लंबा स्‍ट्रगल करना पड़ा । उन्‍होंने वापस लौटने पर भी विचार किया । लेकिन इसी बीच उन्‍हें 'मशाल' फिल्‍म का ये गीत मिला ।

इस गाने से जुड़ी एक कथा सचिन देव बर्मन के बारे में भी है । सचिन देव बर्मन ने 'शिकारी' और 'आठ दिन' जैसी फिल्‍मों से अपनी संगीत यात्रा शुरू hfs6 की थी । ये सन 1946 की बात है । इसके बाद उन्‍होंने 'दो भाई' फिल्‍म का बेहतरीन गीत ' मेरा सुंदर सपना बीत गया' भी दिया । जो गीता रॉय का पहला फिल्‍मी गाना था । लेकिन सचिन दा को कामयाबी नहीं मिल रही थी । निराश होकर सचिन देव बर्मन ने कोलकाता वापस लौटने का मन बना लिया था । उन दिनों सचिन देव बर्मन फिल्मिस्‍तान की फिल्‍म 'मशाल' में संगीत दे रहे थे । फिल्मिस्‍तान के पार्टनर अशोक कुमार सचिन देव बर्मन के क़द्रदान थे । उन्‍होंने सचिन दा को समझाया कि इस फिल्‍म का काम पूरा करके ही आगे के बारे में सोचें । सन 1950 की बात है ये । ख़ैर इस फिल्‍म के गाने 'ऊपर गगन विशाल' ने ना सिर्फ मन्‍ना डे की कि़स्‍मत बदल दी बल्कि सचिन देव बर्मन को भी मुंबई में स्‍थापित कर दिया ।

ये गीत कवि प्रदीप ने लिखा है । यू ट्यूब पर छानबीन करने से मुझे इसका वीडियो भी मिल गया है । तो चलिए सुनें 'ऊपर गगन विशाल' ।

ये गाना जैसे जैसे आगे बढ़ता है, इसके सुर ऊपर होते जाते हैं । ख़ासतौर पर इसका कोरस बड़ा ही विकल और उत्‍साहित करने वाला है ।


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ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल
बीच में धरती वाह मेरे मालिक तू ने किया कमाल
को: अरे वाह मेरे मालिक क्या तेरी लीला
तू ने किया कमाल
म: ऊपर गगन विशाल
म: एक फूँक से रच दिया तू ने
सूरज अगन का गोला
एक फूँक से रचा चन्द्रमा
लाखों सितारों का टोला
तू ने रच दिया पवन झखोला
ये पानी और ये शोला
ये बादल का उड़न खटोला
जिसे देख हमारा मन डोला
सोच सोच हम करें अचम्भा
नज़र न आता एक भी खम्बा
फिर भी ये आकाश खड़ा है
हुए करोड़ो साल मालिक
तू ने किया कमाल
ऊपर गगन विशाल
को: आ हा आ हा आ आ आ
म: तू ने रचा एक अद्भुत्‌ प्राणी
जिसका नाम इनसान - २
इसकी नन्ही प्राण है लेकिन
भरा हुआ तूफ़ान
इस जग में इनसान के दिल को
कौन सका पहचान
इस में ही शैतान बसा है
इस में ही भगवान
बड़ा ग़ज़ब का है ये खिलौना - २
इसका नहीं मिसाल
मालिक तू ने किया कमाल ...
ऊपर गगन विशाल
को: आ आ आ आ आ आ।।

12 comments:

  1. waahhh , itni achchi jaankaari aur geet. maza aa gaya ji.
    aabhar geet sunane ke liye...

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  2. ये गीत जब भी हम सुनते हैं, मन में एक उत्साह भर जाता है।
    सुबह सुबह आनन्दित करने के लिये शुक्रिया यूनुस भाई। :)

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  3. हर गीत कि अपनी एक उम्र होती है.. मगर कुछ रचनायें अमर होती है.. ये उनमें से ही एक है..
    इस गीत को सुनकर बचपन की याद ताजा हो गई जब रेडियो पर ये गीत हम सुनते थे.. शायद अब भी आता हो मगर यहां विविध भारती ठीक से कभी-कभी ही पकरता है..

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  4. sundar geet..manna dey ka...film avishkaar ..ka geet ho sakey to sunvaa dijiye..

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  5. बहुत अच्छा गीत !

    मन्ना डे का असली नाम मुझे आज ही पता चला। धन्यवाद इस जानकारी के लिए।

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  6. ये गाना मेरे संग्रह में पड़ा हुआ है.. इसके बारे में जानकारी अच्छी लगी !

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  7. जानकारी और गीत के लिए आभार.

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  8. यह yunusmumbai's podcast की चौखट तो बड़ी इम्प्रेसिव है यूनुस!
    और आवाज भी बहुत साफ आ रही है इसमें से।

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  9. शुक्रिया इतनी अच्छी जानकारी के लिए

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  10. युनुसभाइ
    यह गाना मुझे पुरा कँठ्स्थ है | एक बात आपके ध्यानमेँ आइ? ओडियो और विडियो मेँ काफी अँतर है |
    आभार
    हर्षद जाँगला
    एटलांटा युएसए

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  11. यूनुस भाई;
    सन 90 और 95 के बीच प्रदीप जी इन्दौर तशरीफ़ लाए थे और तब उन्होने बताया था कि आज जारी इस गीत ऊपर गगन विशाल उन्हें (प्रदीपजी) ऐ मेरे वतन के लोगों से ज़्यादा प्रिय था. कारण इसमें सर्वशक्तिमान की रचना के प्रति आस्था का परम भाव था. उन्होनें ये भी बताया था कि जब वे कोलकाता गए काम ढूंढने तब हिन्दी गीतों पर कुछ ख़ास काम नहीं हो रहा था सो उस लिहाज़ से उन्हें शुरू में थोड़ा संशय था कि वे फ़िल्मी दुनिया कुछ ख़ास कर पाएंगे या नहीं लेकिन गीत की के मामले में उन्होनें ये सूत्र साध लिया कि जितने आसान शब्दों को वे अपनी कविता में टाँक सकें ...काम चल निकलेगा. और यही हुआ.

    और हाँ एक ख़ास बात ...प्रदीपजी ज़्यादातर ; बल्कि कहिये शत-प्रतिशत गीत गुनगुनाते हुए ही लिखते थे सो लिखते लिखते ही धुन बन जाती थी.वे उसे संगीतकार को अपना गीत अपनी धुन में ही गाकर सुनाते थे और अधिकांश गीतों की फ़ायनल धुन वही होती थी जो प्रदीपजी द्वारा रची होती. बाद में संगीतकार उन धुनों को तराश कर उसका आर्केस्ट्राइज़ेशन कर दिया करते थे.

    हिन्दी गीती काव्य की जो भावधारा पं.नरेन्द्र शर्मा,भरत व्यास,वीरेन्द्र मिश्र,नीरज,गोपालसिंह नेपाली और शैलेन्द्र नें निर्वाह की प्रदीपजी को उसका पुरोधा कहना उचित ही होगा.

    इस गीत से सचिन दा,मन्ना डे और प्रदीपजी सभी की भाव स्मृति महक उठ्ठी मन में.

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  12. इस जग में इनसान के दिल को
    कौन सका पहचान
    इस में ही शैतान बसा है
    इस में ही भगवान ----- पुराने लेकिन प्रभावशाली सुर दिल की गहराइयों में उतर जाते थे और आज भी यादो मे बसे है.. बहुत बहुत शुक्रिया इस गीत को सुनवाने का.

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