Thursday, May 1, 2008

हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे- फिल्‍म मज़दूर । मई दिवस पर विशेष



आज मज़दूर दिवस है ।
मज़दूर दिवस पर मैं आपको फ़ैज़ की वो रचना अपनी आवाज़ में सुनवाना चाहता था । नहीं नहीं मैं गाता नहीं बल्कि पढ़कर सुनाता । लेकिन अफ़सोस...ना तो मेरे संग्रह में वो रचना मिली और ना ही इंटरनेट पर । फ़ैज़ की प्रतिनिधि कविताओं वाली राजकमल पेपरबैक्‍स की पुस्‍तक में भी इसे शामिल नहीं किया गया है । मुझे लगता है कि मज़दूर की भावनाओं और उसके खौलते हुए इरादों को इस रचना में फ़ैज़ ने ठीक तरह से अलफ़ाज़ दिये हैं । सभी से निवेदन है कि अगर फ़ैज़ की मूल रचना आपको पास उपलब्‍ध हो तो कृपया भेजें ।
Mazdoor - DVD

सन 1983 में बी. आर. प्रोडक्‍शंस की फिल्‍म आई थी मज़दूर । इस फिल्‍म में  फ़ैज़ से प्रेरणा लेकर हसन कमाल ने ये गीत लिखा था । आईये दुनिया के सारे मज़दूरों को सलाम करें और ये प्रण लें कि उनका हिस्‍सा नहीं मारेंगे । दुनिया के सारे पूंजीपति, कम या ज्‍यादा पैसे वाले सबसे ज्‍यादा कटौती करते हैं तो वो मज़दूर के पैसों में करते हैं । बाक़ी नारेबाजि़यां अपनी जगह हैं पर अपने स्‍तर पर हम इतना तो कर ही सकते हैं । काग़जी सहानुभूतियों और चर्चाओं से आखिर होता क्‍या है ।


हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्‍सा मांगेंगे

इक बाग़ नहीं, एक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे ।।
दौलत की अंधेरी रातों ने, मेहनत का सूरज का छिपा लिया
दौलत की अंधेरी रातों से हम अपना सवेरा मांगेंगे ।।
क्‍यूं अपने खून-पसीने पर हक़ हो सरमायादारी का
मज़ूदूर की मेहनत पर हम मज़दूर का क़ब्‍ज़ा मांगेंगे ।।
हर ज़ोर ज़ुल्‍म की टक्‍कर में हड़ताल हमारा नारा है
हर ज़ालिम से टकराएंगे, हर ज़ुल्‍म का बदला मांगेंगे ।। 

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8 comments:

  1. बहुत बढ़िया-मौके पर.

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  2. यूनुस जी, यह रचना मेरे पास किसी पत्रिका में होनी चाहिए। तलाश कर आप को भेजता हूँ।

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  3. युनुसजी,
    बहुत बढिया, सुनकर बहुत अच्छा लगा । बचपन की यादों में १ गीत और है जिसे बरसों से नहीं सुना । इसके बोल हैं:

    मेहनतकश इंसान जाग उठा, लो धरती के भाग खुले, भाई वाह वाह वाह ।

    खेल है सारा मेहनत का, सच्चा है सहारा मेहनत का ।

    मेहनतकश इंसान जाग उठा ....


    यदि ये गीत मिल सके तो जरूर सुनवायें ।

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  4. बहुत सुन्दर। मेहनतकश की प्रशस्ति होनी चाहिये। विशेष कर इस समय जब श्रम को कमतर कर आंका जाने लगा है।

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  5. फैज़ की उस रचना का शीर्षक क्या था? मेरा पास भी एक किताब है उनकी..

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  6. ऐसा ही कुछ शैलेन्द्र ने लिखा था फ़िल्म "इंसान जाग उठा" में : मेहनतकश इंसान जाग उठा लो धरती के भाग जगे. संगीत एस दी बर्मन साहब का था.

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  7. May day par ek achcha chayan. 15 Aug, 26 Jan ki tarah May-Day par bhi sabhaayein aur geet sunate hain ham, par kuchh parivartan nahin hota... aapne bilkul thik kaha ki naarebaaji apni jagah, par apne star par hamein kuchh karna chahiye.

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  8. Wo daur tha samajwad ke sapne aur uske liye sangharsh se bhara

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